May 14, 2014

विकास के दावे और हालात-हिन्दी व्यंग्य कविता(vikas ke dawe aur halat-hindi vyangya kavita)



सड़क पर चलते हुए लड़खड़ाती टांगें
आदमी को लंगड़ा बना देती हैं,
पर्दे पर बैठा वह शख्स कौन है जो विकास के दावे कर रहा है।
आदमी सस्ता हो गया है
संवदेनशीलता बहुत महंगी हो गयी है,
पर्दे पर बैठा वह शख्स कौन है जो विकास के दावे कर रहा है।
कई छोटे मकान ढहाकर बन रही एक इमारत
बेघर लोग ढूंढ रहे अपने घर का पता
पर्दे पर बैठा वह शख्स कौन है जो विकास के दावे कर रहा है।
कहें दीपक बापू प्यास लगने पर सूखे प्याऊ चिढ़ाते हैं
पैसे हाथ में पकड़े ढूंढ रहे  पानी की बोतल की दुकान
पर्दे पर बैठा वह शख्स कौन है जो विकास के दावे कर रहा है।
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 कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'

ग्वालियर, मध्य प्रदेश

कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com

May 9, 2014

समाज सेवा के कार्यक्रम-हिन्दी कविता(samaj sewa ka karyakram-hindi kavita)



सभी जाति के सहारे हैं,
कोई लोग धर्म के मारे हैं,
कसमें खाते हैं ज़माने के कल्याण का
उनके कंधे पर टंगे बस्ते में रखे बस कुछ नारे हैं।
कहें दीपक बापू समाज सेवा के चलते धारावाहिक कार्यक्रम
फिर भी गरीबी और बीमारी मिटती नहीं है,
हर समस्या के निवारण का उपाय बरसों से जारी
मगर वह पिटती नहीं है,
अपनी तारीफ सुनने की चाहत सभी में है
नहीं है फुरसत किसी को अपने काम से
सभी अपनी अपनी नीयत के मारे हैं।
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 कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'

ग्वालियर, मध्य प्रदेश

कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com