Jul 28, 2015

जिंदगी का दर्शन-हिन्दी कविता(zindagi ka darshan-hindi poem)


यह जरूरी है
जिंदगी के लिये
बेहतरीन सपने चुने।

जिंदगी हसीन हो जाती है
अपने हाथों से
अच्छी नीयत के धाग से बुने।

कहें दीपक बापू मुश्किल यह है
सिखाने के लिये कलाम चाहिये,
वरना तो यहां खड़ा
हर कोई सीना तानकर
ज़माने का सलाम चाहिये,
कोई विरला ही मिलता है
मौन रहकर किसी की सुने।
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कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'

ग्वालियर, मध्य प्रदेश

कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com

Jul 24, 2015

प्रेमी की डोरी-हिन्दी कविता(prem ki dori-hindi poem)

बरसात का मौसम है
मैंढकों की आवाज
चारों तरफ आयेगी।

कोयल मौन हो गयी
संगीत जैसी सुरीली
आवाज अब नहीं आयेगी।

कहें दीपक बापू शोर कर
छिपाते लोग अपनी कमजोरी,
स्वार्थ से तोड़ते और जोड़ते
प्रेम की डोरी,
झूठ का तूफान उठाते
इस उम्मीद में कि
उनकी सच्चाई दब जायेगी।
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कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'

ग्वालियर, मध्य प्रदेश

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Jul 18, 2015

जिंदगी का सफर-हिन्दी कविता(zindagi ka safar-hindi poem)

स्मरण में नहीं  है
वह मित्र
जिंदगी के सफर में जो साथ थे।

भूल गये उनकी ताकत
हमारे सहारे जिनके हाथ थे।

कहें दीपक जिंदगी का रथ
चलता है इतनी तेजी से
आंखों के सामने गुजर जाते
बड़े बड़े पेड़
फसलों से भरे खेत
गगनचुंबी इमारतें
न हमने पूछा
न किसी ने बताया
कौन उनके नाथ थे।
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कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'

ग्वालियर, मध्य प्रदेश

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Jul 13, 2015

अक्लमंदों का खेल-हिन्दी कविता(aklamandon ka khel-hindi poem)


अक्लमंदों को नहीं आता
समाज सुधारने का तरीका
वह नहीं खेद भी जताते।

जात भाषा और धर्म के
नाम पर उठाते मुद्दे
इंसानों में भेद बताते।

कहें दीपक बापू एकता के नाम
चला रहे अपना व्यापार
वही समाज में छेद कराते।
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कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'

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Jul 7, 2015

इंसानी आंखों का नजरिया-हिन्दी कविता(insani aankhon ka nazariya-hindi poem)

दुनियां में मतलबपरस्ती पर
क्यों हैरान होते हो
वही तो रिश्ते बनाती है।

नीयत सभी की एक जैसी
एक से काम निकला
दूसरा दोस्ती बनाती है।

कहें दीपक बापू फिर भी
जिंदगी रंगीन है,
इंसानी आंखों का नजरिया है
कभी भद्दी कभी हसीन है,
दिमागी सोच से ही
किसी के दिमाग में कंकर
किसी में हीरे खनखनाती है।
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कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'

ग्वालियर, मध्य प्रदेश

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Jul 2, 2015

शस्त्र और शब्द तीर-हिन्दी कविता(shastra aur shabda teer-hindi poem)


घर के अंदर
तलवार लहराने से
कोई वीर नहीं हो जाता।

सड़क पर नचाने से भी
कमजोर लोगों का
कोई पीर नहीं हो जाता।

कहें दीपक बापू सुई से
जहां सिलता कपड़ा
वहां लोहे के भाले से
काम नहीं होता
शस्त्र से अधिक शब्द तीर में
जोर तमाम होता
अलबत्ता अर्थहीन प्रहार से
कोई गंभीर नहीं हो जाता।
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कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'

ग्वालियर, मध्य प्रदेश

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