Nov 25, 2014

योग करो तो जानो-लघु हिन्दी चिंत्तन लेख(yog kara to jano-hindi thought article)



                       प्रातःकाल समाचार सुनना अच्छा है या भजन! एक जिज्ञासु ने यह प्रश्न किया।
            इसका जवाब यह है कि समाचार सुनने पर हृदय में प्रसन्नता, आशा, तथा सद्भाव उत्पन्न होने की  संभावना के साथ ही हिंसा, निराशा, तनाव तथा क्रोध का भाव आने की आशंका भी रहती है।  भजन से मन में राग उत्पन्न अच्छा रहता है पर जब वह बंद हो जायेगा तो क्लेश भी होगा।  योग सूत्र के अनुसार राग में व्यवधान के बाद क्लेश उत्पन्न ही होता है।
            प्रातःकाल सबसे अच्छा यही है कि समस्त इंद्रियों को मौन रखकर ध्यान किया जाये।  यही मौन सारी देह में नयी ऊर्जा का संचार करता है। यही ऊर्जा पूरे दिन देह में स्फूर्ति बनी रहती है। पढ़ने या सुनने से यह बात समझ में नहीं आयेगी। करो तो जानो।
            एक योग साधक सुबह उद्यान में अपने नित्य क्रम में व्यस्त था। उसके पास एक अन्य व्यक्ति आया और बोला-‘‘यार, इस तरह क्या हाथ पांव चला रहे हो। हमारे साथ घूमो तो देह को अधिक लाभ मिलेगा।
            साधक हंसकर चुप रहा। वह फिर बोला-‘‘इस तरह की साधना से कोई लाभ नहीं होता। चिकित्सक कहते हैं कि पैदल घूमने से ही बीमारी दूर रहती है। तुम हमारे साथ घूमो! दोनो बाते करेंगे तो भारी आनंद मिलेगा।
            साधक ने कहा-‘‘पर वह तो मुझे अभी भी मिल रहा है।
            ‘‘तुम नहीं सुधरोगे’’-ऐसा कहकर चला गया।
            कुछ देर बार वह घूमकर लौटा और पास बैठ गया और बोला-‘‘अभी भी तुम योग साधना कर रहे हो। मैं तो थक गया! तुम थके नहीं!’’
            साधक ने कहा-‘‘तुम दूसरों के साथ बात करते अपनी ऊर्जा क्षरण कर रहे थे और मेरी देह मौन होकर उसका संचय कर रही थी। थक तो मैं तब जाऊंगा जब बोलना शुरू करूंगा।’’
            वह व्यक्ति व्यथित होकर उठ खड़ा हुआ-‘‘यार तुमसे तो बात करना ही बेकार है। तुम्हारे इस मौन से क्रोध आता है। इसलिये मैं तो चला।’’
            मौन केवल वाणी का ही नहीं कान, आंख और मस्तिष्क में भी रहना चाहिये।  यही योग है।  मौन रहका प्राणों के आयाम पर ध्यान रखने की क्रिया को जो आनंद है वह करने वाले ही जानते हैं।
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 कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'

ग्वालियर, मध्य प्रदेश

कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com

Nov 14, 2014

इंसान में फर्क-हिन्दी कविता(insan mein fark-hindi poem)



जीवन चक्र में कोई
अपनी योजना पर
होता बहुत सफल
कोई फंस जाता है।
जिसके हिस्से आया
भाग्य का खूबसूरत हिस्सा
भूल जाता है अपना दर्द
दूसरे पर रोज हंस जाता है।
कहें दीपक बापू सभी इंसान
लगते हैं एक जैसे
मगर दिल और दिमाग का
फर्क होता ही है,
कोई सोता है आंखें बंदकर
कोई जागते ही सोता है,
एक राह पर चलकर
कोई पहुंच जाता सिंहासन तक
दूसरा उसी पर गड्ढे में धंस जाता है।
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 कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'

ग्वालियर, मध्य प्रदेश

कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com

Nov 5, 2014

राजपद की महिमा-हिन्दी कविता(rajpad ki mahima-hindi poem)



यह संभव नहीं है
राजपद पर पहुंचकर
किसी के हृदय में आये
विशिष्टता का अहंकार।

महल के बाहर
लगती भीड़
आशायें लेकर आते लोग,
ज़माने के साथ चला आता
शिकायतों का रोग,
आंख और कान होते भं्रमित
सुनकर अपनी ही
प्रशस्ति गान की झंकार।

कहें दीपक बापू चल रहे
सभी सर्वशक्तिमान का नाम लेकर,
जिंदगी जी रहे
पसीने की कीमत देकर,
सिंहासन की तरफ निहारते
कोई तो आयेगा कभी
उनके उद्धार के लिये
करेगा धनुष की टंकार,
अपने पराये के भेद से
परे होकर रहेगा निरंकार।
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 कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'

ग्वालियर, मध्य प्रदेश

कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com