Jun 27, 2015

क्रिकेट का व्यापार मनोरंजन के लिये है-हिन्दी चिंत्तन लेख(cricket business for entettaninment-hindi thought article)

                              क्रिकेट के मैच अब खिलाड़ियों के पराक्रम  से खेले नहीं जाते नहीं वरन् टीमों के स्वामियों की लिखी पटकथा के अभिनीत किये  जाते हैं। इसका पहले हमें उस समय अनुमान हुआ था जब आज से आठ दस साल पहले इसमें इसके परिणाम सट्टेबाजों के अनुसार पूर्व निर्धारित किये जाने के आरोप लगे थे। उस समय एक ऐसे मैच की बात सुनकर हंसी आई थी जिसमें खेलने वाली दोनों टीमें हारना चाहती थी।  उस समय लगातार ऐसे समाचार आये कि हमारी क्रिकेट में रुचि समाप्त हो गयी।
                              अब जिस तरह क्रिकेट के व्यापार से जुड़े लोगों की हरकतें दिख रही हैं उससे यह साफ होता है कि क्रिकेट खेल अब फिल्म की तरह हो गया है। क्रिकेट के व्यापार में लगे कुछ लोग जब असंतुष्ट होते हैं तो ऐसी पोल खेलते हैं कि सामान्य आदमी हतप्रभ रह जाता है।  टीवी पर आंखों देखा हाल सुना रहे अनेक पुराने क्रिकेट खिलाड़ी भी अनेक बार उत्साह में कह जाते हैं कि इसमें केवन मनोरंजन, मनोरंजन मनोंरंजन ढूंढना चाहिये।  हम जैसे लोग डेढ़ दशक से मूर्ख बनकर इसमें राष्ट्रभक्ति का भाव ढूंढते रहे। स्थिति यह रही कि क्रिकेट, फिल्म, टीवी, टेलीफोन, अखबार तथा रेडियो जैसे मनोरंजन साधनों पर कंपनी राज हो गया है।  स्वामी लोग फिल्म वालों को क्रिकेट मैच और क्रिकेट खेलने वालों ने चाहे जब नृत्य करवा लेते हैं।  टीवी के लोकप्रिय कार्यक्रमों में उनकी उपस्थिति दिखाते हैं। ऐसे में लोग भले ही फिल्म, टीवी, और क्रिकेट के लोकप्रिय नामों पर फिदा हों पर समझदार लोग उन्हें धनवान मजदूर से अधिक नहीं मानते।  हमारा  विचार तो यह है कि क्रिकेट, टीवी धारावाहिक और फिल्म में अपना दिमाग अधिक खर्च नहीं करना चाहिये।
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कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'

ग्वालियर, मध्य प्रदेश

कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com

Jun 21, 2015

21 जून योग दिवस की सारी स्मृतियां कल पसीने में बह जायेंगी(21 june yoga divas ki yaaden kal paseene mein bah jayengi)

               योग दिवस ने अनेक लोगों को थका दिया होगा। अनेकों को उबाया भी होगा। जिनके लिये यह दिन उत्सव जैसा था वह जरूर थके होंगे। वह यह सोचकर तसल्ली कर रहे होंगे कि गनीमत है कल योग साधना नहीं करना पड़ेगी। नियमित योग साधक अपने स्थानों से हटकर सार्वजनिक मंचों की तरफ आये होंगे। उनके लिये यह योग पिकनिक की तरह रहा होगा। नियमित योग साधक थकावट की सोच भी नहीं सकते क्योंकि उन्हें अपना अभ्यास कल फिर करना है।
                              इस अवसर पर ढेर सारी चर्चायें, परिचर्चायें और प्रदर्शिनियां लगी।  नियमित योग साधक इनका क्या आनंद उठा पाते? प्रश्न यह है कि जो अनियमित और अवसरवादी हैं क्या वह ऐसे आयोजनों से कुछ सीख पाये? जिस तरह योग साधना का चकाचौंध भरा प्रचार हुआ उससे लगा कि शायद एक दिन तक ही इसका प्रभाव रहना था। हमारे लिये योग दिवस कल विस्मृत विषय होगा। गर्मी और उमस की वजह से योग साधना के दौरान आने वाले पसीने में उसकी सारी स्मृतियां बह जायेंगी
                              योग साधना विषय पर बोलना बहुत सरल है। यही कारण है कि हमारे यहां अनेक लोग इस पर चाहे जो बोलने लगते हैं। हालांकि हमने टीवी चैनलों पर बहस के दौरान दो तीन महिला पुरुष विद्वानों को सुना। वाकई वह इसके नियमित अभ्यासी होंगे इसमें संशय नहीं था क्योंकि वह अधिकार के साथ इस विषय पर बोले। उनके अलावा तो अनेक ऐसे लोग बहस में आये जो पेशेवर प्रशंसक लगे।  उनके बात करने के तरीके से ही लगा कि वह योग साधना नहीं करते।  एक योग साधक के रूप में हम ने योग के लिये वाणी, कर्म और विचार से सकारात्मक रहने वाले विद्वानों की बात का आनंद लिया और बाकी सभी की बात भुला दी।
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कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'

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Jun 15, 2015

जमीन और आकाश की चाल-हिन्दी कविता)zamin aur akash ki chal-hindi poem)

बहुत चेहरे देखे
समय के साथ चरित्र की
चाल बदल गये।

जमीन पर उसूल से
वह करते थे शिकार
आकाश में पहुंचे
अक्ल के जाल बदल गये।

कहें दीपक बापू ऊंचाई पर
नीचे गिरने का खतरा सताता है,
हवा का उठता गिरता हर झौंका
दिल को डराता है,
उसूलों से जमीन पर
घिसट कर ही चल पाये,
कर लिये समझौते जिन्होंने
शिखर पर वही रहे पांव जमाये,
कैलैंडर के कई साल  बदल गये।
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कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'

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Jun 11, 2015

संस्कारी नाव-हिन्दी कविता(sanskari naav-hindi poem)

भीड़ लगी है ऐसे लोगों की
 जो मुख में राम
बगल में खंजर दबाये हैं।

खास लोगों का भी
जमघट कम नहीं है
कर दिया जिन्होंने
शहर में अंधेरा
अपना घर रौशनी से सजाये हैं।

कहें दीपक बापू किसे पता था
विकास का मार्ग
विनाश के समानातंर चलता है
मझधार में फंसी संस्कारी नाव
जिसे किसी ने पीछे लौटने के
 गुर नहीं बताये हैं।
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कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'

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Jun 6, 2015

गंगा मैली क्यों है-हिन्दी कविता(ganga maili kyon hai-hindi poem)


हिमालय से निकली
पवित्र गंगा हर जगह
मैंली क्यों है।

पानी की हर बूंद पर
 गंदगी फैली क्यों है।

कहें दीपक बापू किनारे से
चलो धनवानों के घर तक
पत लग जायेगा
गंगा की धाराओं में
विष प्रवाहित करने के बदले
उनकी भरी थैली  क्यों है।
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कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'

ग्वालियर, मध्य प्रदेश

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