Aug 31, 2008

छटांक भर का रोग बचाकर लाये-हास्य व्यंग्य

मेरे मित्र ने कहा-‘कल कोई एक निबंध लिख कर लाना। मेरे बेटी वाद विवाद प्रतियोगिता में भाग लेने वाली है तो उसे याद कर बोलेगी।’
उसने विषय बता दिया। अगले दिन मैंने उसे एक कागज पकड़ाया तो उसने मुझसे कहा-‘ऐ भाई! मैंने तुम्हें निबंध लिखने के लिये कहा था। यह क्या छटांक भर लिख कर लाये हो। क्या ब्लाग पर छटांक भर लिखते हुए एक किलो का लिखना भूल गये।’

हमने कुछ सुना कुछ नहीं। बात उससे आगे बढ़ी ही नहीं। छटांक भर शब्द पर ही हम अटक गये। क्या जोरदार शब्द था ‘छटांक भर’। अब तो हमने तय किया कि जब भी लिखेंगे छटांक भर ही लिखेंगे। इस शब्द में इतना आकर्षण लगा कि जब भी कोई हमारे ब्लाग से अंतर्जाल पर टकरायेगा यह शब्द पढ़कर जरूर पढ़ने के लिये प्रेरित होगा। जब से अंतर्जाल पर ब्लाग लिखना शुरू किया है तब से इसी फिराक में रहते हैं कि कोई ऐसा शब्द या पंक्ति हाथ लग जाये जिससे हम हिट हो जायें।

बहरहाल मित्र को दोबारा लिखने का आश्वासन दिया। उसके बाद घर आकर एक पुराना लेख निकाला। वह उसी विषय संबंधित था और उसे सौंप दिया। उसने पूछा कि ‘इतनी जल्दी कैसे लिख लिया’।
‘छटांक भर का काम था, इसमें हमें देर क्या लगती है।’हमने कहा
वह बोला-‘अगर यह छटांक भर का काम है तो कल वाले की तौल क्या होगी? उसका तो बांट भी नहीं मिलेगा।’
मैंने कहा-‘मेरे लिये तो सब छंटाक भर है।’
बस तबसे हमारे दिमाग में छटांक भर शब्द को अपना हथियार बना लिया।
कल एक चाय की दुकान पर गये। वहां चाय वाले से कहा-‘देना भई, छटांक भर चाय पिला देना।’
चाय वाला हमें घूर कर देखने लगा और बोला-‘बाबूजी, यह छटांक भर चाय का क्या मतलब है?’
हमने कहा-‘तुम तो रोज पिलाते हो भूल गये क्या?’
वह बोला-‘बाबूजी, तो आप कट चाय बोलिये ना! छटांक भर से मैं कन्फ्यूज हो गया।’
वह चला गया तो हमने उसे यहां काम करने वाले आदमी से कहा-‘भाई, जरा छटांक भर पानी पिला देना।’
वह भी घूर घूर कर हमें देखने लगा। हमने कहा-‘सुना नहीं। छटांक भर पानी पिला देना।’
वह बोला-‘पर छटांक भर पानी तोल कर कैसे लाऊं। वह तो ग्लास मेंे ही आयेगा।’
हमने कहा-‘तुम्हारा ग्लास ही तो छटांक भर का है। ले आओ उसी में।’
उसी समय हमारा वह मित्र भी आ गया। उसने आते ही चाय वाले को दो कप चाय लाने का आदेश दिया और हमारे सामने बैठ गया।
चाय पीते हुए हमने उससे एक आदमी की चर्चा करते हुए कहा-‘उसका छटांक भर फोन नंबर तो देना।’
वह बोला-मेरे पास नहीं है।’
हमने कहा-‘छटांक भर पता ही दे दो।
वह बोला-‘यह छटांक भर का क्या मतलब। पूरा का पूरा ही ले लो एक किलो का। वैसे मैंने तो मजाक में ही कह दिया था छटांक भर तुम तो उसे पकड़ कर बैठ गये।’
मैंने कहा-‘मैंने तो तुमसे कुछ कहा ही नहीं। छटांक भर बहुत हिट शब्द लगा सो पकड़ लिया। अधिक परेशान न होना। अगर हमारे ब्लाग खोलोगे तो वहां अब यही शब्द नजर आयेंगे।’
मेरा मित्र बोला-‘अजीब आदमी हो। इस छटांक भर की बीमारी को वहां भी ले गये।’
हमने पूछा-‘अब यह बताओ कि यह छटांक भर बीमारी क्या होती है वैसे यह आयी तो वहीं से ही थी।’
वह बोला-‘इस बीमारी का नाम है छटांक भर, पर तुम्हारे लिये एक किलो साबित होने वाली हैं। वैसे सच बताना क्या यह मेरे कहने से यह छटांक भर की बीमारी वहां ले गये हो।’
हमने कहा-नहीं! बल्कि यह बीमारी तो आई वहीं से। तुमने तो केवल उसे बढ़ाने का काम किया है। वहां लोग बोलते हैं कि छटांक भर का पाठ लिखता है।’
चाय पीकर हम दोनो बाहर निकले। थोड़ी दूर चलकर हमने एक बाजार देखा और उससे कहा-‘धूप बहुत है। उस किताब की दुकान पर चलते है और वहां से दिमागी बीमारियों के घरेलू इलाज करने वाली किताब खरीदते है।’
वह बोला-‘हां! यह ठीक है। इससे तुम इस छटांक भर की बीमारी से मुक्ति पा लोगे।’
मैंने कहा-‘पगला गये हो। हम अपने इलाज के लिये ही थोड़े ही खरीद रहे हैं। वह तो हमें अपने ब्लाग पर लिखना है। लोग कह रहे हैं कि छटांक भर कविताओं और व्यंग्यों से क्या होता है। सोच रहे है कि वहां आधी रात के बैठकर एक धारावाहिक लिखेंगे‘डाक्टर कहते हैं’, हो सकता है इससे हिट हो जायें।’
वह बोला-‘तुम अपनी बीमारी का क्या करोगे?
हमने कहा-‘उसकी फिक्र तो तुम जैसे दोस्त करें जिनकी वजह से यह लगी है। बहुत किस्मत से बिना बुलाये बीमारी आयी है वरना लोग तो हमदर्दी पाने के लिये बीमारी का नाटक करते हैं। जहां चार लोग बैठते हैं तो मधुमेह,उच्चरक्तचाप,टीवी और तमाम बीमारियों अपने होने की सूचना देकर वहां एक दूसरे से हमदर्दी जुटाते हैं। कुछ होती है और कुछ बताते हुए अपने आप बढ़ जाती है। उस बीमारी से वह स्वयं ही परेशान होते हैं पर हमारी छटांक भर बीमारी तो दूसरों के लिये परेशानी का सबब बनेगी। हमें तो हिट मिलेंगे।’

मित्र ने कहा-‘तब तो अगर तुम्हें कोई इनाम वगैरह मिले तो मुझे उसका हिस्सा हमें देना। आखिर यह बीमारी हमने दी है।’
हमने कहा-‘यह तुम्हारा भ्रम हैं। जिस तरह बीमारियों की चर्चा से बढ़ती हैं उसी तरह यह भी तुम्हारी चर्चा से बढ़ी है।
उसने पूछा-‘तो किसी ने ब्लाग वाले ने लिखकर यह बीमारी तुम पर लादी है। उसका नाम मुझे बता दो तो उसको धन्यवाद दूंगा। अरे, उसे हमारे दोस्त को हिट होने का मार्ग बता दिया।’

हमने कहा-‘हम तो उसका नाम भूल ही गये। यह छटांक भर शब्द आकर ही ऐसा चिपका कि सब भूल गये। हम बस खुश हैं। आह...आह......वाह क्या आईडिया मिला। अब तो समझो कोई पुरस्कार मिलकर ही रहेगा।’
मित्र ने कहा-‘साफ कहो संभावित पुरस्कार की सारी राशि हड़पने का मन है। इस शब्द का अविष्कारकर्ता मुझे मानते नहीं और जिसने किया है उसका बताते नहीं। यह भारी चालाकी दोस्तों के साथ नहीं चल सकती।’
हमने कहा-‘भारी भरकम कहां यार! अब तो बस छटांक भर कहो। तुम क्या नहीं चाहते हम ब्लाग पर हिट पायें।’
मित्र ने कहा-‘महाराज, मगर कोई पुरस्कार आ जाये तो छटांक भर हमारे साथ भी बांट लेना। अरे और कुछ नहीं तो छटांक भर मिठाई ही खिला देना।’
हमने कहा-‘हां, अगर कोई पुरस्कार आ गया तो शेयर कर दूंगा ‘छटांक भर’
हमारा मित्र बोला-‘यार, मुझे याद रखना चाहिए कि तुम अब ब्लागर हो। इसलिये ऐसे शब्द नहीं बोलूंगा जिसे चुराकर तुम हिट लो। ऐसे शब्द तुमसे बोलने से क्या फायदा जो छटांक भर भी फायदा न हो।’
हमने कहा‘क्या बात करते हो यार, छटांक भर फायदा तो होगा ही छटांक भर मिठाई खाकर।’
उसने अपना सिर हिलाते हुए कहा-‘नहीं! बिल्कुल नहीं। तुम्हारी जो हालत दिख रही है तुम भारी भरकम फायदा तो करा दोगे पर छटांक भर नहीं।’
अब हम उसकी तरफ देख रहे थे और लग रहा था कि हमारी बीमारी उसके पास जा रही है। पूरी तरह हमारी बीमारी चली नहीं जाये यह डर हमें लगने लगा। हम अपनी बची बीमारी के साथ वहां से चल दिये ।
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नोट-यह व्यंग्य पूरी तरह काल्पनिक है तथा किसी घटना या व्यक्ति से इसका कोई संबंध नहीं है। अगर किसी की कारिस्तानी से मेल खा जाये तो वही इसके लिये जिम्मेदार होगा।

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Aug 22, 2008

देखने वाले सच भूल जाते-हिंदी क्षणिका

टीवी धारावाहिकों के
पारिवारिक क्लेशों पर लोग बतियाते हैंें
असल जीवन में ऐसे खलपात्र नहीं मिलते
जिनको देखकर वह घबड़ाते
झूठी कल्पनाओं और कहानियों के
नायक नायिकाओं
खलनायक खलनायिकाओं
को असल समझ कर
अपना दिल बहलाते
झूठ के पांव नहीं होते
इसलिये जमीन पर नहीं चलता
पर इलैक्ट्रोनिक पंख उसे
रंग बिरंगे रूप में लोगों के आगे इस तरह बिछाते
देखने वाले सच भूल जाते

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Aug 21, 2008

गुलाम आजाद होकर भी मालिक के लिखे पर चलता है-हास्य व्यंग्य कविता

गुलाम और आजाद में
यही फर्क दिखा है
आजाद चलते हैं अपने ख्याल से
गुलाम आजाद होकर भी
चलता है उस रास्ते पर
जो उसके मालिक ने अपनी किताब में लिखा है
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सर्वशक्तिमान ने
एक आजाद आदमी को
धरती पर भेजते हुए पूछा
‘तू वहां क्या करेगा
किसी की चाकरी या
मालिकी करेगा’
आजाद आदमी ने कहा
‘दोनों में ही गुलामी होगी
गुलामी तो है ही बुरी
मालिकी में भी अपनी संपत्ति की
देखभाल करना गुलामी से क्या कम है
इसलिये वहीं विचरण करूंगा
जहां मेरा मन कहेगा
सर्वशक्तिमान ने धरती पर जाते गुलाम से पूछा
‘क्या तू भी धरती पर
आजादी से विचरण करेगा’
गुलाम ने कहा
‘इस जन्म में आजादी बख्श दें
तो बहुत अच्छा है
पर मालिक का नाम पहले ही बता दें तो अच्छा
वहां जाकर ढूंढना नहीं पड़ेगा
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