कौन निभायेगा कौन दगा देगा नहीं है पता,
शक के घेरे में सभी है कब कौन कर बैठे
खता।
कहें दीपक बापू हमेशा भलाई कर भूल जाओ
काम निकलते ही कोई भी बता सकता है धता।
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उजियाले में लेते जो हमेशा सांस अंधेरे का
खौफ नहीं जानते,
अंधेरे में जीने के आदी रौशनी की कमी संकट
नहीं मानते।
कहें दीपक बापू पसीने में नहाते हुए गुजारते कई लोग
अमीरों की तरह किसी के सुख पर कभी भौंहें
नहीं तानते।
‘‘‘‘‘‘‘‘‘‘‘‘
भूख हो तो टूटे बर्तन में सूखी रोटी भी
प्यारी लगती है,
चखे हैं जिन्होंने पकवान उनकी जीभ स्वाद
पर मरती है।
कहें दीपक बापू गरीब और मजदूरों लड़ते हैं
जिंदगी की जंग
भरे
जिनके पेट उनकी नीयत हवा के झौंके में ही डरती है।
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कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'
ग्वालियर, मध्य प्रदेश
कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com
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