May 25, 2011

बढ़ती महंगाई में इश्क सस्ता-हिन्दी व्यंग्य कविता (badhti mahagai mein ishq sasta-hindi vyangya kavita)

इश्क अब आशिकों के जज़्बात से
नहीं गाड़ियों से नसीब में आता है,
इसलिये ही कई बार माशुका तो
कई बार आशिक का भी मॉडल बदल जाता है।

माशुका की सूरत की असलियत चाहे कुछ भी हो
परिधान और श्रृंगार पर आशिक मिट जाता है
इसलिये ही
कई बार माशुका खुद
तो कई बार उसका आशिक का चेहरा भी
फैशन की तरह बदल जाता है।

केवल पैसे और चेहरे से ही
नहीं आती मोहब्बत दिल में
पेट्रोल का गाड़ियों में बहना भी जरूरी है
फिर बहारों से इश्क की केाई नहीं दूरी है
जिसमें घासलेट की मिलावट तो होगी
पर उसका फर्क कहां नज़र आता है
आग हो रहे आशिक
धुंआ हो रही माशुकाऐं
बढ़ती महंगाई में इश्क हो रहा है सस्ता
आंख की चमक भले ही दिखे
पर उसका दिल से कोई नहीं नाता है।
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कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com

May 16, 2011

प्रकृति से संपर्क करने पर ही मिल सकता है आनंद-हिन्दी चिंत्तन लेख (peace,entertainment and enjoyment with nature or prikriti-hindi chittan lekh)

                किसी भी इमारत का-चाहे वह महल हो या मकान या झौंपड़ी-फर्श हो वह सीमेंट, मुजाइक,, संगममरमर, टाइल्स, पत्थर या मार्बल का हो सकता है जिसे देखने का शहरी आदमी आदी हो गया है और जिसकी वजह से लोग प्राकृतिक घास पर चलना ही भूल गये हैं। अगर कोई आदमी प्रकृति से दूर है तो वह इमारतों की चमक से अचंभित हो सकता है, खुश भी हो सकता है पर वह आनंद नहीं उठा सकता। फर्श पर चलते हुए वह आंखें नीचे देखकर उस पर चलने का सुख भले ही अनुभव करना चाहता हो पर वह क्या ऐसा कर नहीं पाता। 
              प्रकृति से दूर होकर आदमी अगर सुख या आनंद की अनुभूति करना चाहे तो यह उसका भ्रम है। प्रश्न यह है कि सुख या आनंद है क्या? आंनद वह है जब आप किसी वस्तु की सुगंध को नाक से , रूप का आंख से और अस्त्तिव को स्पर्श से अनुभव करें। यही आनंद है। न कि यह लगे कि हमें सुख अनुभव हो रहा है पर जिसका आभास अंदर नहीं पहुंचे। हम जबरदस्ती करें कि आनंद हमें मिल रहा है तो वह क्षणिक है। इसका पता कैसे लगे?
               जब किसी चीज को देखें, स्पर्श करें या सूंघें तो उसके आनंद का आभास उससे दूर होने पर भी लगे। हम कोई आवाज सुने और जब वह बंद हो जाये तो भी अनुभूति होती रहें। हम कोई वस्तु मुख से ग्रहण करें तो पेट में जाकर उसका रस आनंद प्रदान करे न कि जुबान पर स्वाद के बाद उसका सुख जाता रहे। सच्चा आनंद वही है जो अपने उद्गम स्तोत्र से बाहर आने के बाद भी सुख देता रहे। यह सुख कृत्रिम वस्तुओं से नहीं मिल सकता। एक बात यह भी है कि इसके विपरीत यह आभास बुरा हो तो उससे दूर होते ही समाप्त हो जाये। जिनकी इंद्रियां सुख को गहराई तक ले जाने की आदी हैं वह दुःख को बाहर ही छोड़ देती हैं।
               कभी पार्क में घुमने जायें। वहां पेड़ पत्तों से उठ रही शीतल हवा गर्मी में भी सुख प्रदान करती है। उद्यान में घास पर नंगे पांव घूमे। कहते हैं कि इससे आंखों की रौशन बढ़ती है तो जीवन में आत्मविश्वास भी आता है। इसका कारण यह है कि हमारे पांव या तो जूते पर सवारी करते हैं या पक्के फर्श पर चलते हैं। यह कठोरता उनके स्वभाव का मूल हिस्सा हो जाती है। इससे हमारे मस्तिष्क में भी लोचता का अभाव दिखाई देता है। यही कारण है कि आजकल लोग अहंकार, जिद्दी और अपनी शेखी बघारने वाले होते हैं। लोग बोलते हैं पर किसी की सुनते नहीं। सुनते हैं तो समझते नहीं। उद्यान में लोचदार घास पर घूमते हुए पांव न केवल परिवर्तन का आभास करते हैं बल्कि उनमें यह आत्मविश्वास भी आता है कि यह संसार एक जैसा रसहीन नहीं है। बल्कि कहंी ठोस धरातल है तो की घास का भी आनंद है।
                 हमने देखा है कि जो लोग पार्क में नहंी घूमते न व्यायाम करते हैं उनका व्यवहार रूढ़ और रूखा होता है जबकि जो लोग प्रातः घूमते हैं या योगसाधना करते हैं उनके व्यवहार में कहीं न कहीं आकर्षण झलकता है। जब हम श्रीमद्भागवत गीता में वर्णित ‘गुण ही गुणों में बरतते हैं’ कि सिद्धांत का व्यवहारिक रूप देखते हैं तो लगता है कि मनुष्य स्वयं कुछ नहीं है बल्कि उसका खानपान, रहनसहन तथा चाल चलन ही उसके व्यवहार का निर्धारण करते हैं। ऐसे में  हमें यह प्रयास करना चाहिए कि हम ऐसे स्तोत्रों के संपर्क में रहें जिनसे सद्गुणों का निर्माण होता है।
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कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
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May 12, 2011

हिन्दी कविता-मिलावट और दिखावट (hindi kavita-milavat aur dikhavat)

हर शय में मिलावट हो गयी है
ऐसे में मुश्किल है शुद्ध इंसान की तलाश करना,
हमेशा ही बेकार कही गयी
बबूल के पेड़ से आम के फल की
आशा करना,
शैतानी नीयत सभी के दिल में है
चेहरे की भलमानस की अदाऐं
अब दिखावट हो गयी है।
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कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
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May 2, 2011

हास्य कविता-प्रेम और विवाह के फोटो सजाये रखना (hasya kavita-prem aur vivah ke foto sajaye rakhna)

टीवी पत्रकार ने कहा
अपने संपादक से
‘सर,
आप देखिए मैंने
राजघराने के राजकुमार के
विवाह प्रसंग को कितनी अच्छी तरह
अपने चैनल पर चलाया,
ढेर सारे विज्ञापन चलते रहे,
लोगों के मन में स्वयं
और औलादों की ऐसी ही शादी के
सपने मन ही मन पलते रहे,
हमने भी लिया विदेशी चैनलों से
सारा माल साभार,
हो गया अपने चैनल का बेड़ा मुफ्त में पार,
इसे कहते हैं कि हल्दी लगे न फिटकरी
रंग चोखा आया।’

सुनकर संपादक ने कहा
‘वैसे भी कौन हमारे समाचारों पर
कोई खर्चा आता है,
वह तो गनीमत समझो
कि मैंने तुम्हारी नौकरी का जुगाड़
प्रबंधकों से कर रखा है
वरना उनको तो तुम्हारा
वेतन देना भी भारी नज़र आता है,
वैसे भूल जाओ अब इस खबर को,
नहीं खींच सकते यह खबर ऐसे, जैसे रबड़ को,
अब कोई दूसरी सनसनी या रोमांचक
खबर जुटाने लग जाओ,
इस खबर को भी मत भुलाओ,
ध्यान में रखना
राजकुमार के प्रेम प्रसंग,
और सजनी से मिलन का रंग,
अभी हमने श्रृंगार रस से कार्यक्रंम सजाया,
इसलिये जवानों को बहुत भाया,
अब देखन कहीं इस प्रेम में विरह कब आता है,
धनपतियों और राजघरानों के रिश्तों में
कभी ठहराव न उनको न जनता को भाता है,
देखना कब विरह का रंग आता है,
फिर तलाक से भी पब्लिक का नाता है,
इस प्रेम प्रसंग और विवाह की फिल्म और फोटो
अपने पास संजोये रखना
देखे कब होता है हमारी सनसनी का पकना,
कभी प्रेम और विवाह का प्रसंग अधिक नहीं खिंचता
इसलिये उससे हमने इतना नहीं कमाया
जितना विरह से पाया,
जब होगा राजधराने में घरेलू झगड़ा
दर्शकों को देंगे सनसनी का झटका तगड़ा,
शादी एक दिन होती है,
पर झगड़े की बात बरसों तक
हमारे विज्ञापन ढोती है,
इसलिये बाकी खबरों में तलाश करते रहो,
कनखियों से राजघराने की तरफ भी तकते रहे,
प्रेम और शादी से अधिक प्रसंग
विरह का लंबा खिंच जाता है,
उससे ही हर प्रचारक अधिक कमाता है,
तलाक फैलाता है सनसनी,
मजा बढ़ाती है बड़े लोगों की तनातनी,
मैंने तुम्हें वही बात बताई,
जो अनुभव से पाई,
जब देखो राजकुमार और राजकुमारी का फुका चेहरा
समझ लो लंब समय तक
विज्ञापन चलाने के लिये
प्रसंग पाने का मौका पाया।’’
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कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
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