Oct 29, 2010

उसकी रोटी-हिन्दी व्यंग्य कविता (uski roti-hindi vyangya kavita)

बरसों से उस आदमी को
ठेले पर सामान ढोते देखा है,
गमी, सर्दी और बरसात से
बेखबर वह चलता रहा है।
युवावस्था से वृद्धावस्था तक
उसे जीवन एक संघर्ष की तरह जिया है,
अपना ढेर सारा दर्द उसे खुद पिया है,
उस जैसे लोगों को जगाने,
लिखे गये ढेर सारे गाने,
कई लिखी किताबें उसकी हमदर्दी के लिये,
फिर भी चलता रहा अपने साथ बेदर्दी किये,
बहुत सारे घोषणपत्र जारी हुए,
पर फिर नहीं किसी ने अपने वादे छुए,
उसके पेट भरने के लिये
बड़ी बड़ी बहसें होती हैं,
कई रुदालियां भी नकली आंसु लिये रोती हैं,
उसकी रोटी के नाम पर
कई रसोई घर सज गये,
कई इमारतों के मुहूर्त पर बैंड बज गये,
मगर वह खुले आसमान में खुद पलता रहा है।
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उनके घर में रोशनी इसलिये ज्यादा है,
क्योंकि दूसरों की लूट का भी हिस्सा आधा है,
अंधेरा छा गया है कई घरों में
तब उनके आंगन हुए रोशन
क्योंकि उन्होंने शहर चमकाने का
बेचा वादा है।
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कवि, संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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Oct 17, 2010

सही पैमाना-हिन्दी व्यंग्य शायरी (sahi paimana-hindi vyangya shayri)

नैतिकता और बेईमान का पैमाना
पता नहीं कब तय किया जायेगा,
वरना तो हर इंसान सौ फीसदी शुद्धता के फेरे में
हमेशा ही अपने को अकेला पायेगा।
सफेद ख्याल में काली नीयत की मिलावट
सही पैमाना तय हो जाये
तब तोल तोलकर हर कोई
अपने जैसे लोग जुटायेगा।
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कत्ल करने वाला
कौन कातिल कौन पहरेदार
इसका भी पैमाना जब तय किया जायेगा,
तभी ज़माना रहेगा सुकून से
हर कत्ल पर शोर नहीं मचायेगा।
वैसे भी कातिल और पहरेदार
वर्दी पहनने लगे एक जैसी,
अक्लमंदों की भीड़ भी जुटी है वैसी,
कुछ इंसानों का बेकसूर मारने की
छूट भी मिल जाये तो कोई बात नहीं
बहसबाजों को भी अपने अपने हिसाब से
इंसानियत के पैमाने तय करने का
हक आसानी से मौका मिल जायेगा।
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Oct 3, 2010

जिंदगी और ज़ंग-हिन्दी कविता (zindagi aur jung-hindi poem)

जिनको शासन मिला है विरासत में
वह बड़े शासक बनना चाहते हैं,
जो शासित हैं
वह भी शासक बनने का ख्वाब पाले
जिंदगी में लड़े जा रहे हैं,
कमबख्त! जिस जिंदगी को
आसानी से जिया जा सकता है
लोग खुद जंग लड़कर
उसे मुश्किल बना रहे हैं।
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