Jan 27, 2015

अपने घर की रोटी खाते-हिन्दी कविता(apane ghar ki roti khate-hindi poem)



कब तक उनकी
प्रशंसा के गीत गाते
इंतजार करते रहते हम
सुखद अहसास
वह कभी साथ नहीं लाते।

वादों के व्यापारी अतिथि
अनेक बार घर आये,
हर बार नये सपने दिखाये,
ईमानदार इतने जरूर है
कभी पुराने शब्द नहीं बताते।

कहीं दीपक बापू खीजना बेकार
हम भी कभी उनके इंतजार में
अपनी आंखें नही पसारे बैठे
अपने चूल्हे पर पकती रोटी
सादगी से ही खाते।
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 कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'

ग्वालियर, मध्य प्रदेश

कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com

Jan 17, 2015

दिल किसी से सटा नहीं था-हिन्दी कविता(dil kisi se sata nahin tha-hindi poem)



कांच का बर्तन था
टूट गया
दिल नहीं था कि रोयें।

कपड़ा रुई का था
फट गया
दिल नहीं था कि रोयें।

रुपया कागज का था
जेब से कट गया
दिल नहीं था कि रोयें।

कहें दीपक बापू लाभ हानि से
खुश होना
या रोना
 लोगों के लिये आम बात है
मायावी जगत में
ज़माने  के दांवपैंच को
हमने हंसते हंसते देखा,
अपने जाल में
चालाकों को भी फंसते देखा,
किसी खुशी या गम से सटा
दिल नहीं था कि रोयें।
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 कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'

ग्वालियर, मध्य प्रदेश

कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
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Jan 7, 2015

दूसरों के लिये बबूल का जाल-हिन्दी कविता(doosron ke liye babool ka jaal-hindi poem)



नासिका में सुगंध के लिये

हर कोई फूल चुनता है।



कोई दूसरा खुश न रहे

इसलिये कम अक्ल इंसान

ज़माने के लिये

बबूल का जाल बुनता है।



कहें दीपक बापू कातिलों पर

मदद का आसरा

ताकतवर लोग भी करने लगे हैं,

अपनी अय्याशियां छिपाने के लिये

उनकी जेब भरने लगे हैं,

परायों से हादसे पर

दिखावे का गम जताते हैं,

अपनी जिंदगी का जश्न

कमजोर के दर्द पर मनाते हैं,

यह अलग बात है

हथियार की आंख नहीं होती

कभी वह उनके सीने भी

निशाने के लिये चुनता है।
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 कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'

ग्वालियर, मध्य प्रदेश

कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
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