आँखों से देखने की चाहत में
कई लोगों को गर्त में
गिरते देखा है
बोलने के लिए चाहे जैसे
शब्द दूसरों पर पत्थर की
तरह फेंकने वालों को
अपने ही वाक जाल में
फंसते देखा है
झूठ और दिखावटी अभिनंदन के
लिए उठने वाले हाथों को
हाथकडी में बंधते देखा है
इन सबसे परे होकर
जो रखते हैं अपने
मन पर नजर
जीभ से निकले शब्दों में
जिनके होता है मिठास
हाथ उठते हैं
जिनके केवल सर्वशक्तिमान के आगे
उन्हें ही सहज भाव से
जीवन जीते देखा है
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समसामयिक लेख तथा अध्यात्म चर्चा के लिए नई पत्रिका -दीपक भारतदीप,ग्वालियर
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लड़ते रहो दोस्तो ख़ूब लड़ो किसी तरह अपनी रचनाएं हिट कराना है बेझिझक छोडो शब्दों के तीर गजलों के शेर अपने मन की किताब से निकल कर बाहर दौडाओ...
1 comment:
बहुत बढिया लिखा है बधाई।
इन सबसे परे होकर
जो रखते हैं अपने
मन पर नजर
जीभ से निकले शब्दों में
जिनके होता है मिठास
हाथ उठते हैं
जिनके केवल सर्वशक्तिमान के आगे
उन्हें ही सहज भाव से
जीवन जीते देखा है
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