वह भिखारी मंदिर के बाहर
चप्पल के सिंहासन पर बैठा
पुण्य क्रेता ग्राहक की
प्रतीक्षा में बैठा
आनंदमय दिखता है।
वह बादशाह महल में
सोने के सिंहासन पर
प्रजा की चिंता में लीन
असुरक्षा के भय से दीन
चिंतामय दिखता है।
कहें दीपकबापू मन से
बनता संसार पर नजरिया
आंखों से केवल दृश्य दिखता है।
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चप्पल के सिंहासन पर बैठा
पुण्य क्रेता ग्राहक की
प्रतीक्षा में बैठा
आनंदमय दिखता है।
वह बादशाह महल में
सोने के सिंहासन पर
प्रजा की चिंता में लीन
असुरक्षा के भय से दीन
चिंतामय दिखता है।
कहें दीपकबापू मन से
बनता संसार पर नजरिया
आंखों से केवल दृश्य दिखता है।
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