Jun 25, 2014

धर्म पर शब्द चर्चा-हिन्दी कवितायें(dharma par shabd charcha-hindi kavitaen)



धर्म के मसले पर हर रोज नयी चर्चा हो जाती है,
शब्दों की भारी भीड़ अधर्म की पहचान पर खर्चा हो जाती है।
कहें दीपक बापू विद्वानों के बीच बहस की जगह जंग होती है
तस्वीरों से शुरु शून्य पर खत्म चर्चा हो जाती है।
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आओ कोई मुद्दा नहीं है धर्म पर बात कर लें,
बैठे बिठाये अधर्म पर घात कर लें।
मौन रहने में शक्ति है पर देखता कौन है,
अपनी छवि दिखाने के लिये सभी आमादा
शोर के बीच अकेला खड़ा है वह शख्स जो मौन है।
कहें दीपक बापू किसी ने जप लिये वेद मंत्र,
कोई बना रहा है सर्वशक्तिमान के नाम पर तंत्र,
रट लेते जिन्होंने शब्द ग्रंथ से
लगा लिया है उन्होंने धर्म का बाज़ार,
भ्रम के धुंऐं के बीच बेच रहे आस्था का अचार,
सच्चे ज्ञानी का इकलौता एक ही साथ मौन है।
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 कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'

ग्वालियर, मध्य प्रदेश

कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com

Jun 11, 2014

भलाई कर भूल जाओ-तीन हिन्दी क्षणिकायें(bhalai kar bhool jao-three hindi short poem's)



कौन निभायेगा कौन दगा देगा नहीं है पता,
शक के घेरे में सभी है कब कौन कर बैठे खता।
कहें दीपक बापू हमेशा भलाई कर भूल जाओ
काम निकलते ही कोई भी बता सकता है धता।
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उजियाले में लेते जो हमेशा सांस अंधेरे का खौफ नहीं जानते,
अंधेरे में जीने के आदी रौशनी की कमी संकट नहीं मानते।
कहें दीपक बापू  पसीने में नहाते हुए गुजारते कई लोग
अमीरों की तरह किसी के सुख पर कभी भौंहें नहीं तानते।
‘‘‘‘‘‘‘‘‘‘‘‘
भूख हो तो टूटे बर्तन में सूखी रोटी भी प्यारी लगती है,
चखे हैं जिन्होंने पकवान उनकी जीभ स्वाद पर मरती है।
कहें दीपक बापू गरीब और मजदूरों लड़ते हैं जिंदगी की जंग
भरे  जिनके पेट उनकी नीयत हवा के झौंके में ही डरती है।
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 कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'

ग्वालियर, मध्य प्रदेश

कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com

Jun 3, 2014

तरक्की का पैमाना कभी नापा नहीं-तीन हिन्दी क्षणिकायें(tarakki ka paimana kabhi napa nahin-three short hindi poem)



 हर पल हादसों का अंदेशा छाया हर शहर में हैं,
इंसान और सामान के खोने का खतरा दिन के हर पहर में है।
कहें दीपक बापू तरक्की का पैमाना कभी नापा नहीं
ऊंचे खड़े बरगद गिरने के किस्से आंधियों के कहर में हैं।
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दायें चलें कि बायें या रुकें कि दौड़ें समझ में नहीं आता,
सड़क पर चलती बदहवास भीड़ चाहे जो किसी से टकराता।
कहें दीपक बापू एक हाथ गाड़ी पर दूसरे में रहता मोबाईल
लोग आंखें से रिश्ता निभायेंगे या कान से समझ में नहीं आता।
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हम सावधानी से चलते हैं क्योंकि घर पर कोई इंतजार करता है,
मगर उसका क्या कहें जो हमारे लिये हादसे तैयार करता है।
कहें दीपक बापू नये सामानों ने इंसान को कर दिया बदहवास
खुद होता है शिकार या दूसरे पर वार करता है।
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 कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'

ग्वालियर, मध्य प्रदेश

कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com