Aug 1, 2007

पहले तय करो चाहते क्या हो

तुम तय करो पहले
अपनी जिन्दगी में
चाहते क्या हो
फिर सोचो
किस्से और कैसे चाहते क्या हो

उजालों में ही जीना चाहते हो
तो पहले चिराग जलाना सीख लो
उससे पहले तय करो
रोशनी में देखना चाहते क्या हो


बहारों में जीना है तो
फूल खिलाना सीख लो
उड़ना है हवा में तो
जमीन पर पाँव
पहले रखना सीख लो
अगर तैरना है तो पहले
पानी की धार देखना सीख लो
यह ज़िन्दगी तुम्हारी
कोई खेल नहीं है
इससे खिलवाड़ मत करो
इसे मजे से तभी जीं पाओगे
जब दिल और दिमाग पर
एक साथ काबू रख सकोगे
तुम्हारे चाहने से कुछ नहीं होता
अपने नसीब अपने हाथ से
अपनी स्याही और
अपने कागज़ पर
लिखना सीख लो
पर पहले यह तय करो
इस जिन्दगी के इस सफर में
देखना और पढ़ना चाहते क्या हो
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3 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढिया रचना है।बहुत सही कहा है-


उजालों में ही जीना चाहते हो
तो पहले चिराग जलाना सीख लो
उससे पहले तय करो
रोशनी में देखना चाहते क्या हो

36solutions said...

Bahut hi achhe vichar,

Dhanyavad


Aarambha

Reetesh Gupta said...

अच्छी लगी आपकी कविता....बधाई