Aug 27, 2007

क्रिकेट:अब मनोरंजन की दृष्टि से ही देखना ठीक रहेगा

आजकल क्रिकेट में जो द्वंद चल रहा है उससे तो कुछ क्रिकेट प्रेमी बहुत खुश हैं। वजह बिल्कुल साफ है कि जो क्रिकेट के पागलपन की हद तक दीवाने थे अब उनको यह पता लग गया है कि वह ठगे गये हैं-और उनके भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया गया है। उनके राष्ट्र प्रेम को भुनाने के लिए क्रिकेट ऐक ऐसा व्यवसाय बना जिससे की लोगों ने दौलत और शोहरत पाई पर वास्तव में उनका उसकी भावनाओं से कोई लेना-देना नहीं था।

उस दिन कपिल देव ने टीवी में ऐक साक्षात्कार में इंग्लेंड गयी टीम को बीसीसीआई की टीम कहा बाद में एंकर द्वारा घूर कर देखे जाने पर वह बोले 'मैं यह मजाक में कह रहा हूँ' , पर हम उन लोगों में हैं जो क्रिकेट में कपिल देव के आगे किसी को गिनते भी नहीं है और आज के खिलाड़ी जिनमें सचिन, राहुल और सौरभ भी शामिल हैं कितने भी बडे बने रहें पर उनकी तुलना मैं कपिल से नहीं कर सकता। बहरहाल क्रिकेट की आड़ में जिस तरह इस देश के लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ किया गया उस पर मीडिया दबे स्वर में सही उस पर दृष्टिपात करता है पर खुल कर कोई नहीं कहता क्योंकि इसकी प्रायोजक कंपनिया ही उनकी भी उनकी सबसे बड़ी विज्ञापनदाता हैं।

आजकल देश में जो दो क्रिकेट संस्थाओं के बीच जो द्वंद चल रहा है उससे मैं भी बहुत खुश हूँ, क्योंकि जिस तरह क्रिकेट की इकलौती संस्था के कर्णधारों ने अपनी संस्था को प्राईवेट कंपनी के रुप में चलाया और इस बात की परवाह नहीं की विश्व में भारतीय क्रिकेट का क्या सम्मान रह जाएगा और राष्ट्र प्रेम की आड़ में लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ हुआ उससे उसके प्रति लोगों में कोई सम्मान नहीं रह गया है। इसके विपरीत भारत द्वारा जीते गये गये इकलौते विश्व कप के कारण कपिलदेव का आज भी देश में सम्मान है क्योंकि उन्होने ही उस टीम का नेतृत्व किया था। सचिन तथाकथित रुप से विश्व के महानतम बल्लेबाज पर उनके नाम ऐक भी विश्वकप नहीं है। हम तो ऐक ही बात कहते हैं कि 'अपने कपिल का जवाब नहीं'

बीसीसीआई और आईसीएल दोनों ही संस्थाएं क्रिकेट की व्यवसायिक संस्थाएं हैं मतलब यह कि क्रिकेट अब ऐसा व्यवसाय बन चूका है जिसे शौक़ से देखें पर देशप्रेम जैसी चीज इसमें देखने वाली कोई बात नहीं होगी। जरूरत तो पहले भी नहीं थी पर ऐक ही टीम होने के कारण लोग उसे अपने देश की टीम समझ लेते थे पर अब तो टीम की पहचान संस्थाओं के नाम पर हो जायेगी। कभी बीसीसीआई की टीम खेलती दिखेगी तो कभी आईसीएल की टीम दिखेगी। मेरा मानना है कि इससे खेल में गुणवता ही आयेगी। अब हमें क्या मतलब कि किसकी टीम है? हम तो अच्छी टीम का ही मैच देखेंगे । उल्टे पहले से ज्यादा मजा आयेगा क्योंकि पहले देश के लिए भी दिल धड़कता था अब उस तनाव से मुक्त हो जायेंगे। कम से कम कोई खिलाड़ी देशप्रेम का नकली भाव तो नहीं ओढ़ कर सामने आएगा। क्रिकेट भी फिल्म और मीडिया की तरह ऐक शो बिजिनेस हो गया है और जिस तरह फिल्म के लोग पैसा लेकर अभिनय करते हैं पर उसकी आड़ में देश प्रेम का कोई दिखावा नहीं करते उसी तरह अब क्रिकेट खिलाडियों को भी अब राष्ट्र नायक का दर्जा नहीं मिलने वाला । अब तो यह है कि अपना अच्छा खेल दिखाओ और पैसा पाओ। देखने वाले भी बेपरवाह होकर देखेंगे। जिस तरह हम किसी फिल्म को देखकर किसी उसके अभिनेता, अभिनेत्री और निदेशक की तुलना किसी पाकिस्तानी फिल्म के अभिनेता, अभिनेत्री और निदेशक से नहीं करते वैसे ही क्रिकेट का भी होने वाला है। अभी हम कहते हैं 'हमारे पास सचिन है' तो पाकिस्तानी कहते हैं के 'हमारे पास इंजमाम है'। यह झगडा अपने आप खत्म हो जाएगा।

कुल मिलाकर अब अपनी भावनाएं क्रिकेट से लगाने का समय निकल गया है। हालांकि क्रिकेट से मुझे विरक्ति तो चार वर्ष पहले से हो गयी थी पर इस बार के विश्व कप के समय तो मेरा दिमाग अपने ब्लोग बनाने में के चक्कर में लगा हुआ था और सोचा था कि प्रतियोगिता का पहला चरण क्योंकि ज्यादा आकर्षक नहीं है इसलिये दूसरे चरण के मैचों से देखेंगे पर बीसीसीआई की टीम पहले ही बाहर हो गयी। इस टीम विश्व का विश्व कप जीतना संदिग्ध है यह बात मैंने अपने पहले लेख में लिखी थी यह अलग बात है कि सादा हिन्दी फॉण्ट में होने के कारण लोग उसे नहीं पढ़ सके। लिखने के बावजूद दिल हैकि मानता ही नहीं था कि हो सकता है शायद अपनी टीम जीत जाये। कपिल देव द्वारा आईसी एल का गठन करने के बाद यह दबाव तो खत्म हो गया है कि क्रिकेट में देशप्रेम जैसी भावनाएं जोड़ने की कोई जरूरत है, क्रिकेट को मनोरंजन की दृष्टि से देखना ही ठीक रहेगा।

1 comment:

VIMAL VERMA said...

आपने सही लिखा है आईसीएल के आ जाने से इनका एकाधिकार टूटेगा और हम देखने वालों को इसका फ़ायदा मिलेगा वैसे भी बीसीसीआई की बौखलाहट से ये बात आसानी से समझी जा सकती है, नये खिलाड़ियों के लिये तो टीम इंडिया में जगह ही नहीं है, कोई पॉलिसी नहीं है,खराब खेलने के बावजूद कुछ को बार बार मौके मिलते है, कुछ को एक आध मौका देकर भूल जाते हैं ऐसा क्यों? अच्छा खेल देखने को मिले सारे लोग यही तो चाहते हैं अब अगर खेल में राजनीति होगी तो किसे पसन्द है ये सब? अब एक खिलाड़ी है लछ्मी रतन शुक्ला २६ साल के है ऐसे ही किसी समय उन्हें मौका दिया गया था पर अब उनको वेटरन में गिना जाता भला ये बात कहां तक ठीक है?