Oct 30, 2007

भले लोगों का तलाश करें ठौर

सामने कुछ कहैं
पीठ पीछे कुछ और
ऐसे लोगों की बातों पर क्या करें गौर
बात काम करें मचाएँ ज्यादा शोर
बोले और पीछे पछ्ताएं
जैसे नाचने के बाद रोए मोर
जिनके मन में नही सदभाव
उनकी वाणी में होता है कटुता का भाव
अपनी पीठ आप थपथपापाएं
अपने दिल का मैल छिपाएं
क्या पायेंगे ऐसे लोगों को बनाकर सिरमौर
उनकी भीड़ में शामिल होने से बेहतर है
अकेले में समय गुजारें
उनके झुंड में रहने से अच्छा है
भले लोगों का तलाश करें ठौर

Oct 27, 2007

सच और झूठ

एक झूठ सौ बार बोला जाये
तो वह सच हो जाता है
और एक सच सौ बार
दुहराया जाये तो
मजाक हो जाता है
सच होता है अति सूक्ष्म
विस्तार लेते वृक्ष की तरह
कई झूठ भी समेटे हुए
वटवृक्ष बन जाता है
कौनसा पता झूठ का है
और कौनसा सच का
पता ही नही लग पाता है
लोग पते पकडे हाथ में ऐसे
मानो सच पकडा हो
भले ही झूठ ने उनकी बुद्धि को जकडा हो
जिनके पास सच है
उनको भी भरोसा नहीं उस पर
जिन्होंने झूठ को पकडा है
वह भी अपने पथ को सच
मानकर चलते हैं उस पर
सदियों से चल रहा है द्वंद
सच और झूठ का
इसका अंत कहीं नहीं आता है।
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Oct 23, 2007

अनुभूति

अपने अन्दर ही अपने पर
जब यकीन नहीं होता
तब किसी दूसरे पर
कोई कैसे भरोसा करेगा
जैसे मन में होगा खुद का चेहरा
वैसा ही दूसरे का भी लगेगा
तुम कितना चाहो
उधार की रौशनी से
तुम्हारा मन रोशन हो जाये
वह कभी संभव नहीं
क्योंकि जब तक तुम
खुद के नहीं बन सकते
तब क्या लगेगा गैर भी अपना
तुम्हें तो अपना भी गैर लगेगा
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