Nov 30, 2007

पर कब तक

उनकी यादों को अपने दिल में रखें
पर कब तक
उनके वादों के पूरा होने पर भरोसा करें
पर कब तक
उनके बारे में
अपने इरादों को जाहिर नहीं करें
पर कब तक
उम्मीद हो कोई तो
इन्तजार करे और भी
पर क्या फायदा बहारों का मौसम आने का
बिखर जाये हमारा आसरा तब तक
उनके दिल में हमारे लिए
भी प्यार की आग जलेगी
यह विश्वास कर लेते
चिंगारी भी दिख रही होती जब तक

Nov 11, 2007

उसकी दूसरी गलती-हिंदी कहानी

बोस का आदेश था कि मुझे उस कंपनी में एक 'आवश्यक सौदे ' के लिये जाना होगा। मैने मना किया और कहा कि-'मुझसे उंचे पद वाले अधिकारी जब इस कंपनी में हैं तो आप मुझे क्यों भेज रहें है और उस कंपनी की मैनेजिंग डायरेक्टर मुझ जैसे जूनियर से बात करना पसंद करेगी यह भी एक प्रश्न है।''
बोस ने मेरी राय को सिरे से ही नकारते हुए कहा-''नहीं! मैं तुम्हारी बात से एग्री नहीं करता क्योंकि तुम बहुत सीनियर हो, और रही अधिकारी होने या न होने की बात तो तुम इस शहर में बने रहने के लिये प्रमोशन नहीं लेते ताकि कहीं यहां से ट्रांसफर ना हो जाये। हैड क्वार्टर वाले भी इस बात को जानते है और इसलिए मुझे फोन पर तुम्हें ही इस काम के लिये भेजने को कहा है।"
आखिर मुझे वहां जाना ही पडा। मेरे इंकार के पीछे वह वजह नहीं थी जो मैने बोस को बताई थी। ऐक जैसे व्यवसाय होने के कारण उस कंपनी के संगठन और प्रबंधन की जानकारी मुझे होना स्वाभाविक थी कि ऐक एसा व्यक्ति वहां के प्रबंधन में था जो मेरे साथ पहले ऐक जगह काम कर चुका था और गबन के आरोप में वहां से निकला गया था। उसके इस कार्य की जानकारी उसके ही ऐक मित्र ने वहां के प्रबंधन को दी थी कि वह उसके साथ कोई कड़ी कार्रवाई नहीं करेंगे। मगर प्रबंधन ने उसकी नहीं मानी और उसके खिलाफ़ पुलिस कार्रवाई की और वह कुछ दिन जेल में रहा और उसका मित्र उसे यह समझाने में सफ़ल रहा था कि यह सब मेरी वजह से हुआ था। वह जाते-जाते मुझसे बद्ला लेने की धमकी दे गया था-और वह जिस तरह का आदमी था उससे दूर रहना ही बेहतर था।
आखिर बोस के आदेश पर मैं वहां पहुंचा। मैं शंकित जरूर था पर डरा हुआ बिलकुल नहीं था। साथ ही मैं यह भी जानता था कि सब कुछ वैसा नहीं होगा जैसे बोस चाहते थे।
कंपनी की इमारत में घुसते ही वहां खडे चौकीदर को मैने अपना परिचय दिया तो उसने अंदर ऐक टेबल की तरफ़ जाने का इशारा किया जहां ऐक महिला बैठीं थी। मैं वहां पहुंचा और उसे अपना परिचय दिया तो उसने कहा-''आप अभी बैठिये।''
मैं उसके पास बैठ गया, कुछ देर बाद वह बोली-'' हमारी मेम साहब से मिलने के पहले उनके सचिव से मिलना होगा। वह अभी आते ही होंगे।"
मैने अभी बैठा ही था कि वह बोली-''लीजिये सर आगये।'' मैने पलट कर देखा और मुझे मिली जानकारी गलत नहीं थी। वही था और मुझे घूर रहा था। वह महिला उससे बोली-" सर, इनसे मिलिये, यह उस कंपनी से आये हैं जिसके लिये मेमसाहब कल बता रही थीं।''
वह मुझे घूर रहा था। मैं उससे उत्तर की प्रतीक्षा कर रहा था पर वह ऐसे ही चला गया।
मैने स्वागती महिला की तरफ देखा तो वह बोलीं-''वह उधर मेमसाहब के चेम्बर में पूछ्ने गये हैं।'' मुझे उसकी बात पर यकीन नहीं था। वह कुछ खेल करेगा यह मैं जानता था। थोडी देर बाद चपरासी आया और स्वागती से बोला-''वह कौन साह्ब हैं जो मेमसाहब से मिलने आये हैं। आप उनसे बोल दीजिये कि मेम साह्ब अपने ही समकक्ष किसी अधिकारी से बात करेंगी, मामूली कर्मचारी से नहीं।''
ऐसा कहकर वह चला गया, इस बीच स्वागती के पास फोन आगया और वह मुझसे बोली-''तुम तो कोई छोटे कर्मचारी हो। मेडम तुमसे नहीं मिलना चाहतीं। तुम अब यहां से तुरंत चले जाओ मेम साह्ब के सेक्रेटरी का आर्डर है।''
मैं जानता था कि कौन बोल रहा था , और मुझे उसके व्यवहार पर बिल्कुल गुस्सा नहीं आया क्योंकि मैं जानता था हमारी कंपनी से ज्यादा उस कंपनी को हमारी जरूरत थी। अगर मैं वहां से चला जाता तो किसी ऐक को जवाब देना ही था मुझे या उस कंपनी की डिप्टी डायरेक्टर को। मेरा इस तरह वहां से लौटना मेरी कंपनी स्वीकार नहीं कर सकती थी।
मैने स्वागती पर बैठी उस महिला कर्मचारी से कहा-''क्या मैं फोन कर सकता हूं।"
उसने एकदम शुष्क और कड़े स्वर में कहा-''नहीं। आपको यहाँ से जाने का आदेश है।''
मैंने बाहर निकल गया और बाहर से पीसीओ से अपने बॉस को फोन किया और उन्हें जानकारी दी। वह बोले-''उन्हें ग़लतफ़हमी है। तुमसे इस तरह का व्यवहार कर हमारी कंपनी से अनुबंध की उम्मीद छोड़ देना चाहिये, क्योंकि हमारा हेड क्वार्टर इस बहुत गंभीरता से लेगा। फ़िर भी मैं बात करता हूं। तुम दस मिनट बाद मुझे फोन करना।''
मैं वहीं खडा रहा। बरसात के दिन थे और मुझे पसीना आने के साथ प्यास भी बहुत लग रही थी, पर इससे ज्यादा इस बात की फिक्रथी कि दो कंपनियों के बीच मेरी वजह से विवाद छिड़ने वाला था। मैं ऐक होटल में गया और चाय्-नाश्ता करने के बाद फ़िर उसी पी.सी.ओ. पर आया। लगभग आधा घंटा गुजर गया था। मैने बॉस को फोन किया, मेरी आवाज सुनते ही बॉस बोले-''क्या कभी तुम किसी कंपनी में गबन करने के बाद जेल गए हो। क्या तुम्हें कभी नौकरी से निकाला गया। और क्या तुम इस कंपनी की तरफ़ से कांट्रेक्ट करने में अपना कमीशन खाते हो। क्यातुम ऐक बहुत बडे कमीशन खोर हो?''
मैने हंसकर कहा-'आपके मूंह से अपने बारे में यह कहानी सुनकर मुझे बिल्कुल ताज्जुब नहीं हुआ।' ''मैं जानता हूं!" बोस ने कहा-''तो तुम यह भी जानते हो कि किसने यह कहानी गढी होगी। मुझे उसका नाम बताओ। अभी तुम वहां जाओ मेडम तुमसे बात करने को तैयार हैं।''
पीसीओ उस कंपनी के दफ़्तर से ज्यादा दूर नहीं था। मैं जैसे ही वहां से बाहर निकला वैसे ही वह चपरासी मुझे मिल गया तो अंदर से मेरे लिये संदेश ले आया था और स्वागती ने मुझे बाहर जाने का आदेश दिया था। वह बोला-'सर, मेडम आपको बुला रहीं है।'
मैं उस कंपनी के इमारत की सीढियाँ चढ़कर उसी स्वागती के पास से गुजरा तो वह एकदम बोली-''सॉरी सर, मुझे मेडम के सेक्रेटरी साह्ब ने ऐसा करने को कहा था।"
मैं उसकी बात का जवाब दिये बिना ही डिप्टी मेनेजिंग की नेम प्लेट लगे कक्ष में दाखिल हो गया। वह काम कर रही थी और मेरी आहट सुनते ही उसने सिर ऊपर किया, मैं हतप्रभ रह गया वह एकदम मेरी तरफ़ देख रही थी। फ़िर बोली-''आप! नहीं मैं यकीन नहीं करती कि आप..................वह झूठ बोल रहा था।''
मैं उसे वहां देखकर आश्चर्य में था''तुम यहां कब आयी।'
वह बहुत खुश होकर बोली-''मैं तीन महिने से यहां हूं और आपका पता ढूंढ रही हूं और पता लगा कि अपने मकान बना लिया है। पहले तो आप बैठिये । मैं कुछ मंगवाती हूं। काम की बातें तो होती रहेंगी। मैं आपको ऐसे तो जाने नहीं दूंगी."
मैंने कहा-''हां। वैसे तुम्हें देखकर बहुत खुशी हो रही है, पर हमें काम पर भी बात करना चहिये क्योंकि बोस इस मामले में आज ही निर्णय करना चाह्ते हैं।"
-''आप बैठो तो सही-" काम की बाते तो होती रहेंगीं, मैं इस समय अपने हैड क्वार्टर से ओनलाइन बात कर रही हूं और उसमें आपकी कंपनी के बारे में भी चर्चा हो रही है। वैसे घर परिवार में सब ठीक है! मेरी प्यारी सहेली के हाल कैसे हैं। मैं उससे मिलना चाहती हूं। उसीको तो ढूंढ रही हूं और आज उसका पति हाथ आ गया तो अब उसे इतनी आसानी से नहीं छोडूंगी।"वह खुश होकर बोली.
मैं बैठ गया। वह ओन लाइन बात कर रही थी और मैं पिछली यादों में खो गया।
वह मेरी पत्नी की बचपन की सहेली थी और हमारे ऐक वर्ष बाद ही उसका विवाह भी हमारे शहर में हुआ। चूँकि दोनों ऐक ही शहर की थी इसलिए ऐक बार उसके विवाह के ऐक माह बाद दोनों अपने मायके भी साथ गयीं थीं । वह विवाह सेपहले ऐक कंपनी में कलर्क थी और यह आश्वासन मिलने के बाद कि उसकी कंपनी उसी शहर में उसका ट्रांसफर कर देगी लड़के वाले शादी को तैयार हुए थेक्योंकि वह कामकाजी लड़की चाह्ते थे। विवाह के बाद वह बहुत दिनों तक परेशान रही और इस दौरान मेरी पत्नी उसका हौसला बढाती , फ़िर ऐक दिन वह और उसका पति शहर छोड़ गये और उसके बाद कोई संपर्क नहीं हुआ पर यह जरूर पता लगा कि दोनों ने अपनी जिंदगी में आगे बहुत तरक्की की है। उसके बारे में जानकारी तभी मिलती जब मेरी पत्नि मायके जाती और उसके घर जरूर जाती और वहीं से जानकारी मिल जाती।
''मैं कल ही आपके घर आउंगी।"वह बोली तो मेरे विचारों कर क्रम टूटा-'आप अपना फोन नंबर दो तो मैं पहले अपनी सहेली से बात कर लूं। उसे यह बताऊँ तो सही मैं यहां हूं।"
हमारी कार्य सबंधित बात भी पूरी हो गयी थी और मैने उसे अपना फोन नंबर दिया और बाहर निकलने लगा तो वह बोली-''हां, आप यह तो बताओ वह मेरा सेक्रेटरी किसकी कहानी सुना रहा था। यकीनन आपकी तो है नहीं, क्योंकि आप जेल तो गये नहीं है क्योंकि मुझे पता पड़ जाती। कहीं अपनी तो नहीं सुना रहा था क्योंकि वह यहां बदनाम है।'
''यह तो उसी से ही पूछ लेना-"मैने कहा और बाहर निकल गया।
वह बाहर ही खडा था और उसका मूंह सूखा हुआ लग रहा था। मुझसे बोला-"वह तुम्हें जानती है?"
मैंने शुष्क स्वर में कहा-''वह मुझे बहुत मानती भी है पर मैने तुम्हारे बारे में कुछ नहीं कहा और न कहूंगा। मगर तुमने अपनी मुसीबत ऐक बार खुद बुलाई है। वह तुम्हें छोडेगी नही क्योंकि मेरी पत्नि से जब मिलेगी तो वह उसे जरूर बताएगी, आज से छह वर्ष पूर्व अपनी नौकरी खोने के बाद किस तरह धमकी दी थी। मैं कोशिश करूंगा वह इसे न बताये पर लगता है तुम्हारे पाप पीछा कर रहे हैं क्योंकि जिस कहानी को मैं भूल चुका था उसे तुमने खुद याद किया है, तुम्हें मेरी चर्चा उससे नही करनी थी, ताकि पुरानी बाते फिर एक बार हमारे सामने न आ सकें।"
मैं वहां से निकल आया और वह वहीं खडा आसमान में देख रहा था।शायद वह समझ गया था की उसने यह दूसरी गलती की है और लगभग वैसी ही जैसे पहले की थी जब उसने अपनी करिस्तानियों का जिक्र अपने मित्र से किया था जिसने प्रबंधन को पूरी बात बता दी थी।
नोट-यह मेरी मौलिक एवं स्वरचित हिंदी कहानी है।

Nov 6, 2007

तुम्हारे प्रेम के विरह में हास्य लिखता हूँ

ब्लोगर उस दिन एक पार्क में घूम रहा था तो उसकी पुरानी प्रेमिका सामने आकर खडी हो गयी। पहले तो वह उसे पहचाना ही नहीं क्योंकि वह अब खाते-पीते घर के लग रही थी और जब वह उसके साथ तथाकथित प्यार (जिसे अलग होते समय प्रेमिका ने दोस्ती कहा था) करता था तब वह दुबली पतली थी। ब्लोगर ने जब उसे पहचाना तो सोच में पड़ गया इससे पहले वह कुछ बोलता उसने कहा-''क्या बात पहचान नहीं रहे हो? किसी चिंता में पड़े हुए हो। क्या घर पर झगडा कर आये हो?"

''नहीं!कुछ लिखने की सोच रहा हूँ।''ब्लोगर ने कहा;''मुझे पता है कि तुम ब्लोग पर लिखते हो। उस दिन तुम्हारी पत्नी से भेंट एक महिला सम्मेलन में हुई थी तब उसने बताया था। मैंने उसे नहीं बताया कि हम दोनों एक दूसरे को जानते है।वह चहकते हुए बोली-''क्या लिखते हो? मेरी विरह में कवितायेँ न! यकीनन बहुत हिट होतीं होंगीं।'

ब्लोगर ने सहमते हुए कहा-''नहीं हिट तो नहीं होतीं फ्लॉप हो जातीं हैं। पर विरह कवितायेँ मैं तुम्हारी याद में नहीं लिखता। वह अपनी दूसरी प्रेमिका की याद में लिखता हूँ।''

''धोखेबाज! मेरे बाद दूसरी से भी प्यार किया था। अच्छा कौन थी वह? वह मुझसे अधिक सुन्दर थी।''उसने घूरकर पूछा।

''नहीं। वह तुमसे अधिक खूबसूरत थी, और इस समय अधिक ही होगी। वह अब मेरी पत्नी है। ब्लोगर ने धीरे से उत्तर दिया।

प्रेमिका हंसी-''पर तुम्हारा तो उससे मिलन हो गया न! फिर उसकी विरह में क्यों लिखते हो?'

''पहले प्रेमिका थी, और अब पत्नी बन गयी तो प्रेम में विरह तो हुआ न!''ब्लोगर ने कहा।
पुरानी प्रेमिका ने पूछा -''अच्छा! मेरे विरह में क्या लिखते हो?"

''हास्य कवितायेँ और व्यंग्य लिखता हूँ।" ब्लोगर ने डरते हुए कहा।
''क्या"-वह गुस्से में बोली-''मुझे पर हास्य लिखते हो। तुम्हें शर्म नहीं आती। अच्छा हुआ तुमसे शादी नहीं की। वरना तुम तो मेरे को बदनाम कर देते। आज तो मेरा मूड खराब हो गया। इतने सालों बाद तुमसे मिली तो खुशी हुई पर तुमने मुझ पर हास्य कवितायेँ लिखीं। ऐसा क्या है मुझमें जो तुम यह सब लिखते हो?'

ब्लोगर सहमते हुए बोला-"मैंने देखा एक दिन तुम्हारे पति का उस कार के शोरूम पर झगडा हो रहा था जहाँ से उसने वह खरीदी थी। कार का दरवाजा टूटा हुआ था और तुम्हारा पति उससे झगडा कर रहा था. मालिक उसे कह रहा था कि''साहब. कार बेचते समय ही मैंने आपको बताया था कि दरवाजे की साईज क्या है और आपने इसमें इससे अधिक कमर वाले किसी हाथी रुपी इंसान को बिठाया है जिससे उसके निकलने पर यह टूट गया है और हम इसके लिए जिम्मेदार नहीं हैं. तुम्हारा पति कह रहा था कि'उसमें तो केवल हम पति-पत्नी ने ही सवारी की है', तुम्हारे पति की कमर देखकर मैं समझ गया कि...............वहाँ मुझे हंसी आ गई और हास्य कविता निकल पडी. तब से लेकर अब जब तुम्हारी याद आती है तब......अब मैं और क्या कहूं?''

वह बिफर गयी और बोली-''तुमने मेरा मूड खराब किया। मेरा ब्लड प्रेशर वैसे ही बढा रहता है। डाक्टर ने सलाह दी कि तुम पार्क वगैरह में घूमा करो। अब तो मुझे यहाँ आना भी बंद करना पडेगा। अब मैं तो चली।"

ब्लोगर पीछे से बोला-''तुम यहाँ आती रहना। मैं तो आज ही आया हूँ। मेरा घर दूर है रोज यहाँ नहीं आता। आज कोई व्यंग्य का आइडिया ढूंढ रहा था, और तुम्हारी यह खुराक साल भर के लिए काफी है। जब जरूरत होगी तब ही आऊँगा।''

वह उसे गुस्से में देखती चली गयी। ब्लोगर सोचने लगा-''अच्छा ही हुआ कि मैंने इसे यह नहीं बताया कि इस पर मैं हास्य आलेख भी लिखता हूँ। नहीं तो और ज्यादा गुस्सा करती।''

नोट-यह एक स्वरचित और मौलिक काल्पनिक व्यंग्य रचना है और किसी घटना या व्यक्ति से इसका कोई लेना देना नहीं है और किसी का इससे मेल हो जाये तो वही इसके लिए जिम्मेदार होगा.

Nov 5, 2007

रास्ते तो बनते हैं बिगड़ते हैं

अपने रास्ते को नहीं जानते जब
दूसरे के पद चिन्हों पर चलते हैं
जब कोई अपना ख्याल नहीं बनाते
दूसरे के नारों पर कहानी गढ़ते हैं
जब अपने शब्द नहीं रच पाते
तब दूसरे के वाद पर
अपने प्रपंच रचते है

पुराने बिखर चुके विचार
नयेपन की हवा से दूर होते हैं
हम तरक्की की चाह में
बेकार अपने सिर ढोते हैं
कहवा घरों और चाय के गुमटियों पर
चुस्कियाँ लेते हुए अपनी गरीबी और बीमारी
पर बात करते हुए रोते हैं
पर इससे घर और देश नहीं चलते हैं

हाथ में सिगरेट लेकर रास्ते पर चलते हुए
टीवी के कैमरे के सामने अपने विचारों की
आग उगलते हुए
अपने को बहुत अच्छे लगते हैं
गरीबी और भुखमरी पर लिखते हैं
बडे-बडे ग्रंथ
शब्दों में मार्मिकता का बोध गढ़ते हैं
पर यह तुम्हारा गढा गया सोच
कभी गरीब और भूख से बेजार लोगों का
पेट नहीं भर सकता
जिनके लिए तुम सब रचते हो
वही लोग उसे नहीं पढ़ते हैं

सच तो यह है कि
गरीबी के लिए चाहिऐ धन
भूख के लिए रोटी
जिस आकाश की तराग देखते हो
दोनों वहाँ नहीं बनते हैं
इसलिए चलते जाओ रास्ता सामने है
खडे होकर बहस मत करो
रेत और पानी की धाराओं से
इस धरती पर रास्ते बिगड़ते और बनते हैं

Nov 4, 2007

पाकिस्तान में प्रतिबन्ध का दौर

पाकिस्तान में न्याय पालिका, प्रचार माध्यम, मानव अधिकार, और राजनितिक दलों पर जिस तरह मुशर्रफ ने जिस तरह प्रतिबन्ध लगाए हैं और पूरा विश्व इसे खामोशी से देख रहा है वह बहुत ताज्जुब की बात है। मुशर्रफ ने तो साफ तौर से न्याय पालिका और आतंकवाद को तराजू के एक ही पलडे में रखा है उस पर सबको आश्चर्य हुआ है। अगर आज भी यह पूछा जाए कि वह किस कानून के तहत वहाँ के राष्ट्रपति बने बैठे हैं तो उनके पास इसका जवाब नहीं होगा। शायद यह भूल गए हैं कि इसी न्याय पालिका ने इस मामले में उनकी मदद की थी।

पाकिस्तान की मानवाधिकार कार्यकर्ता आसमान जहांगीर को भी घर में नजरबन्द कर दिया गया है, और अब यह देखना यह है कि विश्व भर के मानवाधिकार कार्यकर्ता उस पर किस तरह का रवैया अपनाते हैं। यह आश्चर्य की बात है कि अभी तक किसी भी देश ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की। इसका मतलब यह है कि मुशर्रफ उन लोगों को यह समझाने में सफल हो गए हैं कि वह अगर अपने देश में आतंकवाद को नहीं मिटा पाये हैं तो उसके लिए वह सब लोग जिम्मेदार हैं जिन पर वह अब प्रतिबन्ध लगा रहे हैं। दूर बैठे पश्चिमी राष्ट्रों के पास इसके अलावा कोई चारा नहीं है कि उन पर विश्वास करे। कहीं न कहीं अब भी उनके मन में भारत के सामने एक प्रबल चुनौती बनी रहे और पाकिस्तान के बने रहने के अलावा उनके पास कोई विकल्प नहीं है।

अब सिर्फ़ एक ही सवाल रह गया है कि क्या आतंकवाद फैलाने वाले पूरी तरह से परास्त किए जा सकते हैं? एक तरह तो आतंकवादी मुशर्रफ और अमेरिका को अपना दुश्मन मानते हैं दूसरी तरफ़ उनके कामों से दोनों को ही लाभ पंहुचा रहे हैं। अगर वह लोग अपनी कारिस्तानी नही करते तो मुशर्रफ कभी का अपने पद से रुखसत हो गए होते पर आतंकवाद के चलते वह मुशर्रफ पश्चिमी राष्ट्रों के सबसे बडे मित्र बनते जा रहे हैं, और अमेरिका को वहाँ दखल देने का अवसर भी मिल रहा है। इस लिहाज से तो आतंक फैलाने वाले उन्हीं तत्वों को रास्ता बना रहे हैं जिनसे लड़ने का दावा वह करते हैं।

कभी-कभी तो लगता है कि आतंकवाद की लड़ाई कभी ख़त्म नहीं होगी क्योंकि जितना धन और मानव श्रम इसके ख़िलाफ़ लड़ने में लग रहा है उतना ही उसे बनाए रखने में लग रहा है। इससे लड़ने और बनाए रखने में लोगों के आर्थिक फायदे हैं और लगता है यह एक तरह का व्यवसाय बन गया है और ख़त्म हो गया तो कई लोगों की दूकान बंद हो जायेगी। सात वर्ष तक आतंकवाद से लड़ने वाले मुशर्रफ एक बार फ़िर नए सिरे से तैयार हो रहे हैं उस पर उनके समर्थक जिस तरह अपनी सहमति की मोहर लगा रहे हैं वह दिलचस्प है और विश्व भर के राजनेतिक विशेषज्ञ अभी तक अपनी कोई राय कायम नहीं कर पाये। न बोतल बदली और न उसमें रखा द्रव्य फ़िर भी उसे जिस तरह नया कर पेश किया जा रहा है वह बहुत आश्चर्यजनक है। हो सकता है कि आने वाले समय में शायद ईरान के ख़िलाफ़ उसके इस्तेमाल की कोई योजना हो।

Nov 3, 2007

पाकिस्तान में सरकार पुरानी, इमरजेंसी नयी

पाकिस्तान में फिर इमरजेंसी लगा दी गयी है। अगर देखा जाये तो हालत वैसे ही जैसे नवाज शरीफ के तख्ता पलट के समय थे, पर इस बार कोई तख्ता पलट नहीं है पर मुशर्रफ ने ऐसा माहौल बनाया गया जैसे कोई तख्ता पलट हो रहा हो। इसमें में कोई शक नहीं है की मुशर्रफ में ऐसी चालाकी हो यह कभी नहीं लगता पर उनके पीछे कोई बहुत चालाक खोपडी है जो उनका संचालन कर रही है। सामने कोई नहीं है पर मुशर्रफ ऐसे सिद्ध हैं कि दुनिया को भूत दिखा रहे हैं। हमने कई भूत भगाने वाले ओझा देखे हैं पर मुशर्रफ जैसा नहीं देखा। हमेशा गरजने वाला अमेरिका भी केवल दु:ख व्यक्त कर रहा है। पिछले आठ वर्ष से मुशर्रफ वहाँ राज्य कर रहे हैं पर हालत बिगड़ते रहे हैं। आतंकवाद के खिलाफ पाकिस्तान के राष्ट्रपति के रूप में लड़ने निकले मुशर्रफ से किसी ने नहीं पूछा कि 'जनाब, यह आतंकवाद आया कहाँ से?' आठ वर्ष से जूझ रहे मुशर्रफ अब तक आतंकवाद पर काबू नहीं पा सके। अमेरिका ने जिस तरह पाकिस्तान में अपना उपनिवेश कायम कर रखा है वह अब उसे तकलीफ देह होने वाला है।

मुझे लगता है कि यह इमरजेंसी बहुत दूर तक जाने वाली है। जिसे पाकिस्तान कहा जाता है उसका राजनीतिक मानचित्र कुछ भी कहता हो पर उसका संविधान बलोचिस्तान और सीमा प्रांत के इलाकों में नाम भर को चलता है। अंग्रेजों ने इस देश पर डेढ़ सौ वर्ष राज्य किया पर फिर भी यह उनकी निजी जागीर नहीं था जो सिंध, बलूचिस्तान और सीमा प्रांत और पूर्वी बंगाल पाकिस्तान के नाम पर लिख गए। पूर्वी बंगाल तो पाकिस्तान से अलग हो गया पर बाकी तीनों प्रांत भी अब इस रास्ते पर हैं। मैंने अंतर्जाल पर अंग्रेजी में कई पाकिस्तानी ब्लोग देखे हैं और मुझे उनको पढ़ने पर यह यकीन करना मुश्किल होता है कि क्या वह उनके ही हैं या कोई छद्म ब्लोग हैं। पाकिस्तान पर बहुत समय तक पंजाब से प्रभावित लोगों का राज्य रहा है। उनका नजरिया केवल पंजाब के हितों तक ही सीमित रहा है। वैसे पाकिस्तान में आपातकाल लगना कोई बड़ी बात नहीं है पर इस बार का संकट पाकिस्तान के अस्त्तित्व के लिए चुनौती बनने जा रहा है-और जो लोग सोच रहे हैं कि मुशर्रफ इसे बचा लेंगे वह गलती पर हैं।

वैसे पाकिस्तान एक राष्ट्र है इस बात की पोल तो कई बार खुल चुकी है पर नवाज शरीफ की हाल ही में पाकिस्तान वापसी के समय एक छोटे देश के राजदूत ने उन्हें समझौते के वह दस्तावेज दिखाए जो उन्होने अपनी रिहाई के लिए उसको गवाह बनाकर दस्तक किये थे-यह बात का खुला प्रमाण था कि पाकिस्तान में अन्य राष्ट्रों की कितनी चलती है। अभी तक हर संकट में पाकिस्तान की सेना मजबूत रहती थी पर इस बार वह वजीरिस्तान में ऐसी जंग में फंसी हुई है जहाँ से उसका निकलना अगले कई बरसों तक संभव नहीं है। यह ऐसे इलाके हैं जिन पर अंग्रेज भी कभी पूरी तरह नियंत्रण नहीं कर पाए और लोग भी वह हैं जो आज कश्मीर का हिस्सा आज पाक के पास है वह इन्हीं कबाइलियों के वजह से है। इस बार पाकिस्तान की सेना उनसे लड़ रही है जो पाकिस्तान के लिए एक हथियार रहे हैं।
भारत तो सदियों से पाकिस्तान के क्षेत्रों से आने वाले संकटों का सामना करता रहा है और वह आने वाली इस उथल-पुथल से उपजे संकट को भी झेल लेगा पर विश्व के अन्य देशों को वहां से आतंकवाद निर्यात होने वाला संकट और भी बढ़ सकता है। पाकिस्तान एक परमाणु संपन्न राष्ट्र है और कई लोगों को शक है कि वहाँ से परमाणु तकनीकी आतंकवादियों के हाथ लग सकती है। यह कोई साधारण बात नहीं है कि पाकिस्तान एक परमाणु राष्ट्र है उसकी अस्थिरता अब पूरे विश्व के लिए खतरा है। मुशर्रफ बहुत समय तक पूरे विश्व को धोखा नही दे सकते और फिर उन पर आतंकवाद को पनपाने का आरोप है और आज वह उससे संघर्ष जिस तरह कर रहे हैं लोग उनकी नीयत पर शक करते हैं। इसी आतंकवाद का भी उन्होने इस बार ऐसा भूत खडा किया और अपने को पूरे विश्व में स्वीकार्य दिखाने का जिस तरह प्रयास किया उससे तो यह सवाल यह उठता है कि आखिर वह दोस्त किसके हैं-अमेरिका के, आतंकवादियों के या अपनी कुर्सी के। बहरहाल अगर सब कुछ पटरी पर नहीं आया तो पूरा विश्व इस घटनाक्रम प्रभावित होगा।