Sep 30, 2008

उसका संघर्ष-हिंदी कहानी

तेज बरसात के कारण मैं एक जगह मंदिर के नीचे साइकिल खड़ी कर रुक गया। एक घंटे की तेज बरसात के बाद जब हल्की बूंदाबूदी होने गयी तो मैं चल अपने घर के तरफ। थोड़ी दूर जाकर देखा तो सड़क नहर बन गयी थी और यातायात अवरुद्ध हो गया था। मैं पैदल साइकिल घसीटता हुआ चला जा रहा था तो एक जगह न केवल पानी बहुत ऊंचाई पर बह रहा था बल्कि वहां एक इंच भी जगह आगे बढ़ने को नहीं थी। तब मैं वहीं सड़के के किनारे एक बंद दुकान पर खाली चबूतरे पर बैठ गया और साइकिल वहीं टिका दी।

थोड़ी देर सांस ली और फिर उस दुकान को देखा तो मुझे कुछ याद आया। यहां मैं कुछ महीने पहले ही अपने मोबाइल की सिम रिचार्ज कराने और बेकरी का सामान खरीदने आया था। वहां की दुकान पर चाय पी रहा एक मित्र मुझे देखकर मेरे पीछे अंदर चला आया।

वह मेरे से आठ वर्ष बड़ा था और काम काज के सिलसिले में ही उससे मेरी मित्रता हुई थी। वहां खड़ा लड़का बिस्कुट का पैकेट लेने गया दुकान में ही अंदर गया। मेरे साथ खड़ा मित्र मेरे को कुहनी मारकर बोला-ऐ देख, यार क्या वह सुंदर औरत आ रही है।’

मैंने बिना देखे उसे फटकारा-‘यार, अब तो तुम ससुर बने गये हो। कुछ तो शर्म करो।’
वह बोला-‘अरे यार, मैं तो केवल देखने की बात कर रहा हूं। क्या देखने में बुराई है?’
इतने में सेल्समेन आ गया और मैंने अनुभव किया कि दुकान में कोई अन्य शख्सियत भी दाखिल हो रही है शायद वही जिसका जिक्र मेरा मित्र कर रहा था। मैनें दायें तरफ मुड़कर देखा। वह मुस्कराते हुए मेरी तरफ आ रही थी।
उसने नमस्कार किया और बोली-‘कैसे हैं आप? आपको बहुत समय बाद देख रही हूं। दीदी कैसी है?’
हल्के कलर की पीली साड़ी और उसी रंग की माथे पर लगी बिंदिया!वह वाकई बहुत सुंदर लग रही थी, पर मेरे लिये वह अजनबी नहीं थी जो मैं इस विषय पर अधिक सोचता।
मैने कहा-‘सब ठीक है। तुम यहां कैसे आयी।’
वह बोली-‘यहां से निकल रही थी। आपको यहां अंदर आते देखा तो कार वहां पार्क कर चली आयी। सोचा कम से कम बात तो कर लूं और फोन नंबर भी लूं। दीदी क्या सोचती होंगी कि कभी मैंने उनसे संपर्क नहीं रखा।’
फिर वह दुकानदार से बोली-‘दो कोला देना!
मैंने कहा-‘यह साथ मेरा दोस्त भी है। पर मैं कोला नहीं पीता। हां, तुम चाहो तो बिस्कुट खाने के लिये ले लो। मैंने अभी खरीदे हैं।
वह हंस पड़ी फिर अपना विजिटिंग कार्ड मुझे देते हुए बोली-‘आप या दीदी फोन करना। मैं यहां से थोड़ी दूर ही कालोनी में रहती हूं। वैसे आपको देखकर लग रहा है कि आपने पीना वगैरह छोड़ दी है। पहले तो बहुत पीते थे।’

थोड़ी बातचीत हुई और वह वहां से चली गयी। मेरा दोस्त मेरे साथ सामान खरीदकर बाहर आया और बोला-‘यार, वह तुम्हें जानती है। तुम बहुत भाग्यशाली हो। कौन थी वह?’
मैंने उससे कहा-‘कभी यह बहुत तकलीफ में थी। अब ठीक है यह देखकर मुझे खुशी हुई। मैं उससे फोन पर बात करूंगा।’
मुझे याद आया काम के सिलसिल में उसकी कंपनी में जाता था। वह वहां लिपिक और टंकक का काम करती थी। अक्सर उससे मेरी मुलाकात होती थी। जब उसे पता लगा कि मैं लेखक हूं तो उसका मेरे प्रति और सम्मान बढ़ गया। उम्र में वह मुझसे बहुत छोटी थी पर आत्मीयता का भाव बहुत होता जा रहा था। संयोग वश एक विवाह में उसके साथ मेरी पत्नी और उसकी मुलाकात हुई। उसने मेरी पत्नी को बड़ी बहिन कह दिया। यह बात उसने अपने सहकर्मियों को बताई तो वह उसे मेरी साली कहने लगे। उसको इस पर कोई आपत्ति नहीं थी।

उसने कई बार मेरी पत्नी से भी फोन पर बातचीत की। एक दिन मैं उसकी कंपनी में गया तो उसके पास एक लड़का बैठा हुआ था। वह उससे बातचीत करती रही। उसके सहकर्मियों ने मुझे उसके पास नहीं जाने दिया और कहा कि‘वह उसका ब्वाय फ्रैंड है। आज हम उसका काम कर देते हैं।’
मुझे आश्चर्य हुआ पर यकीन नहीं हुआ। जहां तक मेरा अनुमान था वह कोई ब्वाय फ्रैंड बनाने वाली लड़की नहीं थी। वह लड़कों से खुलकर बातचीत करती थी पर पता नहीं क्यों मुझे ऐसा लगा कि वह कहीं ऐसे दिल लगाने वाली नहीं है।
उसने मुझे दूर से ही नमस्कार की। मैं भी प्रत्युत्तर में सिर हिलाने के साथ मुस्कराया।

ऐसा तीन दिन हुआ। चैथे दिन मैं वहां पहुंंचा तो वह खाली बैठी थी। इस बार उसके सहकर्मियों ने मुझे नहीं रोका। वह रजिस्टर अपने हाथ में लेकर बोली-‘ तीन दिन तक आपसे बात बात नहीं हुई तो उनको देखकर आप कोई गलतफहमी मत पालना। मेरे पापा ने उनसे बात करने को कहा है। रिश्ते की बातचीत चल रही है। वह दूसरी कंपनी में हैं और यहां कुछ वक्त बिताने केवल इसलिये आते थे कि हम दोनों एक दूसरे को समझ सकें।’
मैंने हंसकर कहा-‘तो क्या विचार है? क्या मैं उम्मीद करूं कि आपके पापा अपनी बेटी और जमाई (मैं और मेरी पत्नी) को कब मिठाई खिलाने के लिये आमंत्रित करेंगे? वैसे मुझे तो लड़का ठीक लगा। क्या इरादा है?’
उसने शर्माते हुए कहा-‘बहुत जल्दी।’
उसकी शादी में हम दोनों-पति पत्नी गये। उसके बाद उसने वह नौकरी छोड़ दी और पति की कंपनी में ही काम करने लगी। उसका और मेरा संपर्क टूट गया। हां, मेरी पत्नी यदाकदा उसके बारे में पूछती थी पर मेरे पास उससे संपर्क रखने का कोई अवसर नहीं आया।
उसके पापा से मुलाकात हुई। उनसे पता लगा कि उसके ससुराल में उसके साथ अच्छा व्यवहार नहीं हो रहा है। वह अपने पति जितना कमाती है पर उसके ससुराल में उससे घर का काम करने की भी अधिक अपेक्षा की जाती थी।
उसके एक सहयोगी ने बताया कि वह अब पीली पड़ गयी है और बहुत परेशान है। वह फिर उसी कंपनी में लौट आयी। मैं उसके पास गया। एक सुंदर और सुशील लड़की की आंखों पर उदासी देखकर मेरा मन भर आया।
उसने बातचीत करते हुएकहा-‘कामकाजी लड़की के लिये सभी जगह मुश्किल है। वहां सास और ननदें दिन भर बैठकर योजनायें बनाती हैं कि बहू घर में आये तो उसे ताने में क्या कहना है या यह करना है और में थकीमांदी पहुंचती हूं तो वह हमला कर देती हैं। मैं क्या करूं? पापा के घर लौट आयी हूं।’

एक दिन उसका पति मिला। मेरे साथ एक बुजुर्ग सज्जन खड़े थे। वह मुझसे बातचीत में अपनी पत्नी की शिकायत करने लगा। उन बुजुर्ग सज्जन को भी उसके बारे में जानकारी थी। मैं उसकी बातों का जवाब देता उससे पहले ही वह बोले-‘वह बहुत बुरी लड़की है-मैं तुम्हारी बात मान लेता हूं, पर वह अब तुम्हारा जिम्मा है कि मां, बहिन और उसके बीच समायोजन करो।’
उसका पति बोला-‘नहीं हो सकता बाबूजी।’
बुजुर्ग सज्जन ने कहा-‘क्या तुम मर्द नहीं हो? क्या तुम समझते हो कि तुम्हारे बाप ने ऐसी हालतों का सामना नहीं किया। वह अब कितना अपनी बहिन और भाई को पूछता है कभी तुमने देखा है। मां-बाप के साथ तुम्हारे बाप का क्या व्यवहार रहा मैं उसक बारे में भी जानता हूं। बेटा! समय के साथ आदमी अपनी पत्नी के करीब होता जाता है। औरत के साथ निभाने में आदमी को अपनी समझदारी का परिचय देना होता है।’
मैंने भी उन बुजुर्ग सज्जन का समर्थन किया। उसका पति हार गया था। दो दिन बाद वह जब मुझसे मिली तो उसने बताया कि ‘पतिदेव अब अपने माता पिता से अलग मकान ले आये हैं और कल से हम वहीं शिफ्ट हो गये हैं। उस दिन आपने क्या झाड़फूंक की है। अरे, आपको डर नहीं लगा। उन्होंने मुझे सब बताया। कभी कभी लगता है कि बहुत भोले हैं शायद आपसे अधिक!’

मैं खुश था। वह अभी उसी कंपनी में काम कर रही थी पर मेरा वहां जाना कम होता जा रहा था। उस दिन एक महीने बाद मैं पहुंचा। वह अपनी जगह पर नहीं थी। सहकर्मियों ने बताया कि उसका पति एक दुर्धटना में नहीं रहा। मुझे इस खबर ने विचलित कर दिया। साथ ही पता लगा कि वह अब अपने पिता के घर में है। घर पर पत्नी को बताया तो वह उसके लिये चिंतित होते हुए बोली-‘पर हम उसके पास कहां जायें? ससुराल के घर का पता है पर उसके पापा का तो मुझे पता नहीं है। अगर हम उसकी शादी पर गये हैं, तो हमें इस अवसर पर भी जाना चाहिए।’

पंद्रह दिन बात वह मुझे मिली। मुझे देखते ही उसने कहा-‘आपने चाहा पर मेरे भाग्य में खुशी नहीं थी। दीदी से कहना चिंता न करे। मैं भूल नहीं सकती कि आपने उस दिन उनको कितना लताड़ा था। आप चाहते थे कि मेरा घर बस जाये पर भाग्य को यह मंजूर नहीं था।’

मैंने उससे कहा-‘कोई बात नहीं। कुछ समय बाद दुःख भूल जाये तो दूसरा विवाह कर लेना। यह जिंदगी है इसको जीते रहना पर ढोना नहीं।’
मैं वहां चार महीने नहीं गया। एक दिन उसके पापा घर आये और एक मंदिर में उसके विवाह पर आने का आमंत्रण दे गये। उन्होंने कहा कि‘केवल खास लोगों को बुलाया है। आप भी जरूर आना।
पता चला कि लड़का कोई व्यवसायी है जिसका यह दूसरा विवाह है। दोनों का विवाह हो गया। कुछ दिन तक वह काम करती रही पर फिर उसने छोड़ दिया और पति के साथ ही व्यवसाय में कार्य करने लगी।

उसका हम दोनों से संपर्क करीब करीब समाप्त ही हो गया। हां, इधर उधर से उसके खुश रहने की खबरें आती थीं

मैं रास्ता जाम होने के कारण उसी दुकान पर अभी बैठा था जहां उससे मेरी आखिरी मुलाकात हुई थी। गाडि़यों के हार्न से मेरी सोच के दरिया में बाधा आयी। पानी अभी भी भरा हुआ था। आवागमन का अंत नजर नहीं आ रहा था। अचानक मैंने देखा कि तिराहे से एक उसी रंग की कार मुड़ रही है जो मैंने उसकी देखी थी। वह उसी कार को चला रही थी। मुझे याद आया कि उसने बताया था कि वह कहीं आसपास ही रहती है। शायद अगले मोड़ पर जाने वाले रास्ते में उसकी कालोनी थी। मैंने अपने हाथ में पसीना पौंछने के लिये रुमाल ले रखा था और फिर कुछ सोचकर उसे अपने चेहरे पर ऐसा घुमाने लगा कि जैसे पसीना भी पौंछ होऊं ताकि वह मुझे पहचान न सके।
वह देखेगी तो रुकेगी और पिछली मुलाकात का जिक्र करते हुए फोन न करने की शिकायत करेगी। हमारे घर का फोन नंबर बदल गया था जो कि मैंने उसे अभी तक नहीं दिया था। वह कार से उतर कर मेरे पास जरूर आयेगी इस बात की परवाह किये बिना कि यहां पानी भरा हुआ है-ऐसा मेरा यकीन था। मैं नहीं चाहता था कि वह उस कीचड़ में उतर कर आये। मैंने देखा वह धीरे-धीरे आगे निकल गयी और मैं भी उसकी कार के जाने के बाद अपने घर चल पड़ा। एक तो उसके ताने से बच गया दूसरा उसको खुश देखते रहने का अपना इरादा भी पूरा कर लिया। उसके जीवन का संघर्ष भुलाये भी नहीं भूलता है।
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Sep 20, 2008

प्यार का सौदा करने के लिए बनाते नफरत का रास्ता-हिन्दी शायरी

क्यों गुमराह हुए जा रहे हो
अपनी खोपडी में भी देखो
कहीं अक्ल का डेरा है
मत जाओ उस बाज़ार में
जहां हर मर्ज़ के इलाज
करने वाले नीम हकीमों का घेरा है

अपनी पीर को परे नहीं कर पाए
वह क्या ज़माने को रोशनी दिखाएँगे
पूरे बाज़ार का सामन मुफ्त में समेट कर भी
बैचैन हैं जिनकी रूह
कुछ और पाने को
दिखावे के लिए हमदर्द बनते हैं
भला दूसरे के दर्द को दूर भगाएंगे
जुबान से सुना रहे सपनों का हाल
अपनों से बजवा रहे वाह-वाह की ताल
वह ख्वाब बेचते हैं
हकीकतों से नहीं उनका वास्ता
प्यार का सौदा करने के लिए
बनाते हैं नफरत का रास्ता
उम्मीद करोगे उनसे तो
जो हाथ में है वह भी निकल जायेगा माल
अपनी खुशियाँ अगर किसी की नहीं हुईं
तो गम कैसे दूसरे का हो जायेगा
इसलिए अपना ही समझ जो दर्द तेरा है

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