आज पूरे देश में श्रीगणेश चतुर्थी का पर्व उत्साह से मनाया जा
रहा है। साकार रूप में श्रीगणेश भगवान का
चेहरा हाथी और सवारी वाहन चूहा दिखाया जाता है।
सकाम भक्त उनके इसी रूप पर आकर्षक होकर उनकी आराधना करते हैं। आमतौर से
हिन्दू धर्म समाज के बारे में कहा जाता है कि वह संगठित नहीं है और भगवान के किसी
एक स्वरूप के न होने के कारण उसमें अन्य धर्मों की तरह एकता नहीं हो पाती। अनेक लोग भारतीय समाज के ढेर सारे भगवान होने
के विषय की मजाक बनाते हैं। इनमें भी भगवान श्री हनुमान तथा गणेश जी के स्वरूप को
अनेक लोग मजाक का विषय मानते हैं। ऐसे
अज्ञानी लोगों से बहस करना निरर्थक है।
दरअसल ऐसे बहसकर्ता अपने जीवन से कभी प्रसन्नता का रस ग्रहण नहीं कर पाते
इसलिये दूसरों के सामने विषवमन करते हैं। यह भी देखा गया है कि गैर हिन्दू
विचारधारा के कुछ लोगों में रूढ़ता का भाव इस तरह होता है कि
उन्हें यह समझाना कठिन है कि हिन्दू अध्यात्मिक दर्शन निरंकार परमात्मा का उपासक
है पर सुविधा के लिये उसने उनके विभिन्न मूर्तिमान स्वरूपों का सृजन किया है। साकार से निराकार की तरफ जाने की कला हिन्दू
बहुत अच्छी तरह जानते हैं। सबसे बड़ी बात यह कि देह की इंद्रियां-आंख, नाक, कान, तथा मन बाह्य
विषयों की तरफ सहजता से आकर्षित रहता है।
इसलिये ही बाह्य विषयों में दृढ़ अध्यात्मिक भाव स्थापित किया जाये तो बाद
में निष्काम भक्ति का भाव सहजता से अंतर्मन में लाया जा सकता है।
भगवान के मूर्तिमान स्वरूपों से अमूर्त रूप की आराधना करने में सुविधा
होती है। दूसरे धर्मों के लोगों के बारे
में क्या कहें कुद स्वधर्मी बंधु भी अपने भगवान के विभिन्न स्वरूपों के प्रति
रूढ़ता का भाव दिखाते हुए कहते हैं कि हम तो अमुक भगवान के भक्त हैं अमुक के नहीं?
इसके बावजूद गणेश जी के रूप के सभी
उपासक होते हैं क्योंकि उनके नाम लिये बिना कोई भी शुभ काम प्रारंभ नहीं होता।
आमतौर से भगवान श्रीगणेश जी का स्मरण मातृपितृ भक्त के रूप में किया जाता
है। बहुत कम लोग उस महाभारत की याद करते हैं जिसके गर्भ से श्रीमद्भागवत गीता जैसे
अद्भुंत ग्रंथ का जन्म हुआ, इसी महाभारत के रचयिता तो महर्षि वेदव्यास हैं
पर भगवान श्रीगणेश जी ने हार्दिक भाव के साथ
अपनी कलम से उसे सजाया है। आम
भारतीय के लिये श्रीमद्भागवत गीता एक पवित्र ग्रंथ है पर इसके विषय में कुछ ज्ञानी और साधक मानते हैं कि यह विश्व का
अकेला एक ऐसा ग्रंथ है जिसमें तत्व ज्ञान के साथ सांसरिक विषयों का विज्ञान भी
विद्यमान है। हाथी जैसे विशाल धड़ को धारण
तथा चूहे की सवारी करने वाले भगवान श्रीगणेश जी ने श्रीमद्भागवत गीता की रचना में अपना योगदान देकर भारतीय तत्वज्ञान को
एक ऐसा आधारभूत ढांचा प्रदान किया जिससे भारत विश्व का अध्यात्मिक गुरु कहलाता
है। यही कारण है कि भगवान श्रीगणेश जी के
उपासक जहां सकाम भक्त हैं तो निष्काम ज्ञानी और और साधक भी उनका स्मरण करते हुए
उनके स्वरूप का आनंद उठाते हैं।
यहां प्रस्तुत है श्रीगणपत्यथर्वशीर्षम् के श्लोक आधार पर उनके स्मरण के लिये मंत्र।
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ॐ (ओम) नमस्ते गणपतये। त्वमेव प्रत्यक्षं तत्वमसि। त्वमेव केवलं कर्तासि। त्वमेव धर्तासि। त्वमेव केवलं हर्तासि। त्वमेव सर्व खल्विदं ब्रह्मासि। त्वं साक्षादात्मासि नित्यम्
हिन्दी में भावार्थ-गणपति जी आपको नमस्कार है। आप ही प्रत्यक्ष तत्व हो, केवल आप ही कर्ता, धारणकर्ता और संहारकर्ता हो। आप ही विश्वरूप ब्रह्म हो और आप ही साक्षात् नित्य आत्मा हो।
ऋतं वच्मिं। सत्यं वच्मि।।
हिन्दी में भावार्थ-यथार्थ कहता हूं। सत्य कहता हूं।
हम जैसे योग तथा ज्ञान साधकों के लिये श्रीगणेश भगवान हृदय में धारण करने
योग्य विषय हैं। उन्हें कोटि कोटि नमन
करते हैं। सच बात तो यह है कि इस तरह उनके
आकर्षक स्वरूप का स्मरण करने से मन में उल्लास तथा आत्मविश्वास का भाव पैदा होता
है उसे शब्दों में व्यक्त करना एक दुष्कर कार्य है।
इस गणेशचतुर्थी के पावन पर्व पर सभी ब्लॉग लेखक मित्रों, पाठकों को हमारी तरफ से बधाई। भगवान श्रीगणेश जी उनके हृदय में स्थापित होकर
उनका जीवन मंगलमय करें। वही हर मनुष्य के
शुभ कमों के प्रारंभ में ही उत्तम फल का सृजन करते हैं जो समय आने पर उसे
मिलता है। वही दुष्टों के दंड का भी
निर्धारण करते हैं जिसकी कल्पना अपना दुष्कृत्य करते हुए अपराधी सोच भी नहंी सकता।
इसलिये मनुष्य को श्रीगणेश जी पर विश्वास करते हुए तनाव रहित होने का प्रयास करना
चाहिये।
कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'
ग्वालियर, मध्य प्रदेश
कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है।
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