Jul 17, 2016

समय की चाल पहचानी न जाये-दीपकबापू वाणी (Samay ki Chal Pahchani n jaye-DeepakBapu Wani)

एक इंसान तोड़ता भरोसा दूसरा आता है, साथ अपने नया भरोसा लाता है।
वफा से ज्यादा कीमती हो गयी बेवफाई, ‘दीपकबापू’ जो समझा मजा पाता है।
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पल पल में आदमी का बदलता मन, दुःख में कुम्हलाये सुख में फूले तन।
‘दीपकबापू’ किसी से न करें प्रेम या बैर, मिट्टी के बोलते बुत सभी जन।।
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समय की चाल पहचानी न जाये, इंसान की अक्ल मतलब पर जाये।
‘दीपकबापू’ न अमृत देखा न विष, जीभ तो दाना देखकर ललचाये।।
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संपूर्ण जीवन कमाने में लगाते, भूख की सीमा रोटी से आगे बढ़ाते।
‘दीपकबापू’ अपना अस्तित्व खोकर, फिर जिंदा रहने के सबूत जुटाते।।
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दोनों हाथ से मुद्रा का स्वाद चखते, घड़ी में बीते पल याद नहीं रखते।
‘दीपकबापू’ सूंघते स्वार्थ का फल, पेट खाता कम बाग में ज्यादा पकते।।
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सहन करते जीवन अगर युद्ध होता, शत्रु भी सह लेते अगर शुद्ध होता।
‘दीपकबापू’  ज्ञानियों की सभा में बैठे, सुन लेते अगर कोई प्रबुद्ध होता।।
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धरती आसमान के हिस्से किये, टुकड़ों के राजा अपने किस्से जिये।
‘दीपकबापू’ इतिहास रखा मौन, आमजन ने जो खून के हिस्से दिये।।
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समाज सेवकों का जमघट लगा है, नींद लेते हर कोई जगा है।
‘दीपकबापू’ बहरुपिये का वेश बनाया, नैतिक ठेकेदारों ने ठगा है।।
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