Mar 31, 2010

हंसना और रोना भी व्यापार है-हिन्दी शायरी (hansha aur rone ka vyapar-hindi shayri)

दौलत कमाने से अधिक वह
उसे छिपाने के लिये वह जूझ रहे हैं,
उनके अमीर होने पर किसी को शक नहीं
लोग तो बस उनके
काले ठिकानों की पहेली बूझ रहे हैं।
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इतनी दौलत कमा ली कि
उसे छिपाने के लिये वह परेशान है,
खौफ के साये में जी रहा खुद
फिर भी जमाने को लूटने से उसको फुरसत नहीं
उसकी अदाओं पर जमाना हैरान हैं।
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यूं तो दुनियां को वह
ईमान का रास्ता बताते है,ं
पर मामला अगर दौलत का हो तो
वह उसे खुद ही भटक जाते हैं।
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उनका हंसना और रोना भी व्यापार है,
पैसा देखकर मुस्कराते है,
कहो तो रोकर भी दिखाते हैं,
अकेले में देखो उनका चेहरा
लोग क्या, वह स्वयं ही डर जाते हैं।
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Mar 30, 2010

वैचारिक योग

अहिंसासत्यास्तेब्रह्मचर्यापरिग्रहा यमाः।
हिन्दी में भावार्थ-अहिंसा, सत्य, अस्तेय,ब्रह्चर्यऔर अपरिग्रह-यह पांच यम हैं।
शौचसंतोषतपः स्वाध्यायेश्वरप्रणिधानानि नियमाः।।
हिन्दी में भावार्थ-शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय तथा ईश्वर की आराधना-यह पांच नियम हैं।
वितर्कबाधने प्रतिपक्षभावनम्।
हिन्दी में भावार्थ-जब वितर्क यम और नियम के पालन में बाधा पहुंचाने लगे तो उसके विपरीत विचार का चिंतन करना चाहिये।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-शारीरिक योगासन के साथ वैचारिक योग का भी महत्व है क्योंकि जीवन में मनुष्य के कर्म ही उसके फल का आधार होते हैं  जिनके करने की शुरूआत मस्तिष्क में उत्पन्न विचार से ही होती है।  अहिंसा न करना, सत्य मार्ग पर स्थित रहना, दूसरे के स्वामित्व की वस्तु का अपहरण न करना (जिसे चोरी भी कहा जाता है), काम में अधिक अनुरक्त न रहना तथा भौतिक साधनों के संचय में अधिक रुचि न रखना एक तरह से वैचारिक योगासन है।  इनमें स्थित व्यक्ति दृढ़ व्यक्तित्व का स्वामी बन जाता है। इन प्रवृत्तियों को यम कहा जाता है और इनमें स्थित होने पर मनुष्य सिद्ध हो जाता है।
यही स्थिति नियमों की है।  प्रातःकाल शौच आदि से निवृत होने पर अपने अंदर जब स्वच्छता का अनुभव हो तभी यह मानना चाहिये कि हम स्वस्थ हैं।  इसके अलावा सांसरिक वस्तुओं को लेकर संतोष का भाव रखते हुए तप एवं स्वाध्याय में लीन रहकर ईश्वर की भक्ति करने से अपने अंदर एक महान आनंद की अनुभूति होती है।
अनेक बार जीवन में ऐसे अवसर आते हैं जब हम डांवाडोल होते हैं। ऐसे में विपरीत विचार का चिंतन करना चाहिये। जब हमें क्रोध आये तब शांति का और जब निराशा उत्पन्न हो तब आशा पर विचार करना चाहिये। जब लोभ की प्रवृत्ति जागे तक त्याग का सोचें।  जब किसी की निंदा का मन हो तो किसी की प्रशंसा पर विचार करें।  इस तरह सकारात्मक प्रवृत्ति का निर्माण करें ताकि जीवन पथ पर अधिक से अधिक आनंद की प्राप्ति हो। यह वैचारिक या साधना मनुष्य को उत्कृष्ट श्रेणी का बनाती है। अच्छे विचार और संकल्प से स्वयं की बुद्धि जोड़ने पर वह पवित्र हो जाती है और इसके विपरीत अगर उसमें कुविचारों और अन्मयस्कता का समावेश किया जाये तो भारी अनर्थ का सामना करना पड़ता है।

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Mar 28, 2010

चाणक्य नीति दर्शन-धन और भोजन की तृष्णा कभी नहीं मिटती (Dhan aur bhojan ki bhookh-chankya niti)

धनेषु जीवतिव्येषु स्त्रीषु चाहारकर्मसु।
अतृप्तः प्राणिनः सर्वे याता यास्यन्ति यान्ति च।।
हिन्दी में भावार्थ-
धन और भोजन के सेवन तथा स्त्री के विषयों में लिप्त रहकर भी अनेक मनुष्य अतृप्त रह गए, रह जाते हैं और रह जायेंगे।
किं तया क्रियते लक्ष्म्या या वधूरिव केवला।
या तु वेश्येव सा मान्या पथिकैरपि भुज्यते।।
हिन्दी में भावार्थ-
उस संपत्ति से क्या लाभ जो केवल घर की अपने ही उपयोग में आती हो। जिसका पथिक तथा अन्य लोग उपयोग करें वही संपत्ति श्रेष्ठ है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-मनुष्य के लोभ की सीमा अनंत है। वह जितना ही धन संपदा के पीछे जाता है उतना ही वह एक तरह से दूर हो जाती हैं। किसी को सौ रुपया मिला तो वह हजार चाहता है, हजार मिला तो लाख चाहता है और लाख मिलने पर करोड़ की कामना करता है। कहने का तात्पर्य यह है कि दौलत की यह दौड़ कभी समाप्त नहीं होती। आदमी का मन मरते दम तक अतृप्त रहता है। जितनी ही वह संपत्ति प्राप्त करता है उससे ज्यादा पाने की भावना उसके मन में जाग्रत होने लगती है।
आखिर अधिकतर लोग संपत्ति का कितना उपयोग कर पाते हैं। सच तो यह है कि अनेक लोग जीवन में जितना कमाते हैं उतना उपभोग नहीं कर पाते। उनके बाद उसका उपयोग उनके परिजन करते हैं। बहुत कम लोग हैं जो सार्वजनिक हित के लिये दान आदि कर समाज हित का काम करते हैं। ऐसे ही लोग सम्मान पाते हैं। जिन लोगों की अकूल संपत्ति केवल अपने उपयेाग के लिये है तो उसका महत्व ही क्या है? संपत्ति तो वह अच्छी है जिसे समाज के अन्य लोग भी उपयोग कर सके। जब समाज किसी की संपत्ति का उपयोग  करता है तो उसको याद भी करता है। संपत्ति के संग्रह से स्वयं को आत्म तृप्ति तो हो सकती हैं पर अगर वह किसी दूसरे के काम की नहीं है तो उसकी कोई प्रशंसा नहीं करता।  शायद यही कारण है कि हमारे देश में दान कि महिमा का बखान किया गया है जिससे समाज में सामंजस्य बना रहता है।
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Mar 26, 2010

हर काम का दाम-व्यंग्य कविता (word and prize-hindi satire poem)

लोहे के सामान में जान फूंकने वाला
पेट्रोल मंहगा
और आदमी को जिंदगी देने वाला
पानी बहुत सस्ता है।
बहाते हैं लोग पानी मु्फ्त का मानकर
पर पैट्रोल की कदर करते महंगा जानकर
बिना दाम लिये भलाई करने से
खुद के दिल को तसल्ली जरूर हो जाती है
पर जमाने में कद्र पाने के लिये
हर काम का दाम
वसूल करने का ही एक रस्ता है।
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जो तराशे गये हीरे
वह मुकुट में सज गये,
जिन पर नहीं पड़ी किसी की नज़र
वह खदान में ही सड़ गये।
दोष हीरों का नहीं
कद्रदानों का है
जिनकी नज़रें अब दौलत पर ही रहती हैं
कई तो हीरे के भाव लेकर पत्थर भी जड़ गये।
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Mar 23, 2010

ज़हर और अमृत-हिंदी शायरी (zahar aur amrit-hindi shayri)

यूं तो तन्हाई में भी इतना नहीं डरे थे

जितना भीड़ में आकर खौफ खाने लगे.

घर से निकलते हुए सोचा नहीं था कि

ज़माने भर के कायरों से मुलाकात होगी,

बिके थे लोग बाज़ार के सौदागरों के हाथ

दलाली लेकर ज़हर को अमृत बताने लगे..

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शहीदों के नाम पर लगाते हैं हर बरस मेले

नाम और नामा कमाने के वास्ते.

अपने हाथ से कभी किसी की

जिन्होंने कभी नहीं संवारी ज़िन्दगी

वाही बता रहे हैं लोगों को तरक्की के रास्ते..
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Mar 13, 2010

अब नारियों को बांटने लगे हैं-हिन्दी क्षणिकायें

पहले जाति में बांटा
भाषा में छांटा
और धर्म में काटा
फिर समाज में एकता की कोशिश
अमन के ठेकेदार करने लगे।
नारी की तरक्की देखकर
हक के नाम पर लड़ाने के लिये
उसे भी अब बांटने, छांटने तथा काटने के लिये जगे।
.....................................
क्या पता नारियां आगे बढ़कर
कहीं दुनियां में एकता न स्थापित कर दें
इस खौफ से
जमाने की फूट पर रोटियां सैंकने वाले
कंपने लगे हैं।
इसलिये ही जाति, भाषा और धर्म के
अलग अलग खंडों में नारियों को भी बांटने लगे हैं।
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मां है
बहिन है
पत्नी है
और बेटी है
नारी हर रिश्ता ईमानदारी से निभाती है।
जाति, धर्म और भाषा के नाम पर
लड़ने वाले पुरुषों की जननी जरूर है
पर फिर भी अपनी निर्मलता पर नहीं उसे गरुर है
इज्जत के अहंकार में लड़ने वाले पुरुष
जब उसके हकों में पुराने जमाने के तर्क देने लगे
समझ लो उन्हें स्त्री सत्ता की आशंकायें सताती हैं।
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जमाना बदल रहा है
महिलाओं के हकों के लिये
पुरुष भी लड़ने लगे हैं।
इसे चालाकी कहें या सादगी कि
जाति, धर्म और भाषा के नाम पर
महिलाओं को आगे लाने की बात कर
अपने समूहों के भले का नारा देने वाले ठेकेदार
अपनी रोटी सैंकने के लिये भी तत्काल जगे हैं।

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लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
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Mar 9, 2010

तुम्हारे जज़्बात-हिन्दी शायरी (tumhar jazbat-hindi shayri)

अपने जज़्बातों को दिल में रखो
बाहर निकले तो
तूफान आ जायेगा।
हर बाजार में बैठा हैं सौदागर
जो करता है व्यापार जज़्बातों का
वही तुम्हारी ख्वाहिशों से ही
तुमसे तुम्हारा सौदा कर जायेगा।
यहां हर कदम पर सोच का लुटेरा खड़ा है
देख कर ख्याल तुम्हारे
ख्वाब लूट जायेगा।
इनसे भी बच गये तो
नहीं बच पाओगे अपने से
जो सुनकर तुम्हारी बात
सभी के सामने असलियत गाकर
जमाने में मजाक बनायेगा।

लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
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