Aug 28, 2011

अन्ना हजारे की अनशन समाप्ति के मायने-हिन्दी संपादकीय लेख (anna hazare ka anshan samapt hone ke mayne-hindi sampadkiya lekh)

                अन्ना हजारे का अनशन समाप्त होने पर पूरे देश में जश्न मनाया जा रहा है। कोई इसे लोकतंत्र की जीत बता रहा है तो किसी का दावा है कि इस लोकचेतना का संचार हुआ है। भ्रष्टाचार रोकने के लिये जनलोकपाल बनाने को लेकर महाराष्ट्र के समाजसेवी अन्ना हजारे ने 12 दिन तक जमकर अनशन किया। अंततः कुछ आश्वासनों पर हजारे साहब ने बड़े राजनीतिक चातुर्य के साथ आधी जीत बताकर उसे समाप्त कर दिया। संविधान और राजनीतिक विश्लेषकों की बात माने तो आधी जीत तो दूर अभी उनका अभियान अपनी जगह से एक इंच हिला भी नहीं है। इतना ही नहीं अब कथित रूप से गैरराजनीतिक होने का दावा करने वाली उनकी कथित ‘अन्ना टीम’ अंततः परंपरागत राजीनीतिक दलों के शिखर पुरुषों में की दरबार में मदद मांगने भी जा पहंुची। जब देश में कानून बनाने में संसद सर्वोपरि है तो यह नहीं भूलना चाहिए कि वह दलीय राजनीतिक दलों के आधार पर ही गठित होती है। ऐसे में उनके साथ संवाद करना उस आदमी के लिये भी जरूरी होता है जो स्वयं गैरराजनीतिक है पर किसी जनसमस्या का हल चाहता है। दूसरी बात यह है कि अगर कोई समूह अपने मनपसंद का कानून बनाना चाहता है तो उसके पास चुनाव लड़ना ही एक जरिया है। किसी गैर राजनीतिक आंदोलन के माध्यम से कानून बनाना एक आत्ममुग्ध प्रक्रिया हो सकती है जिससे परिणाम प्रकट नहीं होता चाहे नारे कितने भी लग जायें। अन्ना की टीम यह जानती है और ऐसा लगता है कि कहंी न कहीं भविष्य के चुनाव उसकी नजर में है।

          अब हम जो देख रहे हैं तो लग रहा है कि अन्ना हजारे और अन्ना टीम दो अलग अलग केंद्र बन गये हैं। अन्ना टीम के सदस्य पेशेवर अभियानकर्ता हैं जबकि अन्ना स्वयं एक फकीर हैं। अलबत्ता राजनीतिक चातुर्य उनमें कूटकूटकर भरा ही यही कारण है कि उन्होंने पेशेवर अभियानकताओं की दाल नहीं गलने दी। इससे हुआ यह कि एक स्वामी नामधारी एक पेशेवर अभियानकर्ता उनसे नाराज हो गया। उसका सीडी जारी हो गया है जिसमें वह अपने किसी मित्र के साथ सहयोगियों की निंदा कर रहा है। सच तो यह है कि उसके शामिल होने की वजह से लोग इस आंदोलन को अनेक बुद्धिजीवी शक की नजर से देख रहे थे। कहने को वह जोगिया वस्त्र पहनता है भारतीय अध्यात्मिक दर्शन की निंदा उसके श्रीमुख से कई बार सुनी गयी है। उस पर यह आरोप लगता है कि वह समाज सेवा की आड़ के केवल दिखावा करता है। हमारा उसके चरित्र से मतलब नहीं है पर इतना जरूर अब लग रहा है कि आने वाले समय में अन्ना टीम को अनेक तरह के सवालों का सामना करना पड़ेगा।
       अन्ना हजारे ने कहा था कि यह आधी जीत है। लोग फूल रहे हैं। जश्न बनाये जा रहे हैं। विवेकशील लोगों के लिये इतना ही बहुत है कि अन्ना जी ने अनशन तोड़ दिया। दूसरी बात यह भी लग रही है परंपरागत समाज सेवी और राजनीतिक संगठन अब चेत गये हैं। अभी तक वह देश के जनमानस में फैले असंतोष का शायद सही अनुमान नहीं कर पाये थे जो अन्ना के अनशन के लिये शक्ति बना और अन्ना टीम उसके आधार पर ऐसा व्यवहार करने लगी कि वह कोई संवैधानिक संगठन है। वैसे हम यहां साफ कर दें कि इस अनशन की समाप्ति से कोई हारा नहीं है कि किसी को विजेता बताया जाये। अलबत्ता प्रचार माध्यमों के लिये यह अनशन महान कमाई का साधन बन गया। पूरे पंद्रह दिन तक उन्होंने इस प्रकरण को जिस तरह चलाया वह आश्चर्यजनक लगता है। अलबत्ता इस चक्कर में उन्होंने देश के संविधानिक संगठनों के महत्व को कम कर दिखाया। आज तो सारे चैनल दूसरी आजादी का जश्न मना रहे हैं। अब इस आजादी का मतलब कौन पूछे?
        भारतीय संसद और सत्ता प्रतिष्ठान से जुड़े लोगों के लिये यह एक दो दिन आत्म मंथन का समय है जब उनको प्रचार माध्यम हाशिए पर बैठा दिखा रहे हैं। विवेकवान लोग जानते हैं कि भारतीय संसद और सत्ता प्रतिष्ठान में अनेक बुद्धिमान लोग सक्रिय हैं। शीर्ष पदों पर है और अपनी चतुराई से उन्होंने इस आंदोलन की हवा निकाल दी है। यह अलग बात है कि इस आंदोलन की वजह से उनके मन में अब तेजी से जनकल्याण का भाव आया लगता है। इसमें कोई शक नहीं है कि हमारा संविधान हैं तो हम बचे हुए हैं और संसद और सत्ता प्रतिष्ठान कहीं न कहीं हमारे चुने हुए लोगों की सक्रियता के कारण चल रहे हैं।
पिछले 15 दिनों से परंपरागत राजनीतिक संगठन को शीर्ष पुरुषों ने शायद बहुत तनाव झेला होगा पर अब वह यकीनन चेत गये होंगे। अन्ना साहेब भले हैं पर उनकी टीम का का व्यवहार राजनीतिक रूप से अपरिपक्व हैं। सबसे बड़ी बात यह कि अन्ना अकेले अनशन कर रहे थे पर यह अन्ना की टीम केवल राजनीति करती दिखी। ऐसा लगा कि अन्ना का अनशन उनकी निजी जागीर हो। अभी एक स्वामी की हवा निकली है और अब उनका सामना देश के समस्त परंपरागत राजनीतिक संगठनों से होगा तो पता नहीं कितनों की हवा निकल जायेगी।     आखिरी बात यह है कि इस गलत फहमी में किसी को नहीं रहना चाहिए कि अन्ना टीम कोई हाथ पर हाथ धरे बैठेगी। ऐसा लगता है कि अगले चुनाव में इसके लोग मैदान में भी उतर सकते हैं। परंपरागत राजनीतिक दलों को उनकी इस बात पर यकीन नहीं करना चाहिए वह गैरराजनीतिक लोग हैं। दरअसल अन्ना टीम धीरे धीरे परंपरागत राजनीतिक संगठनों को अप्रासंगिक दर्शाते हुए जनता में उनकी छवि खराब करेगी फिर आखिर यही कहेगी कि चुनाव में हमें जितवाने के अलावा जनता के पास कोई चारा नहीं है।
          विवेकशील पुरुष इस बात से खुश हैं कि अन्ना साहेब के अनशन से देश भर में उपजा तनाव खत्म हो गया है पर जिस तरह इसकी कथित विजय पर जश्न मन रहा है वह शक पैदा करता है कि वाकई यह कोई भ्रष्टाचार की वास्तविक लड़ाई लड़ने वाले हैं। अब तो मामला चुनाव सुधार की तरफ मुड़ गया है। अन्ना साहेब भले हैं पर अपना राजनीतिक इस्तेमाल होने देते हैं। कोई उनको चला नहीं सकता यह सच है पर अपनी राजनीतिक मौज के चलते वह अपने चेलों की सहायता करते हैं। वह कहते हैं कि वह महात्मा गांधी के अनुयायी हैं और यह नहीं भूलना चाहिए कि उनकी छवि राजनीतिक संत की रही है। अन्ना साहब की वाक्पटुता गजब की है और उनका एक एक वाक्य जनमानस में प्रभाव डालता है। जब वह कहते हैं कि अभी अनशन स्थगित किया है खत्म नहीं किया तो समझना चाहिए कि उनकी राजनीतिक मौज का सिलसिला जारी रहेगा। यह स्पष्ट है कि अनशन की समाप्ति पर वह विवेकवान लोगों के नजरिये को समझते हैं पर यह भी जानते हैं कि उनके नाम से जुटी भीड़ नारों पर चलने और वादों में बहने वाली है इसलिये उसे अपने साथ बनाये रखने के लिये यह अहसास दिलाना जरूरी है कि आधी ही सही जीत जरूर हुई है।

अन्ना हजारे (अण्णा हज़ारे) का अनशन समाप्त होना स्वागतयोग्य-हिन्दी लेख (end of anna hazare fast and agitation-hindi lekh or article)               
       महाराष्ट्र के समाज सेवी अन्ना हजारे आज पूरे देश के जनमानस में ‘महानायक’ बन गये हैं। वजह साफ है कि देश में जन समस्यायें विकराल रूप ले चुकी हैं और इससे उपजा असंतोष उनके आंदोलन के लिये ऊर्जा का काम कर रहा है। पहले अप्रैल में उन्होंने अनशन किया और फिर अगस्त माह में उन्होंने अपने अनशन की घटना को दोहराया। जब अप्रेल   में उन्होंने अनशन आश्वासन समाप्त किया तब उनका मजाक उड़ाया गया था कि वह तो केवल प्रायोजित आंदोलन चला रहे हैं। अब की बार उन्होंने 12 दिन तक अनशन किया। इस अनशन से भारत ही नहीं बल्कि विश्व जनमानस पर पड़े प्रभावों का अध्ययन अभी किया जाना है क्योंकि इस प्रचार विदेशों तक हुआ है। फिर जिन लक्ष्यों को लेकर यह अनशन किया गया उनके पूरे होने की स्थिति अभी दूर दिखाई देती है मगर देश के चिंतकों के लिये इस समय उनकी उपेक्षा करना ही ठीक है। अन्ना हजारे के अनशन आंदोलित पूरे देश के लोगों ने उसकी समाप्ति पर विजयोन्माद का प्रदर्शन किया पर महानायक ने कहा‘‘यह जीत अभी अधूरी है और अभी मैंने अनशन स्थगित किया है समाप्त नहीं।’ इस बयान से एक बात तो समझ में आती है कि अन्ना साहेब में राजनीतिक चातुर्य कूट कूटकर भरा है।
              अन्ना साहेब के बारह दिनों तक चले अनशन में तमाम उतार चढ़ाव आये और अगर उनका उसे छोड़ना ही सफलता माना जाये तो कोई बुरी बात नहीं है। साथ ही लक्ष्य से संबंधित परिणामों पर दृष्टिपात न करना भी ठीक है। पूरे देश का जनमानस ही नहीं जनप्रतिनिधियों के मन में जो भारी तनाव इस दौरान दिखा वह चौंकाने वाला था। इसका कारण यह था कि हिन्दी प्रचार माध्यम निरंतर इससे जुड़े छोटे से छोटे से घटनाक्रम का प्रचार क्रिकेट मैच की तरह कर रहे थे गोया कि देश में अन्य कोई खबर नहीं हो।
            अगर हम तकनीकी दृष्टि से बात करें तो अन्ना साहेब के प्रस्तावित जनलोकपाल ने अभी एक इंच कदम ही बढ़ाया होगा पर अन्ना साहेब की गिरते स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से यह भारी सफलता है। हम तत्काल इस आंदोलन के परिणामों पर विचार कर सकते हैं पर ऐसे में हमारा चिंत्तन इसके दूरगामी प्रभावों को देख नहीं पायेगा।  इस आंदोलन के लेकर अनेक विवाद हैं पर यह तो इसके विरोधी भी स्वीकारते हैं कि इसके प्रभावों का अनदेखा करना ठीक नहीं है।
         प्रधानमंत्री श्रीमनमोहन सिंह की चिट्ठी मिलने के बाद श्री अन्ना साहेब न अनशन तोड़ा। अपने पत्र में प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह ने यह अच्छी बात कही है कि ‘संसद ने अपनी इच्छा व्यक्त कर दी है जो कि देश के लोगों की भी है।’’
           उनकी इस बात में कोई संदेह नहीं है और इस विषय पर संसद के शनिवार को अवकाश के दिन विशेष सत्र में सांसदों ने जिस तरह सोच समझ के साथ ही दलगत राजनीति से ऊपर उठकर अपने विचार जिस तरह दिये वह इसका प्रमाण भी है। संभव है विशेषाधिकार के कारण कुछ सांसदों के मन में अहंकार का भाव रहता हो पर कल सभी के चेहरे और वाणी से यही भाव दिखाई देता कि किस भी भी तरह इस 74 वर्षीय व्यक्ति का अनशन टूट जाये जो कि इस देश के जनमानस का ही भाव है। सच बात तो यह है कि इस बहस में आंदोलन से जुड़े संबंधित सभी तत्वों का सार दिखाई देता है। यही कारण है कि प्रचार माध्यमों के सहारे इस आंदोलन की सफलता की बात कही गयी। अनेक सांसदों ने इस आंदोलन के उन देशी विदेशी पूंजीपतियों से प्रायोजित होने की बात भी कही जो भारत की संसदीय प्रणाली पर नियंत्रण करना चाहते हैं। इसके बावजूद सभी ने श्री अन्ना हजारे के प्रति न केवल सभी ने सहानुभूति दिखाई बल्कि उनके चरित्र की महानता को स्वीकार भी किया। देश के जनमानस का अब ध्यान करना होगा यह बात कमोबेश सभी सांसदों  ने स्वीकार की और इस आंदोलन के अच्छे परिणाम के रूप में इसे माना जा सकता है।
           देश के जिन रणनीतिकारों ने इस विषय पर संसद का विशेष सत्र आयोजित करने की योजना बनाई हो वह बधाई के पात्र हैं क्योंकि श्री अन्ना साहेब की वजह से देश के युवा वर्ग ने उसे देखा और यकीनन उसकी लोकतांत्रिक व्यवस्था में रुचि बढ़ेगी। देश के संासदों में अनेक ऐसे हैं जिन्होंने इस बात को अनुभव किया कि अन्ना साहेब की देश में एक महानायक की छवि है और उन पर आक्षेप करने का मतलब होगा देश की आंदोलित युवा पीढ़ी के दिमाग में अपने लिये खराब विचार करना इसलिये शब्दों के चयन में सभी ने गंभीरता दिखाई। बहरहाल कुछ सांसदों ने प्रचार माध्यमों पर आंदोलन को अनावश्यक प्रचार का आरोप लगाया पर उन्हें यह भी याद रखना होगा इसी विषय पर हुए विशेष सत्र के बहाने उन्होंने पूरे देश को संबोधित करने का अवसर पाया जिसे इन्हीं प्रचार माध्यमों ने अपने समाचारों में स्थान दिया। यह अलग बात है कि इस दौरान उनके विज्ञापन भी अपना काम करते रहे। वैसे तो संसद की कार्यवाही चलती रहेगी पर इस तरह पूरे राष्ट्र को संबोधित करने का अवसर सांसदों के पास बहुत समय बाद आया। उनको इस बात पर भी प्रसन्न होने चाहिए कि अभी तक प्रत्यक्ष रूप से राष्ट्र को संबोधित न करने के कारण जनप्रतिनिधियों पर देश के जनमानस की उपेक्षा का आरोप लगता है वह इस अवसर के कारण धुल गया क्योंकि उन्होंने देश की इच्छा को ही व्यक्त किया।
         हम जैसे आम लेखकों के पास इंटरनेट और प्रचार माध्यम ही है जिसके माध्यम से विचारणीय सामग्री मिलती है यह अलग बात है कि उसे छांटना पड़ता है। होता यह है कि समाचार पत्र और टीवी चैनल अपनी रोचकता का स्तर बनाये रखने के लिये किसी एक घटना में बहुत सारे पैंच बना देते हैं और फिर अलग अलग प्रस्तुति करने लगते हैं। सामग्री में दोहराव होता है और जब पाठकों और दर्शकों के अधिक जुड़ने की संभावना होती है तो उनके विज्ञापन भी बढ़ जाते हैं। समस्त प्रचार माध्यम धनपतियों के हाथ में और यही कारण है कि अन्ना साहेब के आंदोलन के प्रायोजन की शंका अनेक बुद्धिमान लोगों के दिमाग में आती है। इसमें कुछ अंश सच हो सकता है पर एक बात यह है अन्ना साहेब एक सशक्त चरित्र के स्वामी हैं।
             आखिरी बात यह है कि भोगी कितना भी बड़ा पद पा जाये वह बड़ा नहीं कहा जा सकता। बड़ा तो त्यागी ही कहलायेगा। यह नहीं भूलना चाहिए कि अन्ना साहेब ने अन्न का त्याग किया था। पूरे 12 दिन तक अन्न का त्याग करना आसान काम नहीं है। हम जैसे लोग तो कुछ ही घंटों में वायु विकार का शिकार हो जाते हैं। अन्ना साहेब ने एक ऐसे भारत की कल्पना लोगों के सामने प्रस्तुत की है जो अभी स्वप्न ही लगता है पर सबसे बड़ी बात वह अभी अपने प्रयास जारी रखने की बात भी कह रहे हैं। मुश्किल यह है कि वह अनशन शुरु कर देते हैं तब आदमी का हृदय कांपने लगता है। यही कारण है कि उनका अनशन टूटना भी ही लोगों में विजयोन्माद पैदा कर रहा है। उन्होंने जिस तरह आज की युवा पीढ़ी को वैचारिक रूप से सशक्त बनाया उसकी प्रशंसा तो की ही जाना चाहिए जो कि अंततः हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था के वाहक हैं।
लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
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Aug 16, 2011

अन्ना हजारे (अण्णा हजारे) की ध्यान मुद्रा दिलचस्प रही-हिन्दी लेख (anna hazare kee dhyan mudra-hindi lekh)

         समसामयिक विषयों पर लिखना इसलिये भी व्यर्थ लगता है क्योंकि उसको कुछ समय बाद पढ़ने पर ही बासीपन का अहसास होता है। किस्सा अन्ना हजारे साहेब की गिरफ्तारी और रिहाई का है। सुबह उनकी गिरफ्तारी की खबर पर उस पर लिखने की बात समझ में नहीं आयी क्योंकि हमें पता था कि समसामयिक घटनाओं में दिन भर में बहुत सारा बदलाव आता है। शाम को जब लौटे तो उनके रिहा होने की खबर मिली। इसका मतलब गिरफ्तारी पर लिखते तो वह शाम तक बासी हो जाता।उससे पहले भी उन्होंने एक आंदोलन किया था जिस पर हमने लिखा। वह सामयिक था पर अभी भी पढ़ा जा रहा था। इंटरनेट पर जहां यह सुविधा कि किसी विषय पर आपके हाथ से लिखा कभी पढ़ा जा सकता है तो यह समस्या भी है कि वह तब भी पढ़ा जायेगा जब उसे पढ़ने की अवधि निकल चुकी हो।
           इधर अन्ना साहेब का भारतीय प्रचार माध्यमों पर फिर जोरदार ढंग से अवतरण हुआ। उनके आंदोलन की बात सामने आयी। तब समझ में नहीं आ रहा था कि उसके परिणामों पर क्या अनुमान जतायें। इस पर एक लेख तीन चार दिन पहले तब लिखा था जब उनके प्रचार ने अभी गति नहीं पकड़ी थी। जैसे ही प्रचार ने जोर पकड़ा तो एकदम उस पर पाठक आ गये। अन्य कई लेख भी आये पर उनकी अवधि बीत चुकी थी। इस आंदोलन को लेकर हमारा नजरिया दूसरा है। अगर अन्ना हज़ारे साहब के आंदोलन से देश में कुछ बदलाव आये तो हम खुश होंगे पर अभी निकट भविष्य में ऐसी कोई संभावना नहीं है। उनकी मांगों पर विवाद है और इस देश की समस्या यही है कि यहां आदमी समाज हित की बात इसी शर्त पर सोचता है कि उसे नाम या नामा मिले तभी करेगा। खास आदमी अधिक चाहता है तो आम आदमी भी कम से कम चाहता है। सीधी बात कहें तो समाज की सोच में ही दोष है इसलिये जब तक उसमें बदलाव नहीं आयेगा सारी बातें हवा होती दिखेंगी। बहरहाल अन्ना साहेब के प्रयासों से उनको उनको देश में अच्छी खासी लोकप्रियता मिली। 15 अगस्त से पूर्व गांधी समाधि पर जाकर उन्होंने जाकर जो ढाई घंटे तक ध्यान लगाया वह दर्शनीय था। देखा जाये तो उनको भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन सांसरिक विषय है पर ध्यान एकदम अध्यात्मिक क्रिया है। अन्ना की देश में लोकप्रियता है और अगर इस बहाने ध्यान पद्धति का प्रचार हो जाये तो बहुत अच्छा रहेगा। सांसरिक विषय कभी समाप्त नहीं होते पर ध्यान सिद्धि हो तो वह आदमी को अनेक पीड़ाओं से मुक्ति दिलाती है।
            इस प्रसंग में बाबा रामदेव की बात की जाये। अभी तक उनकी लोकप्रियता उनके योग प्रशिक्षण की वजह से थी और राजनीतिक दल बनाने या भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से उसमें एक प्रतिशत भी वृद्धि नहीं हुई। हम जैसे लोग उनकी अध्यात्मिक छवि की प्रशंसा करते हैं। योग साधना से व्यक्ति निर्माण होता है यह अलग बात है कि उसका अहसास नहीं होता। व्यक्ति निर्माण से समाज में स्वतः स्फृर्ति का संचार होता है। वैसे बाबा रामदेव के आलोचक उनको व्यायाम शिक्षक की उपाधि तक ही सीमित मानते हैं। दरअसल बाबा रामदेव अपने प्रशिक्षण में ध्यान की उस शक्ति की बात नहीं करते जो वाकई मनुष्य को तेजस्वी बनाती है। हमें यह पता नहीं था कि अन्ना हजारे साहिब भी ध्यान की कला में दक्ष हैं। देखा तो अच्छा लगा।
              उनके ध्यान की मुद्रा वाकई बहुत दर्शनीय थी। हमारी अनुभूति के अनुसार ध्यान के बाद संविधान क्लब पर उनका जो भाषण हुआ वह अन्य भाषणों से अलग था। उन्होंने इस भाषण में जनलोकपाल की ही नहीं बल्कि व्यवस्था परिवर्तन की बात भी कही जो शायद हमने अभी तक उनके मुख से नहीं सुनी थी। तब हम सोच रहे थे कि उनके अंदर इस नवीन विचार का संचार क्या यह उनके ध्यान का परिणाम था?
          मान लीजिये वह अपने पूर्ववर्ती आंदोलनों से विख्यात नहीं भी होते और ध्यान की कला का प्रशिक्षण देते होते तो शायद वह बाबा रामदेव की तरह ही लोकप्रिय होते। बहरहाल इन दोनों  महानुभावों के प्रति हमारे मन में आकर्षण उनके सांसरिक विषयों से अधिक योग साधना और ध्यान की वजह से अधिक है। हमारा मानना है कि अध्यात्मिक विषयों में पारंगत विषय सांसरिक विषयों से परे तो नहीं भागता पर उन पर इस तरह नियंत्रण रखता है कि उनमें ऊंच नीच की चिंता उनको नहंी होती। बहरहाल जब हम सांसरिक विषयों पर लिखते हैं तो इस बात को नहीं भूलते कि उसका अध्यात्मिक पक्ष भी लिखना चाहिए। हमारा देश लोकतांत्रिक है इसलिये यहां आंदोलन तो चलते ही रहेंगे। विवाद भी होंगे पर उनसे जुड़े पात्रों का अध्यात्मिक पक्ष देखन रुचिकर लगता है। सच बात तो यह है कि जब हमने उनको ध्यान लगाते देखा तो फिर उनके सांसरिक विषयों से ध्यान हटकर उनकी अध्यात्मिक शक्ति की तरफ आकृष्ट हो गया। यही कारण है कि इस लेख में उनके सांसरिक विषय से अधिक ध्यान की मुद्रा पर लिखने की प्रेरणा मिली।
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Aug 8, 2011

जनभक्षी-हिन्दी व्यंग्य शायरियाँ (janbhakshi-hindi vyangya shayriyan)

जन जन के भले की बात करते हुए
कई फरिश्ते जनभक्षी हो गए हैं,
दाने खिलाने के लिए हाथ फैलाते हैं
जिनको खिलाने के लिए
वही जन उनके लिए
शिकार करने वाले पक्षी हो गए हैं।
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नरभक्षियों का समय गया
अब खतरा जनभक्षियों का हो गया है,
चेहरे काले नहीं खूबसूरत हैं,
हाथों में तलवार की जगह
जुबान के हर शब्द में प्यार है,
मगर जन जन के भले की बात
करने वाले इन फरिश्तों के लिए
आम इंसान
शिकार करने लायक पक्षियों जैसा हो गया है।
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Aug 2, 2011

ख्याली रोटियाँ कभी नहीं पक पाएँगी-हिन्दी व्यंग्य कविता (khyali rotiyan pak nahin paengi-hindi vyangya kavita)

पत्थरों पर है टिकी है आस्था
उन पर पाँव मत रखना
वरना टूट जाएंगी,
धरती को चाहे जितना रौंदते रहो
मगर पर्दे पर चमकने वाली
देवियों पर से नज़र मत हटाना
वरना खुशियां रूठ जाएंगी।
सुना रहे हैं रोज
एक नया आसमानी सच
बाज़ार के सौदागरों के भौपू
उन पर ही कान धरना
वरना तरक्की की उम्मीदें रूठ जाएंगी।
यह अलग बात है
लुटते रहोगे हमेशा
ख्याली रोटियाँ कभी नहीं पक पाएँगी।
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