एक झूठ सौ बार बोला जाये
तो वह सच हो जाता है
और एक सच सौ बार
दुहराया जाये तो
मजाक हो जाता है
सच होता है अति सूक्ष्म
विस्तार लेते वृक्ष की तरह
कई झूठ भी समेटे हुए
वटवृक्ष बन जाता है
कौनसा पता झूठ का है
और कौनसा सच का
पता ही नही लग पाता है
लोग पते पकडे हाथ में ऐसे
मानो सच पकडा हो
भले ही झूठ ने उनकी बुद्धि को जकडा हो
जिनके पास सच है
उनको भी भरोसा नहीं उस पर
जिन्होंने झूठ को पकडा है
वह भी अपने पथ को सच
मानकर चलते हैं उस पर
सदियों से चल रहा है द्वंद
सच और झूठ का
इसका अंत कहीं नहीं आता है।
-----------------------
समसामयिक लेख तथा अध्यात्म चर्चा के लिए नई पत्रिका -दीपक भारतदीप,ग्वालियर
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
-
तुम तय करो पहले अपनी जिन्दगी में चाहते क्या हो फिर सोचो किस्से और कैसे चाहते क्या हो उजालों में ही जीना चाहते हो तो पहले चिराग जलाना सीख...
-
--- ज़माने पर सवाल पर सवालसभी उठाते, अपने बारे में कोई पूछे झूठे जवाब जुटाते। ‘दीपकबापू’ झांक रहे सभी दूसरे के घरों में, गैर के दर्द पर अपन...
No comments:
Post a Comment