Jan 24, 2008

अपने आसरे चलना सीख नहीं पाते-कविता साहित्य

कितनी बार टूटता भरोसा
फिर भी हम किये जाते
क्योंकि अपने लिए इसके
अलावा कोई रास्ते नहीं बन पाते
अपने नसीबों पर करते हैं
हमेशा भरोसे की बात
पर दिल से खौफ इंसानों का निकाले नहीं पाते

खडे होते एक जगह
पर भटकता मन कहीं दूर
कोई तो बन जाये हमारा हुजुर
अपने इरादों पर चलने से घबडाते
अपना भरोसा दिखाकर
कितने ढहाते सितम-दर-सितम
पर हम खामोशी से सह जाते
सिलसिला चलता है बरसों तक
फिर भी अपने आसरे चलना सीख नहीं पाते
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Jan 23, 2008

उदास हो जाना कभी अच्छा लगता है-कविता साहित्य

उदास हो जाना कभी अच्छा लगता है
ख़्वाबों को हमेशा टूटे देख
सपनों को बिखरते देख
कब तक और किससे लड़ें
खामोश हो जाना अच्छा लगता है

जमीन और आकाश के बीच
जिन्दगी जब थकती सी लगे
अपनों से दूरी बढ़ने लगे
कुछ पाकर भी दिल होता बेचैन
अपने दर्द से भीग जाएं अपने नैन
उदास हो जाना कभी अच्छा लगता है

कायदों के करें हमेशा अपनी बात
वही फायदे के लिए मारते लात
कभी गुस्सा तो कभी बेचैनी से
भर जाता है मन
बिना आग के ही जलता मन
तब खामोशी ओढ़ना लगता ठीक
उदास हो जाना कभी अच्छा लगता है

Jan 22, 2008

अनजाने लोगों के बीच ढूँढें सच्चा प्यार-कविता साहित्य

जब भी हम ढूढ़ते हैं अपने लिए प्यार
पर मिलती है सब जगह से दुत्कार
खुद करो चाहे किसी से भी तुम
मांगो न किसी से इसका उपहार
लोग नहीं निकल पाते अपने दिल से
खरीदा और बिकता पैसे से यहाँ प्यार
भाषा में बहुत होते हैं सुन्दर शब्द
पर बोलने में सब लोग हैं लाचार
अपनों में कितना भी तलाशो नहीं मिलता
गैरों भी नहीं मिल सकता जल्दी प्यार
शब्द में होती ढेर सारी शक्ति
पर पैसे से ही लोग देते-लेते प्यार
बेहतर है निकल पड़े अनजाने सफर पर
शायद कहीं मिल जाये प्यार
अपनों की भीड़ में रहकर ऊबने से अच्छा है
अनजाने लोगों के बीच ढूँढें सच्चा प्यार

Jan 21, 2008

चैन से जिन्दगी की जंग लड़ने भी नहीं देते- कविता साहित्य

हमारे लिए जिनके मन में दर्द है
उनका प्यार हमें डरा देता है
सोचते हैं कि हम ही झेलें अपनी पीडा
किसी दूसरे को क्यों सताएं
हमारे लिए कोई और तडपे
यह ख्याल ही दर्द बढा देता है

समय गुजरता जायेगा
अपने इरादों को हम पहुंचा देंगे
यही सबको बताते
पर लोग हैं कि यकीन नहीं करते
हमें पसीना बहते देख
अपनी आंखों में पानी लाते
अक्ल के अंधे
बेरहम जमाने से लड़ते देख
पल-पल घबडा जाते
हम सोचते हैं कि वह क्यों नहीं होते दूर
चैन से हमें अपने जिन्दगी की जंग
कभी लड़ने क्यों नहीं देते
अपनी जिन्दगी से
पर कह नहीं पाते
फिर ख्याल आता है
जिन्दगी की जंग की हार-जीत से
बहुत बड़ी है हमदर्दी और प्यार
जो हम अपने चाहने वालों से पाते हैं
यही ख्याल हमें अपने से दूर हटा देता है
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Jan 19, 2008

ऐसी कविता मत लिखो-कविता साहित्य

जो तुम्हारे मन की घुटन को
कभी दूर न कर श्के
जो तुम्हें दर्द देने वालों को
कदम पीछे हटने के लिए
मजबूर न कर सके
ऐसी कविता मत लिखो

शब्दों के दलालों की मंडी
सजी है सब जगह
कान और आँख खडे राशन में
एक लाइन की मजबूर की तरह
जो मिलेगा वही पढेंगे और सुनेंगे
भेद न सके गिरोह की चालों को
ऐसी कविता मत लिखो

तुम्हारे अन्दर की पीडा
बन जाये दूसरे के लिए अमृत तो ठीक
जहर बनकर किसी को डसे
तुम्हारे शब्द किसी को कर सकें
उसके मानसिक अंतर्द्वंद से मुक्त तो ठीक
पर वह भ्रम में जाकर फंसे
ऐसी कविता मत लिखो

तुम जिन हांड-मांस के पुतलों को
बोलते, देखते और सुनते देख रहे हो
अपने स्वार्थों की चाबी के भरे
रहने तक ही चलते हैं
खतरनाक चेहरे और आवाजों को
देखकर सहमते हैं
जो नहीं भर सकें उनमें
इंसानों जैसी संवेदनाएं
ऐसी कविता मत लिखो
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Jan 17, 2008

निकले थे दोस्त ढूँढने-कविता

निकले थे राहों पर दोस्त ढूँढने के लिए
हर कोई खडा था अपने हाथ में खंजर लिए
मन में आ गया खौफ पाँव चलते थे आगे
बार-बार आँखे चली जातीं पीछे देखने के लिए

पूरा सफर यूं ही कटा मिलीं न वफ़ा
लौटे अपने घर अपने दिल को खाली लिए
भला सौदागरों के महफ़िल में बैठकर क्या करते
जो तैयार थे हर जजबात बेचने के लिए
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Jan 16, 2008

इतिहास के खंभे खडे हैं उनके नाम-कविता

याचना करने से भीख मिलती हैं
वाचना करने से इनाम
जिन्दगी एक खेल है
चलती है अपनी राह अपनी अदा से
आदमी लिखना चाहता उस पर नाम

जहाँ खामोशी होना चाहिए
वहाँ जोर से चिल्लाता है
जहाँ करना चाहिए आवाज
वहाँ डर कर बंद कर लेता आँख
अनेक दुश्मन मान लेता अनाम
ख्वाहिशें पूरी होने के अनुमान से
चक्कर काटता है नकली मोहब्बत की गलियों में
सोचता है शायद कहीं हो जाये
उसके दिल के पूरे अरमान

रखा जिन्होंने अपने पर भरोसा
जिन्दगी में वही छोड़ते हैं
दूसरों को सीखने के लिए
अपने पैरों के निशान
याचना और वाचना करने वाले
अपने घर भर सकते हैं
दुनिया भर के साजो-सम्मान
जो वक्त के साथ उनके घर का
कबाड़ भी बन जाता है
सस्ते में खो देते हैं स्वाभिमान

जिन्होंने जिया अपनी जिन्दगी को
अपने तरीके से
अपना सम्मान सजाया है दिल में
ईमान के साथ सलीके से
नहीं जुटाया कोई अपने बैठने के लिए फर्नीचर
कई इतिहास के खंभे खडे हैं
लिखा है जिन पर उनका नाम

Jan 15, 2008

रिश्ते अब उदासी से हो गये-कविता

हमने तो चाही थी खुशी उनकी
पर वह हमें उदासी दे गए
कुछ नहीं माँगा था उनसे
सिवाय कुछ प्यार के पलों के
छोड़ दिया शहर प्रवासी हो गए

कितनी अजीब हैं दुनिया
अपनी बेबसी के साथ जीते लोग
दूसरे की लाचारी पर हँसते हैं
लड़ते हैं जमाने के लिए जो शूरवीर बनकर
जख्म उनके अकेले सहलाने के लिए बचते हैं
हमने उनके लिए बनाया रास्ता
ख़त्म कर दिया उन्होने हमसे वास्ता
हम तो लड़ते रहे हैं हारी हुई ऐसी लड़ाई
जिसमे जीत कभी हो नहीं सकती
शोर से दूर ही होती हमारी बस्ती
हारते जाते हैं
फिर भी लड़ते जाते हैं
रास्ते में कोई मिला
उसके साथ हो जाते हैं
शायद कोई दिल का हाल
सुनकर हमदर्द बन जाये
पर जो आयी उनकी मंजिल
हमें अकेला छोड़ जाते हैं
तन्हाई में बैठकर हँसते हैं
कभी अपने हाल पर रोते हैं
थकती लगती हैं जिन्दगी
रिश्ते अब उदासी से हो गए
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Jan 14, 2008

क्या लिखूं "ब्लोगश्री कि ब्लोगरश्री-हास्य-व्यंग्य

(२ जनवरी को वर्डप्रेस पर प्रकाशित व्यंग्य की पुन: प्रस्तुति)
दरवाजे पर दस्तक हुई तो ब्लोगर की पत्नी ने खोला सामने वह शख्स खडा था जिसके बारे में उसे शक था कि वह भी कोई ब्लोगर है-उस समय उसके गले में फूलों की माला शरीर पर शाल और हाथ में नारियल और कागज था। इससे पहले कुछ कहे वह बोल पडा-''नमस्ते भाभीजी!''आप कहीं ब्लोगर तो नहीं है? आप पहले भी कई बार आए हैं पर अपना परिचय नहीं दिया-'' उस भद्र महिला में कहा।
"कैसी बात करती हैं?मैं तो ब्लोगरश्री हूँ अभी तो यह सम्मान लेकर आया हूँ-''ऐसा कहकर वह सीधा उस कमरे में पहुंच गया जहाँ पहला ब्लोगर बैठा था।
उसे अन्दर आते देख वह बोला-"क्या बात है यह दूल्हा बनकर कहाँ से चले आये।
''दूसरे ब्लोगर ने कहाँ-''आपको बधाई हो। मेरा सम्मान हुआ है।
''पहले ब्लोगर ने कहा-''सम्मान तुम्हारा हुआ है, बधाई मुझे दे रहे हो?''दूसरा-''तुम तो मुझे दोगे नहीं क्योंकि मुझसे जलते हो.''
पहला ब्लोगर उससे कुछ कहता उसकी पत्नी बोल पडी-बधाई हो भाईसाहब, चलो आपका सम्मान तो हुआ। जरूर आप अच्छा लिखते होंगे। इनकी तरह फ्लॉप तो नहीं है।'
दूसरा ब्लोगर-''भाभीजी, आप खुश हैं तो आज चाय का एक कप पिला दीजिये।''
वह बोली-'आप आराम से बैठिये, मैं चाय के साथ बिस्कुट भी ले आती हूँ।''
पहला ब्लोगर बोला-"चाय तक तो ठीक है पर बिस्कुट बाद में ले आना पहले देख तो लूं इसे सम्मान कैसा मिला है?''
पत्नी ने कहा-'चाहे कैसा भी है मिला तो है। आपके नाम तो कुछ भी नहीं है वैसे भी घर मेहमान का सम्मान करना चाहिए ऐसा कहा जाता है।''
वह चली गयी तो दूसरा बोला-''यार, तुम में थोडा भी शिष्टाचार नहीं है, मुझे सम्मान मिला है तो तुम थोडी भी इज्जत भी नहीं कर सकते।
पहला-''यार, जितनी करना चाहिऐ उससे अधिक ही करता हूँ, पहले यह बताओं यह सम्मान का क्या चक्कर है? तुमने अभी तक लिखा क्या है?''
दूसरा-''जिन्होंने दिया है उनको क्या पता?मोहल्ले के लोगों में यह बात फ़ैल चुकी है कि मैं इंटरनेट पर लिखता हूँ। इस वर्ष से उन्होने अपने कार्यक्रम में किसी को सम्मानित करने का विचार बनाया था। मैंने कुछ लोगों को समझाया कि देखो अपने यहाँ भी कई प्रतिभाशाली लोग हैं उनको सम्मानित करना शुरू करो इससे हमारी इज्जत पूरे शहर में बढेगी और अखबारों में खबर पढ़कर अपने नाम भी लोगों की जुबान पर आ जायेंगे।''
पहला ब्लोगर-'यह माला, शाल और नारियल कहाँ से आये इसका खर्चा किसने दिया? और यह हाथ में कौनसा कागज पकड रखा है?''
दूसरा ब्लोगर-''हमारे पास एक मंदिर है उसके बाहर जो आदमी माला बेचता है उससे ऐसे ही ले आया। यह नारियल बहुत दिन से घर में उसी मंदिर में चढाने के लिए रखा था पर भूल गए थे। यह शाल सेल से मेरी पत्नी ले आयी थी पर पहन नहीं पायी, और यह कागज़ नहीं है, उपाधि है, इसे मैंने खुद अपने कंप्यूटर पर टाईप किया है अब इस पर भाभीजी के दस्तक कराने हैं। वहाँ मुझे इस लायक कोई नहीं लगा जिससे इस पर दस्तक कराये जाएं। ''
पहला ब्लोगर हैरानी से उसकी तरह देख रहा था। इतने में वह भद्र महिला उसके लिए बिस्कुट ले आयी तो वह बोला-''भाभीजी, आप मेरे इस सम्मान-पत्र पर दस्तक कर दें तो ऐसा लगेगा कि मैं वाकई सम्मानित हुआ। आपने इतनी बार मुझे चाय पिलाई है सोचा इस बहाने आपका कर्जा भी उतार दूं। ''
वह खुश हो गयी और बोली-''लाईये, मैं दस्तक कर देती हूँ, हाँ पर इनको पढ़वा दीजिये तब तक मैं चाय बनाकर लाती हूँ।''
वह दस्तक कर चली गयी तो पहला ब्लोगर कागज़ अपने हाथ में लेते हुए बोला-''मुझसे क्यों दस्तक नहीं कराये?'
दूसरा बोला-''क्या पगला गए हो? एक ब्लोगर से दस्तक करवाकर अपनी भद्द पिट्वानी है। आखिर ब्लोगरश्री सम्मान है?''
पहले ब्लोगर ने पढा और तत्काल दूसरे ब्लोगर के सामने रखी बिस्कुट के प्लेट हटाते हुए बोला-''रुको।
दूसरे ब्लोगर ने हैरान होते हुए पूछा-''क्या हुआ?''
पहले ब्लोगर ने कहा-''इसमें एक जगह लिखा है ब्लोगश्री और दूसरी जगह लिखा है ब्लोगरश्री। पहले जाकर तय कर आओ कि दोनों में कौनसा सही है? फिर यहाँ चाय पीने का सम्मान प्राप्त करो।'
दूसरा ब्लोगर बोला-''अरे यार, यह मैंने ही टाईप किया है। गलती हो गयी।''
पहला ब्लोगर--''जाओ पहले ठीक कर आओ। दूसरा कागज़ ले आओ।
दूसरा ब्लोगर-अरे क्या बात करते हो? ब्लोग पर तुम कितनी गलतिया करते हो कभी कहता हूँ।'
पहला-"तुम मेरा लिखा पढ़ते हो?''दूसरा-''नहीं पर देखता तो हूँ।'
पहले ब्लोगर की पत्नी चाय ले आयी और बोली-''हाँ, इनको पढ़वा लिया?'' दूसरा ब्लोगर-''हाँ भाभीजी इनको कैसे नहीं पढ़वाता। इनकी प्रेरणा से ही यह सम्मान मिला है।''
पहला ब्लोगर इससे पहले कुछ बोलता उसकी पत्नी ने पूछा-''आप लिखते क्या हैं?''
दूसरा ब्लोगर चाय का कप प्लेट हाथ में लेकर बोला--''बस यूं ही! कभी आप पढ़ लीजिये आपके पति भी तो ब्लोगर हैं।''
वह बोली-''पर आप तो ब्लोगरश्री हैं।''
पहला ब्लोगर बोला-''ब्लोगरश्री कि ब्लोगश्री।''
दूसरे ब्लोगर ने उसकी बात को सुनकर भी अनसुना किया और चाय जल्दी-जल्दी प्लेट में डालकर उदरस्थ कर उठ खडा हुआ और बोला-''बस अब मैं चलता हूँ। और हाँ इस ब्लोगर मीट पर रिपोर्ट जरूर लिखना।''
पहले ब्लोगर ने पूछा-''क्या लिखूं ब्लोगरश्री या ब्लोगश्री?''
दूसरा चला गया और पत्नी दरवाजा बंद कर आयी और बोली-''आप कुछ जरूर लिखना।''
पहले ब्लोगर ने पूछा-''तुमने दस्तक तो कर लिया अब यह भी बता तो क्या लिखूं..........अच्छा छोडो।
जब वह लिखने बैठा तो सोच रहा था कि मैंने तो उससे पूछा ही नहीं कि इस पर कविता लिखनी है या नहीं चलो इस बार भी हास्य आलेख लिख लेता हूँ
नोट- यह काल्पनिक हास्य-व्यंग्य रचना है और किसी व्यक्ति या घटना से इसका कोइ संबंध नहीं है और किसी से मेल खा जाये तो वही इसके लिए जिम्मेदार होगा.

Jan 13, 2008

अपने-अपने होते हैं अंदाज

यूं तो सपनों में भी वही आते हैं
जिन्हें हम देख पाते है
पर जागते हुए हम
कितना जागरूक रह पाते हैं
आसमान से जमीन पर आती हवाएं
जब सूरज की किरणें
फ़ैल जातीं है चारों ओर
पर इंसान उनके दृश्यों को कितना
अपनी आंखों में समेट पाते हैं
फिर भी अपने शक्तिशाली
और संपन्न होने का भ्रम
कितने लोग छोड़ पाते हैं

हवा तो छूकर निकल जाती है
सूरज की किरणे
चिपकी रहतीं है साथ पर
उनके स्पर्श की आत्मिक अनुभूति
कहाँ कर पाते हैं
जीवन में पल-पल पाने का मोह
हमें दूर कर देता है सुखद
और एकाकी पलों को
जीते कहाँ है
हम तो जिन्दगी को ढोते जाते हैं.
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अपने-अपने होते हैं अंदाज
सबके होते हैं कुछ न कुछ राज
पूरी जिन्दगी गुजर जाते हैं
कुछ बताने और कुछ छिपाने में
जान नहीं पाते अपनी जिन्दगी के राज
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Jan 2, 2008

बिना दर्द के भी इंसान तडपता

कभी-कभी उदास होकर
चला जातो हूँ भीड़ में
सुकून ढूँढने अपने लिए
ढूँढता हूँ कोई हमदर्द
पर वहाँ तो खडा रहता है
हर शख्स अपना दर्द साथ लिए
सुनता हूँ जब सबका दर्द
अपना तो भूल जाता हूँ
लौटता हूँ अपने घर वापस
दूसरों का दर्द साथ लिए

कभी सोचता हूँ कि
अगर इस जहाँ में दर्द न होता
तो हर शख्स कितना बेदर्द होता
फिर क्यों कोई किसी का हमदर्द होता
कौन होता वक्ता कौन श्रोता होता
तब अकेला इंसान तडपता
किसी का दर्द पीने के लिए