जवानी भी नशे में चूर होती
किस्मत है कि जोश में भटके नहीं।
‘दीपकबापू’ साथ ईमान नाम भी खो देते
वह भले जो इश्क में अटके नहीं।
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अन्न जल दे रही धरा आसानी से
इंसान इसका मान नहीं करता
‘दीपकबापू’ आकाश से मांग रहा
मिला जो उसकी शान नहीं करता।
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हम सवाल करें वह भी सवाल करें,
जवाब के बदल आहें भरते हैं।
‘दीपकबापू’ े किताब से कमाई अक्ल
चिंताओं पर बस सलाहें करते हैं।
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शहीदों के याद में मेले लगाते,
आत्मप्रचार के शब्द भी पेले जाते।
कहें दीपकबापू दिल कुर्सी पर
जुबान से सपनों के ठेले लगाते।
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नाग सांप बिच्छू की आपस में लड़ाई,
चिड़िया किसे कोसे किसकी करे बड़ाई।
कहें दीपकबापू अच्छा है दाना चुगे
ढूंढे अपना चूल्हा अपनी कड़ाई।
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जज़्बातों की गहराई मालुम नहीं
दर्द के अहसास का पैमाना न जाने।
कहें दीपकबापू रसस्वाद रहित दिल
श्रृगार गीत हास्य का ताना न माने।
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जिनसे उन्हें बहुत फायदे हैं,
उनके लिये ढूंढे बहुत वायदे हैं।
कहें दीपकबापू जो कंधा मददगार
उसे गिराने के भी कायदे हैं।
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जब अपना दर्द भूलाना चाहें,
ढूंढते दिल बहलाने की राहें।
कहें दीपकबापू तरीक एक ही
बेचैन गले लग मिलायें बाहें।
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