खुश होने के बहाने
बहुत मिल जाते
कोई तलाश तो करे,
आंसुओं के कूंऐ में
रहने के आदी मेंढकों में
कोई कैसे आस को भरे।
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ऊंचे सपने लोग देखते
पर अपनी सोच
जमीन से नहीं उठाते।
सामानों के समंदर में तैरते
सस्ती दर पर
महंगा पसीना लुटा जाते।
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वह सब्र ही तो है
जो इंसान के साथ रहे
वरना तो ज़माना
दिल तोड़ने का इंतजाम
खुशी से कर देता है।
आंखों में चमक देखे
गम आगे कर देता है।
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जिंदगी के सफर में
राहों के साथ
हमराही भी बदल जाते हैं।
मुश्किल यह कि
कदम कभी पीछे जाते नहीं
बिछड़े चेहरों की
बस याद ही साथ लाते हैं।
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कैसे मिलें उनसे
अपना पता देकर
जो लापता हो जाते हैं।
उनके दिल में झांककर
हालचाल क्या जाने
दिखाते अपनी अजीब अदा
फिर खफा हो जाते हैं।
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आंखों से दूर हो गये
फिर भी तुम
दिल से निकले नहीं हो।
हमें भुलाकर
तुमने चिंता से ली आजादी
फिर भी तुम
हमारी यादों से निकले नहीं हो।
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कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'
ग्वालियर, मध्य प्रदेश
कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com
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