Nov 4, 2016

भक्तगण ट्रम्प की हिलेरी पर बढ़त का आनंद लेकर अपने भारी मन हल्का कर सकते हैं (Bhakt now Enojoy Trumb Lead on Hilary in Preapol Sevrve)


                             आत्महत्या के कारण प्रतिकूल वातावरण से घबड़ाये भक्तगणों को अब ट्रम्प की तरह अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिये जो राष्ट्रपति चुनाव के पूर्व सर्वेक्षणों आगे चल रहे हैं। भक्तगण सीमित दायरे में रहते हैं इसलिये देश के हालतों में जब प्रचार प्रतिकूल होता है तो गुस्सा और दुःखी होते हैं पर उन्हें पता नहीं कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस समय वातावरण ऐसा ही है।  ट्रम्प अगर जीतते हैं तो सबसे ज्यादा परेशानी सऊदी अरब को आनी है जो पाकिस्तान के लिये संकट की बात होगी।  उधर पाकिस्तान का दूसरा सहयोगी तुर्की भी रूस से पंगा ले चुका है। यह पहला अवसर है कि रूस खुलकर अमेरिकी चुनाव में दखल देते हुए ट्रम्प को राष्ट्रपति के रूप में देखना चाहता है क्योंकि वह अरेबिक विचारधारा के खुले विरोधी हैं-प्रसंगवश उन्हें हिन्दूजीवन शैली में सकारात्मक दिलचस्पी है-और ऐसे में सऊदीअरब तथा तुर्की अमेरिका के बिना ज्यादा आक्रामक नहीं रह पायेंगे। इधर इन दोनों का पसंदीदा आतंकवादी संगठन आईएस भी तबाही की तरफ बढ़ रहा है पर उसके बाद अपने पापों के जो नतीजे इन दोनों देशों को भोगने ही होंगे तब इनका कथित आतंकवादी वैचारिक सम्राज्य भी टूटेगा जो हमारे देश के लिये अब एक खतरा बन चुका है। 
          याद रहे ट्रंप हिन्दुओं के समर्थक हैें और जिस तरह उनका समर्थन अमेरिका में हिलेरी के मुकाबले बढ़ रहा है उस पर भारत के पंथनिरपेक्ष की चिंता बढ़ना स्वाभाविक है क्योंकि मानवाधिकारों के मामले में तब उसे आदर्श नहीं मान पायेंगे।
-
                      भारत के समाचार चैनलों लाशों पर राजनीति के समाचार और फिर उन पर बहस के बीच विज्ञापनों का धंधा देखकर बोरियत हो रही है।  अब यह साफ लगने लगा है कि समाचारों के व्यापार का आरोप नेता खुले में नहीं लगाते क्योंकि कहीं न कहीं सभी प्रचार प्रबंधकों के ग्राहक हैं। यही कारण है कि प्रचार प्रबंधक इस बात की परवाह नहीं करते कि जनता किस तरह के समाचार चाहती है बल्कि वह इसका प्रयास अधिक करते हैं कि अपने ग्राहकों के समाचार जनता को देखने के लिये बाध्य करें।  सभी चैनल फ्री हो गये हैं और उन्हें बेतहाशा विज्ञापन मिल रहे हैं। विज्ञापनदाता भी राज्यप्रबंधकों का प्रचार चाहते हैं ताकि यह नहीं तो वह पद पर विराजे ताकि उनका काम चलता रहे।  यह एक चक्र हैें जिसमें आम आदमी की स्थिति केवल वोट देने से अधिक नहीं है।

Oct 15, 2016

सर्जिकल स्ट्राइक का मजा खत्म, अब पेट्रोल व डीज़ल के भाव पर चर्चा करो-हिन्दी व्यंग्य आलेख (End of Enjoyment of Surgicla Strike,Now Start disscusion on rate hike in Petrol and Diesal-Hindi Satire Article)

                     सर्जिकल स्ट्राइक का मजा अब खत्म! पेट्रोल और डीज़ल के भाव बढ़े अब चैनल वाले इस पर चर्चा करेंगे। पेट्रोल और डीजल के भावों का महंगाई से अजीब संबंध है। इनके भाव बढ़ें तो सभी चीजों के भाव बढ़ते हैं पर कम होें तो कोई कमी नहीं आती।  अब पेट्रोल के भाव बढ़े हैं तो यकीनन अनेक लोग अपनी चीजों के भाव बढ़ा देंगे।  स्थिति यह है कि पेट्रोल पर एक या दो रुपया बढ़ता है लेकिन चीजों के भाव एकदम पांच से सात और सात से दस हो जाते हैं।  तमाम तरह की बहसें चलती हैं पर मध्यम वर्ग के लिये कहीं सुविधाजनक स्थिति नहीं है।  मध्यम वर्ग के अनेक लोग निम्न वर्ग में पहुंच गये हैं पर  मानते नहीं, अभी भी अपने मान सम्मान के लिये कर्जा लेकर संघर्ष कर रहे हैं।  यही वर्ग बहसों का मजा लेता है और अब उसके  लिये सर्जीकल स्ट्राइक की खबर बासी हो गयी है।
         कुछ देर पहले हम पार्क में थे। वहां एक सज्जन दूसरे से सर्जीकल स्ट्राइक पर चर्चा कर रहे थे कि एक तीसरा आदमी आया और बोला-‘भईये, भूल जाओ सर्जिकल स्ट्राईक। आज पेट्रोल और डीजल के दामों ने आगे बढ़कर अपने बजट पर सर्जीकट स्ट्राईक कर दिया। फिर सारी चीजों के दाम बढ़ेंगे।’
            हम जैसे व्यंग्यकार बहुत सुनते हैं पर कम गुनते हैं पर कभी कभी कम सुनकर भी अधिक बुन लेते हैं।  सर्जिकल स्ट्राइक, तलाक, समान नागरिक संहिता जैसे विषय तो नेपथ्य में चले ही जायेंगे। इधर ब्रिक्स सम्मेलन के समाचार भी आभा खो बैठेंगे-भले ही आप इसमें पाकिस्तान को कितना जलील कर लो पर कल तो खबर के साथ जनचर्चा का विषय पेट्रोल और डीजल के दाम ही होंगे। आप लाख देशभक्ति और धर्म रक्षा का पाठ पढ़ाओ पर अगर मध्यम वर्ग की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होगी तो उसका प्रभाव क्षणिक रहता है-उसमें मन में स्थाई भाव नहीं रहता।
------

Sep 27, 2016

वाह री माया तेरा खेल, महल के बाद भेजे जेल-हिन्दी रचना (Vaah ri maya tera khel,mahal ke bad Bheje jail-HindiRachana)

                               जिस तरह दीपक के नीचे अंधेरा होता है ठीक उसी तरह माया के पीछे वीभत्स सत्य भी होता है। अपने आकर्षण में फंसाकर सदैव मनुष्यों को अपनी पीछे दौड़ाती है पर जब किसी को अपने पीछे का भयानक सत्य दिखाती है तो वह डर जाता है। बड़े बड़े तपस्वी राम का दर्शन नहीं कर पाते पर भोगी भी कहां माया को देख पाते हैं। एक से दस, दस से सौ, और सौ से हजार के क्रम में माया इंसान को अपने मोहपाश में फंसाकर भगाती जाती है। आदमी हमेशा ही यह सोचता है कि माया अभी उसके हाथ नहीं आयी। कभी कभी माया ऐसा प्रहार भी करती है कि पूरा का पूरा परिवार चौपट हो जाता है।
                                         -----------------
                          नोट-भ्रष्टाचार की चर्चा हमारे यहां बहुत होती है। ऐसे लोग भी भ्रष्टाचार को लेकर रोते हैं जो स्वयं ही इसमें लिप्त हैं। अनेक लोग अनाधिकृत पैसा अधिकार की तरह लेते हैं। जो पकड़े नहीं गये वह तो साहुकार होते हैं पर जो रंगे हाथों पकड़े जाते हैं उन्हें सभी चोर कहते हैं। आत्मग्लानि या कुंठा से चौपट हुए एक परिवार की कहानी देखकर तमाम विचार आये। कहना पड़ता है कि-
वहा री माया तेरा खेल,
घी चखे जिसने देखा न तेल।
रास्ते से उठाकर पहुंचाये महल
कभी कभी पहुंचाती जेल।
-------

नोट-अगर कोई टीवी चैनल वाला  किसी विषय पर हमें आमंत्रित करना चाहे तो हम कभी  भी दिल्ली आ सकते हैं।
संपर्क-.दीपक राज कुकरेजा
Mobil Number-8989475264,9993637656,8984475367

Sep 25, 2016

नकली दूध पीकर वीर नहीं बने-दीपकबापूवाणी (Naqli Dudh peekar veer nahin bane-DeepakBapuWani)

हम खुश है चाहे नहीं बुलाया तुमने अपनी महफिल में।
फिर भी कोई शिकायत नहीं तुमसे हमारे टूटे दिल में।।
---------------
बेपरवाह होकर घड़ियों में वक्त चले, चिराग अंधेरों में जले।
फिक्र में अक्ल का घनी इंसान, उसके पेट में रोटी कैसे पले।।
-----------------
जनता का जीवन कागज से चलाते, स्याही से सड़क पर चिराग जलाते।
‘दीपकबापू’ स्वयं रैंग कर चलते हैं, तेज दौड़ने के संदेश चलाते।।
------------------
ख्वाहिशें कर देती है सोच तंग, परिवार में लगी है बड़ी जंग।
‘दीपकबापू’ ज्ञान की करें बड़े बात, पीते रहते माया की भंग।।
--------------
संतों का सिंहासन पंत जैसा, पंतों का प्रवचन संत जैसा।
‘दीपकबापू’ पहचान के संकट में फंसे, हर चेहरा एक जैसा।।
------------
हम दो खुशी बांटने चले थे हवाओं ने रुख बदल दिया।
उनके घर देखा जब तोहफों ढेर, अपना रुख बदल दिया।।
--------------
नोट-याद नहीं आ रहा एक क्षेत्रीय भाषा में पंत शब्द का अर्थ राजपद से है।
हिन्दी दिवस पर वक्ता खूब बोलेंगे, पुराने राज नये जैसे खोलेंगे।
‘दीपकबापू’ करें रोज अंग्रेजी को सलाम, हिन्दी मंच पर डोलेंगे।।
---------------
कोई बेवफा कहे परवाह नहीं, आगे रिश्ते ढोने से बचे रहेंगे।
वफा के सबूत नहीं ला सकते, मजबूरी का बोझ भी नहीं सहेंगे।।
---------------
नकली दूध पीकर वीर नहीं बने, भूख पर छाये महंगाई के बादल घने।
‘दीपकबापू’ रुपहले पर्दे पर बेचें गरीबी, काले दौलतमंदों के महल बने।।
-----------------
अपनी उदासी से स्वयं छिपना भी मुश्किल है।
हमारे अंदर ही बैठा पर कितना पराया दिल है।।
----------------------

Sep 16, 2016

सुबह सनसनी दोपहर कोहराम शाम मनोरंजन-लघु हिन्दी हास्य व्यंग्य (men media and Maneger-Hindi Comedy Article)

धनस्वामी ने प्रचार प्रबंधक से कहा-‘यार, तुम्हारे प्रसारणों में मजा नहीं आ रहा। खबरों से ज्यादा विज्ञापन का प्रसारण बढ़ाने के कुछ प्रयास करो।’
प्रचार प्रबंधक ने कहा-‘सर, क्या करें आजकल लोग खबरों में कम रुचि ले रहे हैं। इसलिये विज्ञापनदाता भी याचना करने से कम धमकाने की वजह से अधिक काम दे रहे हैं। इस पर आजकल सनसनीखेज खबरें भी सभी चलाने लगे हैं।’
धन स्वामी ने कहा-‘अरे यार, हमने इतने सारे इंसानी बुत खड़े किये हैं। शराब हम बेचेें, जमीने हम हथियायें, फिल्में हम बनायें और क्रिकेट हम चलायेें। टीवी हमारा है ऐसे में तुम इतने बेबस क्यों हो रहे हो। अरे, ऐसा करो प्रतिदिन सभी क्षेत्रों के प्रतिष्ठित बुतों में लड़ाई की पटकथा लिखकर लाओ। मैं अपने निजी सचिव से कहूंगा वह हमारे लोगों में बांटता रहेगा। सुबह सुगबुगहाट, दोपहर द्वंद्व और शाम को शांति का सूत्र कहानी में इस तरह डालों कि सुबह सनसनी, दोपहर में कोहराम तो शाम के मनोरंजन हो जाये।’
प्रचार प्रबंधक का मन प्रसन्न हो गया वह बोला-ठीक है सर, कहीं बाप-बेटे,कहीं चचा-भतीजे, कहीं भाई-भाई तो कहीं समधी-समधिन के पात्र सृजित कर प्रतिदिन ऐसी पटकथा लिखूंगा कि आपके बुत उस पर अभिनय करेंगे तो मजा आ जायेगा। हां, सर आप अपने प्रायोजित बुतों का नाम दे दीजिये।’
प्रबंधक स्वामी ने हंसते हुएकहा-‘कमबख्त, तुम इतने साल से मेरे साथ काम कर रहे हो पर अक्ल नहीं आयी! तुम्हें पता नहीं आकाश में चमकते सारे सितारे तो पता नहीं किसने बनाये पर धरती पर जो विचर रहे हैं वह सब हमारे ही बनाये हुए हैं। जाओ, चाहे जिन पर कहानी लिखो और उसे सीधे भेज दो। तुम्हारे लिये सब हर प्रकार रस बनाकर लायेंगे।’
--------------
नोट-यह काल्पनिक हास्य व्यंग्य है और इसकी विषय सामग्री किसी व्यक्ति के चरित्र से मेल खाती है तो उसके लिये वही जिम्मेदार है। इस समय टीवी पर दो प्रदेशों की खबरें ऐसी चल रही हैं जिसमें एक जगह प्रतिष्ठित अपराधी की जमानत तो दूसरी जगह पारिवारिक विवाद जैसी खबरें प्रसारित हो रही हैं। इस रचना का इनसे जोड़ने की गलती न करें वरना आप ही जिम्मेदार होगे।
-------------
-दीपक ‘भारतदीप’-

Sep 2, 2016

चमकाचेहरा बिक्री में सहायक-हिन्दी कविता (Good Face Helpful for Add And Sale-Hindi Poem)


सौदागर चाहें
सामान के प्रचार के लिये
विज्ञापन के नायक।

रंगीन पर्दे पर 
चमका चेहरा
बने बिक्री में सहायक।

कहें दीपकबापू महकते हुए
फूलों से सुगंध चुराना कठिन
बाज़ार के सौदागरों ने
सजा लिये नकली गमलों में
खरीद लिये असल बताने वाले
संगीतकार गायक।
-------------------

Aug 3, 2016

नारों पर पका रहे खाना-हिन्दी कविता(Naron par Paka rahe Khana-Hindi kavita

देख था उनका चेहरा
लगा कि वह
चमका देंगे ज़माना।

उनके बोल सुनकर लगा
जिंदगी में हो जायेगा
आसान सांस पाना।

कहें दीपकबापू नारों पर
पका रहे सभी का खाना
बांट रहे कल्याण का दाना
उनके फैलाये यकीन के
जाल में कभी दिल न फसाना।
-----------------

Jul 18, 2016

भावनाओं की मौत-हिन्दी शायरी (Bhavnaon Ki Maut-HindiShayari)


उनके घर का दरवाजा
अधिकतर बंद रहा था
फिर भी आंखें
उसकी तरफ ताकती थीं।

वह कभी नहीं आयेंगे
इस खबर ने
हृदय की भावनाओं को
मौत की नींद सुला दिया
जो उनका चेहरा 
देखने की प्रतीक्षा में
बाहर झाकती थीं।
------------------

Jul 17, 2016

समय की चाल पहचानी न जाये-दीपकबापू वाणी (Samay ki Chal Pahchani n jaye-DeepakBapu Wani)

एक इंसान तोड़ता भरोसा दूसरा आता है, साथ अपने नया भरोसा लाता है।
वफा से ज्यादा कीमती हो गयी बेवफाई, ‘दीपकबापू’ जो समझा मजा पाता है।
---------------
पल पल में आदमी का बदलता मन, दुःख में कुम्हलाये सुख में फूले तन।
‘दीपकबापू’ किसी से न करें प्रेम या बैर, मिट्टी के बोलते बुत सभी जन।।
--------------
समय की चाल पहचानी न जाये, इंसान की अक्ल मतलब पर जाये।
‘दीपकबापू’ न अमृत देखा न विष, जीभ तो दाना देखकर ललचाये।।
---------
संपूर्ण जीवन कमाने में लगाते, भूख की सीमा रोटी से आगे बढ़ाते।
‘दीपकबापू’ अपना अस्तित्व खोकर, फिर जिंदा रहने के सबूत जुटाते।।
-----------------
दोनों हाथ से मुद्रा का स्वाद चखते, घड़ी में बीते पल याद नहीं रखते।
‘दीपकबापू’ सूंघते स्वार्थ का फल, पेट खाता कम बाग में ज्यादा पकते।।
------------------
सहन करते जीवन अगर युद्ध होता, शत्रु भी सह लेते अगर शुद्ध होता।
‘दीपकबापू’  ज्ञानियों की सभा में बैठे, सुन लेते अगर कोई प्रबुद्ध होता।।
--------------
धरती आसमान के हिस्से किये, टुकड़ों के राजा अपने किस्से जिये।
‘दीपकबापू’ इतिहास रखा मौन, आमजन ने जो खून के हिस्से दिये।।
----------------
समाज सेवकों का जमघट लगा है, नींद लेते हर कोई जगा है।
‘दीपकबापू’ बहरुपिये का वेश बनाया, नैतिक ठेकेदारों ने ठगा है।।
--------------

Jul 1, 2016

भिखारी और राजा-हिन्दी कविता (Begger and King-HindiPoem,Bhikhari aur Raja-Hindi Kavita)

वह भिखारी मंदिर के बाहर
चप्पल के सिंहासन पर बैठा
पुण्य क्रेता ग्राहक की
प्रतीक्षा में बैठा
आनंदमय दिखता है।

वह बादशाह महल में
सोने के सिंहासन पर
प्रजा की चिंता में लीन
असुरक्षा के भय से दीन
चिंतामय दिखता है।

कहें दीपकबापू मन से
बनता संसार पर नजरिया
आंखों से केवल दृश्य दिखता है।
----------

Jun 16, 2016

चैतन्य का साझीदार-हिन्दी व्यंग्य कविता (Chaitnya ka Sajhidar-Hindi Satire poem)


नशे में जिंदगी
ढूंढने वालों पर
तरस आता है।

मस्त रहते
मानो मदहोशी में
स्वर्ग बरस जाता है।

कहें दीपकबापू दिल के दर्द से
छूटकारा दिला सके
ऐसी दवा बनी नहीं
चैतन्य का साझीदार
अंदर ही रस पाता है।
--------------

Jun 2, 2016

संतोष में धन छिपा है-हिन्दी कविता(Santosh mein Dhan Chhipa hai-Hindi Kavita)

उपाधियों का बाज़ार
लगा सभी तरफ
खरीद कर सजा लो।

अयोग्य लोगों की भीड़
कोई सवाल नहीं करेगी
स्वयं अपनी तारीफ बजा लो।

कहें दीपकबापू संतोष में
सबसे बड़ा धन छिपा है
जमा कर लो अपने पास
फिर मायापथ पर भागते
धावकों का मजा लो।
-------------
कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'

ग्वालियर, मध्य प्रदेश

कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com

May 24, 2016

चेतना की रौशनी-हिन्दी कविता (Chetna ki Roshni-Hindi Poem)


अंधेरे में चले तीर
कभी कभी निशाने पर
लग भी जाते हैं।

ढीठों से जूझना कठिन
स्वयं हो जाओ 
वह भग भी जाते हैं।

कहें दीपकबापू आशा से
चल रहा संसार
हताश इंसान मुर्दा होते
चेतना की रौशनी जलाओं
जग भी जाते हैं।
-----------

कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'

ग्वालियर, मध्य प्रदेश

कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com

May 6, 2016

दबंग की उपाधि-हिन्दी कविता (Dabung Ki Upadhi-Hindi poem)

साफसुथरी छवि के
स्वामी को समाज में
पूछता कौन है।

दबंग की उपाधि
धारण करने वाले से
जूझता कौन है।

कहें दीपकबापू जहान में
पराक्रम की अपराध
भद्रता की ठगी
पहचान बनी
जिनके हाथ में हो ताकत
उनसे नैतिकता की
बात करता कौन है।
-------

कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'

ग्वालियर, मध्य प्रदेश

कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com

Apr 30, 2016

वह सब्र ही तो है जो इंसान के साथ रहे-हिन्दी क्षणिकायें (Vah sab hi to hai insan ke sath rahe-HindiShortpoem)

खुश होने के बहाने
बहुत मिल जाते
कोई तलाश तो करे,
आंसुओं के कूंऐ में
रहने के आदी मेंढकों में
कोई कैसे आस को भरे।
-------------------


ऊंचे सपने लोग देखते
पर अपनी सोच
जमीन से नहीं उठाते।
सामानों के समंदर में तैरते
सस्ती दर पर
महंगा पसीना लुटा जाते।
------------

वह सब्र ही तो है
जो इंसान के साथ रहे
वरना तो ज़माना
दिल तोड़ने का इंतजाम
खुशी से कर देता है।
आंखों में चमक देखे
गम आगे कर देता है।
-------------
जिंदगी के सफर में
राहों के साथ
हमराही भी बदल जाते हैं।

मुश्किल यह कि
कदम कभी पीछे जाते नहीं
बिछड़े चेहरों की
बस याद ही साथ लाते हैं।
-------------
कैसे मिलें उनसे
अपना पता देकर
जो लापता हो जाते हैं।

उनके दिल में झांककर
हालचाल क्या जाने
दिखाते अपनी अजीब अदा
फिर खफा हो जाते हैं।
-----------

आंखों से दूर हो गये
फिर भी तुम
दिल से निकले नहीं हो।

हमें भुलाकर
तुमने चिंता से ली आजादी
फिर भी तुम
हमारी यादों से निकले नहीं हो।
------

कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'

ग्वालियर, मध्य प्रदेश

कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com

Apr 20, 2016

कूड़े में सोने का वहम-हिन्दी कविता(Kude mein sone ka Vaham-Hindi Poem)

कमाया इतना कि
पूरी जिंदगी खाकर भी
न खत्म कर पायें।

संग्रह इतना कि
भावी पीढ़ियां भी
न हजम कर पायें।

कहें दीपकबापू धन्य इंसान
करते रहते पूरी जिंदगी
दो के चार
बोझ रख सिर पर कूड़े का
सोना के वहम में ढोते जायें।
----------- 

कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'

ग्वालियर, मध्य प्रदेश

कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com

Apr 11, 2016

विज्ञापन के नूर-हिन्दी कविता(Vigyapan ke Noor-Hindi Kavita)

अपना कत्ल
स्वयं करने वाले
अब मशहूर हो रहे हैं।

अपनी गर्दन टांगें
वही पर्दे पर विज्ञापन के
अब नूर हो रहे हैं।

कहें दीपकबापू जिंदादिली से
नाता तोड़ चुके लोग
तस्वीर बन रहे
मतलबपरस्त कर रहे पूजा
इंसान पराक्रम कथाओं से
अब दूर हो रहे हैं।
---------

कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'

ग्वालियर, मध्य प्रदेश

कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com

Mar 23, 2016

स्वार्थ से सम्मान-हिन्दी कविता (Swarth se Samman-Hindi Kavita)

सच कह गये
पुराने लोग
समय बड़ा है बलवान।

पर्व पर कोई ढूंढे
कूड़ेदान में रोटी
किसी के लिये
थाली में सजा है पकवान।

कहें दीपकबापू देह की
भूख बेबस करे
रोटी इंसान में डाले प्राण
निस्वार्थ से न हो पूछ
स्वार्थ से मिलता है मान।
--------
कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'

ग्वालियर, मध्य प्रदेश

कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com

Mar 13, 2016

नकली पीर-हिन्दी शायरी (NaqliPeer-HindiShayri)

धनुष जैसे जीभ टंकारते
नहीं छूटता कभी
ज्ञान का तीर।

दहाड़ते जोर से
शेर की खाल ओढ़े घूमते
लोमड़ जैसे शब्दवीर।

कहें दीपकबापू परिश्रम से
दिल चुराते
पुजने की चाहत में
लालची सोच पर
उम्मीद की फसल उगाते
फिर रहे नकली पीर।
-----------

कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'

ग्वालियर, मध्य प्रदेश

कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com

Mar 3, 2016

मलाई के लिये पग-हिन्दी कविता(Malai ke Liye pag-Hindi Kavita)


भाषा से चुन लेते शब्द
फिर ज्ञानी वाक्युद्ध में
लग जाते हैं।

वैसे तो सोये रहते हम
जब इतना शोर हो
तब जग जाते हैं।

कहें दीपकबापू खुश रहो
भलाई का ठेका लेने वालों
तुम चंदे खाते से 
भरते रहो
भले ही मदद की बजाय
मलाई खाने के लिये
तुम्हारे पग आते हैं।
----------

कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'

ग्वालियर, मध्य प्रदेश

कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com

Feb 22, 2016

हमदर्दों की दुकान-हिन्दी कविता (Hamdardon Ki Dukan-Hindi Kavita)

सभी पर करते
शब्द से प्रहार
स्वयं सहते नहीं।

वाणी में शब्द का अभाव
दूसरों का मुख लेते उधार
स्वयं कहते नहीं।

कहें दीपकबापू मत करना
पेशेवर हमदर्दों पर विश्वास
जहां धंधा हो मंदा
बदलते दुकान
जिसमे स्वयं रहते नहीं।
----------------
कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'

ग्वालियर, मध्य प्रदेश

कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com

Feb 6, 2016

बेपरवाह-हिन्दी कविता(Berparvah-HIndi kavita)

जिंदगी के हर पल मेंशामिल है कोई पैगामअक्लमंद ही पढ़ पाते।
हर कदम बनाता इतिहाससमझने वाले हीबढ़ पाते।
कहें दीपकबापू हिसाब सेचलने वाले बेपहरवाहतरक्की की ऊंचाई परवही चढ़ पाते।---------

कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'

ग्वालियर, मध्य प्रदेश

कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com

Jan 19, 2016

भीड़ नारों पर मरती है-हिन्दी कविता(Bhid naron par marti hai-Hindi Kavita)

जीवन संघर्ष में
विजय पर भीड़
शंखनाद करती है।

अभियान में शामिल
भीड़ लक्ष्य व साधन पर
वाद प्रतिवाद करती है।

कहें दीपकबापू हृदय की बात
सभी जगह बताई नहीं जाती
सभी मान लें जस की त
यह प्रवृत्ति पाई नहीं जाती
इंसानों की भीड़
मगर टुकड़ों में बंटी बुद्धि
नारों पर ही मरती है।
--------
कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'

ग्वालियर, मध्य प्रदेश

कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com

Jan 1, 2016

प्रायोजित दृश्य-हिन्दी कविता(Spontsord Scene-Hindi Kavita)

पर्दे पर पटकथा से
अभिनय करते नायक
असली नहीं हुआ करते।

सांपसीढ़ी के खिलाड़ी
कागजी संघर्ष में व्यस्त
जीतहार के फैसले
असली नहीं हुआ करते।

कहें दीपकबापू मौन होकर
देखते सभी दृश्य
न कभी हंसना न रोना
प्रायोजित स्वांग
असली नहीं हुआ करे।
------------
कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'

ग्वालियर, मध्य प्रदेश

कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com