Jan 17, 2015

दिल किसी से सटा नहीं था-हिन्दी कविता(dil kisi se sata nahin tha-hindi poem)



कांच का बर्तन था
टूट गया
दिल नहीं था कि रोयें।

कपड़ा रुई का था
फट गया
दिल नहीं था कि रोयें।

रुपया कागज का था
जेब से कट गया
दिल नहीं था कि रोयें।

कहें दीपक बापू लाभ हानि से
खुश होना
या रोना
 लोगों के लिये आम बात है
मायावी जगत में
ज़माने  के दांवपैंच को
हमने हंसते हंसते देखा,
अपने जाल में
चालाकों को भी फंसते देखा,
किसी खुशी या गम से सटा
दिल नहीं था कि रोयें।
---------------------

 कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'

ग्वालियर, मध्य प्रदेश

कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com

No comments: