May 26, 2021

कोरोना की चाल हॉलीवुड की फिल्म से मिलती क्यों-एक रोचक लेख (Coroan And hollywood film "Kingsman The Golden Circle"-A ariticle)

 कल हमने एक हॉलीवुड फिल्म #Kingsman The Golden Circleदेखी। पता नहीं यह संयोग था या प्रयोग। हम कोरोना तथा उसके प्रचार को जिस तरह देख रहे हैं, इसकी विषय वस्तु हमारी उस राय से मेल खाती है। फिल्म में एक खलनायिका एक खतरनाक ड्रग्स बेचती है जिससे व्यक्ति की त्वचा बिगड़ जाती है और वह मरने का इंतजार करने लगता है। उसके इलाज का भी उसने इंतजाम किया है और वह एक राष्ट्रध्यक्ष को ब्लैकमेल करती है कि यदि वह अपनी जनता को बचाना चाहता है तो एक बड़ी रकम उसके खाते में जमा करे। उसके तत्काल बाद उसके दवाओं से भरे ड्रोन उन ठिकानों पर पहुंच जायेंगे जहां बीमार बंद हैं। ठीक वैसे ही जैसे चीन में कोरोना मरीज बंद किये जा रहे थे।

यह फिल्म 20 जनवरी 2020 में लोड की गयी। हम हॉलीवुड फिल्म देखते रहते हैं तो यूट्यूब हमारे सामने इनका लाता रहता है। यह फिल्म जिस तरह हमारे सामने आयी तो हमने खोलकर देखा। हमने सोचा कुछ देखकर बंद कर देंगे। जैसे फिल्म आगे बड़ी हमें लगा कि ड्रग्स का मामला है। चलो थोड़ा देख लेते हैं। किश्तों में फिल्म देखी।  ऐसा लग रहा था जैसे कोरोना का विषय कुछ इसी तरह चल रहा है। जिस तरह भारत का बीमार बाज़ार विदेशी दवाओं का गुलाम बना है उससे शक होता है कि क्या कोई पटकथा लिखकर फंसाया गया है। कहां हम स्वदेश वैक्सीन की तरफ बढ़ रहे थे और कहां अब विदेशों से भीख मांग रहे हैं। ऐसा लगा रहा था कि फिल्म की खलनायिका कोई अमेरिका, यूरोप, रूस तथा चीन का परिचायक हो। बहरहाल आप मानते हैं कि कोरोना एक बीमारी है तो इसे न देखें पर हम जैस थोड़े सिरफिरे हैं तो यह फिल्म देखें। याद रखें हमारा नजरिया हमेशा ही  उस प्रचार से अलग रहा है जिस पर आप यकीन करते हैं।

कोरोना वायरस के अनुसंधान से इलाज कम भ्रम ज्यादा हो रहा है-1

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कोरोना वायरस को लेकर हमारी सोच अलग है।  जिस तरह अंग्रेजी स्वास्थ्य विशेषज्ञ इस पर अपना शोध प्रस्तुत कर रहे हैं उससे लगता है कि उनमें भ्रम की स्थिति है। हम अपने भारतीय दर्शन तथा योग के अभ्यास से जब इस संक्रमण को देखते हैं तो लगता है कि अंग्रेजी स्वास्थ्य सोच केवल हवाबाजी है।

इन्हीं अंग्रेजी विशेषज्ञो के अनुसार यह संकमण देह में नमी के अभाव में पनपता है तथा दूसरा यह भी कि अन्य रोग हो तो यह उसके लिये खाद्य पानी का काम करता है। इन्हीं विशेषज्ञों के अनुसार अगर यह संक्रमण हो जाये तो आदमी एकांत में रहकर स्वय से दूसरे के भी बचाये। नियमित भोजन पानी का सेवन करे तो वह पंद्रह दिन में ठीक हो जायेगा।

अब हम आज की स्थिति देखें तो ग्रीष्मकाल है और देह में स्वाभाविक रूप से नमी है तब यह संक्र्रमण कम जानलेवा लग रहा है। संभव है अनेक लोगों में मौजूद हो पर स्वतः ही 14 दिन में समाप्त हो जाये।  समस्या आयेगी जुलाई अगस्त और सिंतम्बर में जब हमारे शरीर में नमी कम हो जाती है। भोजन छोड़िये पानी भी देह कठिनाई से पचाती है।  संक्रमण के क्रम में जब उस समय यह वायरस जिसके शरीर में होगा उसे बहुत मुश्किल होगी। शायद यही कारण है सरकार के कुछ विशेषज्ञ उस समय की तैयारी कर रहे हैं। 

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Sep 16, 2020

भारत-चीन सीमा विवाद पर लिखे गये दो लेख ( Two Hindi Article on India-China Bordet ternsion

भारत चीन सीमा पर गोली चलाने की खबर सात दिन बाद आये तो समझ लो वहां नित कुछ बड़ा चल रहा है। ------------------ 
          विरोधी नेता एवं पत्रकार एकदम चीन का मोर्चा संभाल रहे हैं। मोदी कभी चीन का नाम नहीं लेते? सीमा में चीन अंदर घुस आया है उसे बाहर कब करोगे? सरकार सीमा की सही स्थिति क्यो नहीं बताती? इन सवालों का जवाब चीन उगलवाना चाहता है। आज विदेशमंत्रालय ने साफ किया कि छह माह से चीन की तरफ से भारतीय सीमा में घुसपैठ नहीं हुई। अब बताईये अगर यह सरकार आधिकारिक रूप से यह बात बाहर कहेगी तो दूसरे सवाल आयेंगे। हमारा मानना है कि भारतीय सेना कुछ ऐसा कर रही है जिसे सार्वजनिक करना शायद अभी ठीक नहीं है। उसने चीन की ताकत सूंघ ली है। चीनी सोशल मीडिया रूस को कोस रहा है, इसका मतलब यह कि कुछ ऐसा हुआ है कि जो चीन के लिये कष्टदायी है। सच यह है कि 1़962 में चीन ने भारतीय नेताओं का दबाकर चीन के सामने घुटने टिकवाये थे वही अब चीन से कह रहा है कि तुम घुटने टेको। उसका हुकुम मानने की ताकत चीन में नहीं है। नहीं मानेगा तो भारत से होने वाली पिटाई से उसकी पूरी इज्जत खराब होगी। कम से कम वह इस बार कैलाश मानसरोवर जरूर गंवायेगा। उसे पहले तय सीमा से काफी पीछे जाना पड़ेगा। शीजिनपिंग के सैनिक अधिकारी उन्हें सही जानकारी नहीं दे रहे। भारतीय सेना बहुत दूर तक निकल गयी है या पहुंचने वाली है। इसका कारण यह है कि स्वयं को एकमेव सर्वोच्च मानने वाले जिनपिंग अपनी सेना और पार्टी के पदाधिकारियों की पदोन्नति के अवसरों को अवरुद्ध कर दिया है वही चाहते हैं कि शीजिनपिंग पिटे तो हमारा रास्ता खुले। भारत में विरोधी सवाल पूछ रहे हैं पर भारत का कोई अधिकारी कैसा बता सकता है कि उसके सैनिक कैसे लड़ रहे हैं? विश्व में सौम्य दिखना है तो अपनी आक्रामकता छिपानी पड़ती है। मोदीजी की जिनपिंग से 18 मुलाकातें की हैं, और वह समझ गये हैं कि इस आदमी का सच क्या है? तानाशाही का यही परिणाम होता है कि एक व्यक्ति सबकुछ होता है उसके दोष का कोई भी फायदा उठाकर पूरे देश को जीत सकता है।
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भारत चीन विवाद में भारत के रणनीतिकार प्रतिकियात्मक बयान दे रहे हैं। सेना से कहते हैं कि आक्रामक रहो स्वयं सुरक्षात्मक रहना चाहते हैं। मोदी जी चीन को यह बता दें कि भारत तिब्बत को उसका हिस्सा नहीं मानता। अभी अरूणांचल के लिये जूझ रहा चीन सीधा हो जायेगा। याद रहे चीन तभी से आक्रामक हुआ है जब से भारत ने तिब्बत पर चीन का आधिपत्य स्वीकार किया है। यह शुभ कार्य स्वयगीय प्रधानमंत्री राजीवगांधी ने किया था। आजतक लोगों का यह समझ में नहीं आया था यह उन्होंने क्यों किया? समझौत में लिया दिया जाता है पर उन्होंने तो सबकुछ दे दिया। चीन को पस्त करने के विषय में एक समस्या मोदी जी के सामने दूसरी भी है। भारत के वार्ताकार नयी शिक्षा से सराबोर हैं। धर्मनिरपेक्ष दिखना चाहते हैं। चीन तो चार पांच सो साल पुराने कागज ले आता है पर यह वार्ताकार हिन्दूत्ववादी होने के डर से प्राचीन भारतीय ग्रंथ नहीं ले जा सकते जिसमें मानसरोवर स्पष्टत भारत का हिस्सा माना जाता है। एक बार मोदी जी चीन को बता दें कि यह तो हमारे भगवान शिव का स्थाई वास है यह हमारा है पर शायद न कह पायें। इस पर पूरी दुनियां में उन पर हिन्दुत्ववादी होने ठप्पा लग जायेगा। भारत के ही उदारवादी चिल्लायेंगे कि यह कल्पना है। मगर मोदी मोदी हैं। उनके तरकश में उससे ज्यादा वैचारिक तीर हैं जो शायद आज किसी अन्य देश के राष्ट्रध्यक्ष के पास नहीं होंगे। भारत-चीन प्रचार युद्ध में ऐसा पहली बार हो रहा है कि चीन के गलवान टाइम्स की धमकियों का प्रभाव बौद्धिक जनमानस पर नहीं पड़ रहा है। पहले उसकी एक टिप्पणी से यहां लोग सिहर जाते थे। बहरहाल गलवान टाईम्स के बयानों से हम यह समझ में आ रहा है कि चीन भारत से वाकई डर गया है। दोनों में युद्ध अनवरत युद्ध चल रहा है। जिस तरह भारतीय नेता बयान दे रहे हैं वह बड़े ठंडे स्वर में पर गहरी मार वाले हैं। वरना गरजने वाले राजनाथसिंह इतने ठंडे स्वर में चीन पर आरोप नहीं लगाते।

May 28, 2019

मत का अधिकार था भगवान हुए मतदाता-दीपकबापूवाणी (Matadata ka Adhikar thaa Bhagwan hue Matdata-DeepakBapuwani)

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ज़माने पर सवाल पर सवालसभी उठाते, अपने बारे में कोई पूछे झूठे जवाब जुटाते।
‘दीपकबापू’ झांक रहे सभी दूसरे के घरों में, गैर के दर्द पर अपनी खुशी लुटाते।।
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मत का अधिकार था भगवान हुए मतदाता, एक बार बटन दबाया बंद हो गया खाता।
‘दीपकबापू’ पांच बरस तक सोये लोकतंत्र, वातानुकूलित कक्ष से फिर नंहीं बाहर आता।।
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अपने मुंह से सौ बार एक झूठ कह देते, भले लोग भी सच मानकर सह लेते।
‘दीपकबापू’ चेतना रख दी लालच में गिरवी, रुपये लेकर मजबूर जैसे रह लेते।।
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जीने के तरीके बदले मगर दिल पुराना चाहें, दिमाग बेकाबू कांप रहीं बेकाम बाहें।
‘दीपकबापू’ बेकार ढूंढते हमदर्द ज़माने में, मिले हमराही वही भटके अपनी जो राहें।।
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इधर उधर की बात पर होते झगड़े, सहने की शक्ति नहीं वाक्प्रहार करते तगड़े।
‘दीपकबापू’ भलाई के लिये निकले वह, जिन्होंने अपने पांव तले कई बेबस रगड़े।।
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जिंदगी में जीत हार के हिसाब लगाते, रुपये के आंकड़े से अपना दिमाग जगाते।
‘दीपकबापू’ हर पल खोये रहते सपनों में, झूठी चिंतओं से स्वयं को सदा ठगाते।।
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गरीब हो या अमीर दिल में अभाव हैं पाले, सब है पर किसी कमी का ताव हैं डाले।
‘दीपकबापू’ घर में कबाड़ भरा छत तक, तब भी नयी चीज खोजने का दाव हैं डाले।।
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कच्चे धागे जैसी जिंदगी पक्के मकान में रखी, सदा धन कमाते रहते रोती सांस सखी।
भटकता मन ढूंढे हर जगह अपने लिये मस्ती, ‘दीपकबापू’ कभी सुख की बूंद न चखी।।
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पद चलें तो छोटे उड़े जो वह लोग बड़े हैं, भगवान के दर लेकर मन के रोग खड़े हैं।
‘दीपकबापू’ भीड़ में तन्हाई से ऊबे सभी, चले जाते वहां जहां भरी पंगत में भोग पड़े हैं।।
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अपने भय से छिपते जमाने को छलिया बतायें, कमजोर छवि अपनी गैरों का दोष बतायें।
‘दीपकबापू’ तकनीकी युग ने बदला चलन, पुरानी चाल से हारें मशीने पर गुस्सा जतायें।।
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Mar 28, 2019

राजकाज की समझ नहीं फिर भी सम्मान चाहें-दीपकबापूवाणी (Rajkar ki Samajh nahin Fir bhee samman chahen)-DeepakBapuWani

मन की बात सभी कर लेते, किसी के कहे पर अपने कान हमेशा फेर लेते।
‘दीपकबापू’ रोना हंसना बेचने में बहुत माहिर, जज़्बात का बाज़ार घेर लेते।।
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विज्ञापन के बीच बहस में चीख मची है, शोर से दिमाग लूटो यही सीख बची है।
पेशेवर लेते भलाई का ठेका, ‘दीपकबापू’ भक्तों को राम नाम भीख ही पची है।।
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राजकाज की समझ नहीं फिर भी सम्मान चाहें, अपनी नाक दिखाते कांपती बाहें।
‘दीपकबापू’ सिंहासनों पर बैठे बरसों बेकार, मन नहीं भरा ढूंढे कुर्सी की नई राहे।।
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बांचा ज्ञान बेचकर भी धंधा होय, वक्ता हुए साहुकार श्रोता भी अश्रोता होय।
‘दीपकबापू’ रोतन की भीड़ लगी सब जगह, एकांत आनंद से हंसे ज्ञानी सोय।।
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अपना काम अपने मुख से सुनाये, किताबी ज्ञान बाज़ार में सुनाकर नाम भुनायें।
‘दीपकबापू’ रातभर जागें सुबह नींद करते, भीड़ में स्वास्थ्य के नुस्खे गुनगुनायें।।

दुधिया रौशनी में पत्थर चमकते लगें, सूरज के उगते अपने सत्य के साथ जगें।
‘दीपकबापू’ दिल बहलाने के लिये भागे फिरें, लौटें घर लोग फिर ऊबें तब भगें।।

Apr 26, 2018

जवानी भी नशे में चूर होती-दीपकबापूवाणी (Jawani Bhi nashe mein chooh hotee=DeepakBapuwani)


जवानी भी नशे में चूर होती
किस्मत है कि जोश में भटके नहीं।
‘दीपकबापू’ साथ ईमान नाम भी खो देते
वह भले जो इश्क में अटके नहीं।
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अन्न जल दे रही धरा आसानी से
इंसान इसका मान नहीं करता
‘दीपकबापू’ आकाश से मांग रहा
मिला जो उसकी शान नहीं करता।
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हम सवाल करें वह भी सवाल करें,
जवाब के बदल आहें भरते हैं।
‘दीपकबापू’ े किताब से कमाई अक्ल
चिंताओं पर बस सलाहें करते हैं।
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शहीदों के याद में मेले लगाते,
आत्मप्रचार के शब्द भी पेले जाते।
कहें दीपकबापू दिल कुर्सी पर
जुबान से सपनों के ठेले लगाते।
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नाग सांप बिच्छू की आपस में लड़ाई,
चिड़िया किसे कोसे किसकी करे बड़ाई।
कहें दीपकबापू अच्छा है दाना चुगे
 ढूंढे अपना चूल्हा अपनी कड़ाई।
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जज़्बातों की गहराई मालुम नहीं
दर्द के अहसास का पैमाना न जाने।
कहें दीपकबापू रसस्वाद रहित दिल
श्रृगार गीत हास्य का ताना न माने।
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जिनसे उन्हें बहुत फायदे हैं,
उनके लिये ढूंढे बहुत वायदे हैं।
कहें दीपकबापू जो कंधा मददगार
उसे गिराने के भी कायदे हैं।
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जब अपना दर्द भूलाना चाहें,
ढूंढते दिल बहलाने की राहें।
कहें दीपकबापू तरीक एक ही
बेचैन गले लग मिलायें बाहें।
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