Mar 22, 2017

हर ताबूत में एक बुत भरा है-दीपकबापूवाणी (Har tabut mein ek but Bhara hai-DeepakBapuWani)

जहान के सहारे से अपनी जरुरत धरे, दिल में मदद का ख्याल रखे परे।
‘दीपकबापू’ बंजर जमीन पर खड़े होकर, श्रमहीन सोना पाने की चाह करे।।
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आमजन जन्मदिन याद नहीं रखता, खास की तरफ हर कोई तकता।
‘दीपकबापू’ लिख कथा मिटा देते, प्रेम शब्द कोई हिसाब नहीं रखता।।
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घुमाफिरा कर अपनी बात कहते हैं, सच के साथ डरकर रहते हैं।
‘दीपकबापू’ कायरों के जमघट में, सभी मुर्दों की कहानी कहते हैं।।
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हर ताबूत में एक बुत भरा है, जिंदगी में हारने से हर कोई डरा है।
‘दीपकबापू’ मस्ती खरीदें बाज़ार से, फिर भी दिल बोरियत में मरा है।।
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सच है लातों के भूत बातों से न माने, जब प्यार करो तो घूंसा ताने।
‘दीपकबापू’ मानवाधिकारों के चिंतक, भले बुरे इंसान में फर्क न माने।।
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तिलक लगाकर चलें भक्त कहलाते, नृत्य गायन से दिल आसक्त बहलाते।
‘दीपकबापू’ भक्ति की पहचान रंग बनाये, तस्वीर दिखा सदा वक्त टहलाते।।
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उनके अपने दिमाग एकदम हिले हैं, दूसरे इंसानो से बहुत शिकवे गिले हैं।
‘दीपकबापू’ घर से निकले लालच के साथ, सामने ताकतवर लुटेरे मिले हैं।।
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जीतें तो  तेजी से अपना कोष  बढ़ायें, हारें तो मैदान पर रोष चढ़ायें।
‘दीपकबापू’ खिलाड़ी होकर अक्ल खो दी, कर्म का भाग्य पर दोष मढ़ायें।
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सिंहासन पाने के लिये चलाते अभियान, जलकल्याण पर देते नये बयान।
‘दीपकबापू’ पांव पर चलाते बितायी जिंदगी, दर्द भूल जाते चढ़ते ही यान।।
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