आजकल हमारा पूरा देश ऐसे विरोधाभासों में फंसा है जिनसे उसका निकलना बिना अध्यात्मिक ज्ञान के कठिन ही नहीं वरन् असंभव लगता है। एक तरफ हमारे देश में धर्म की रक्षा के लिये अनेक संगठन बने हैं तो दूसरी तरफ तथाकथित ज्ञानियों की भीड़ समाज को धर्म के मार्ग पर लाने के लिये जूझती दिखती है। न वक्ताओं का मन पवित्र है न श्रोताओं की रुचि उनके प्रवचनों में हैं। धार्मिक कार्यक्रमों के नाम पर टाईम पास मनोरंजन के लिये सभी जगह भीड़ जुट जाती है मगर परिणाम शून्य ही रहता है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण भ्रष्टाचार की समस्या को लें। सब मानते हैं कि भ्रष्टाचार देश से मिटना चाहिए मगर स्थिति यह है कि तमाम तरह के आंदोलनों के बावजूद इसमें रत्ती भर कमी नहीं आ रही है। आंदोलन करने वाले तमाम तरह के दावे करते हैं। उनको भारी भरकम राशि के रूप में चंदा भी मिल जाता है। बड़े बड़े भाषण सुनने को मिलते हैं। स्थिति यह हो गयी है कि भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलनों के कर्ताधर्ताओं ने प्रचार माध्यमों में महापुरुष के रूप में अपनी ख्याति बना ली है। इतना ही नहीं इनके अगुआ समाज में चेतना लाने का दावा भी करते हैं। इसके बावजूद हम जब धरती की वास्तविकता पर दृष्टिपात करते हैं तो लगता है कि पर्दे और कागज पर बयान की जा रही हकीकत अलग है। कुछ धार्मिक पुरुष भी भ्रष्टाचार के विरुद्ध शब्दों को व्यक्त कर जनमानस में अपनी छवि बनाने का प्रयास भी कर रहे हैं। यह अलग बात है कि इनमें से अनेक लोगों ने फाइव स्टार होटल नुमा महल और आश्रम बना लिये हैं। तय बात है कि यह सब चंदे और दान से ही हो रहा है। अब यह अलग बात है कि कहीं आमजन प्रत्यक्ष रूप से छोटी राशि का चंदा देता है तो कहीं बड़ा धनपति प्रायोजन करता है। किसी की नीयत पता नहीं की जा सकती है पर जब हम परिणाम देखते हैं तो यह साफ लगता है कि आमजनों के साथ छलावा हो रहा है।
मनुस्मृति में कहा गया है कि
न वार्यपि प्रचच्छेत्तु बैडालवतिके द्विजै।
न बकव्रततिके विप्रे नावेदाविवि धर्मवित्।।
हिन्दी में भावार्थ-धार्मिक रूप धारणकर जो दूसरों को मूर्ख बनाने के साथ उनसे धन ऐंठते हैं। ऐसे लोग बाहर से देवता और अंदर से शैतान होते हैं उनको पानी तक नहीं पिलाना चाहिए।
त्रिष्वप्येतेषु दंत्तं हि विधिनाऽप्यर्जितं धनम्।
दातुर्भवत्यनर्थाय परत्रादातुरेव च।।
हिन्दी में भावार्थ-बिडाल (दूसरों को मूर्ख बनाकर लूटने वाले), बक (बाहर से साधु का वेश धारण करने वाले राक्षसीय वृत्ति वाले) तथा वेद ज्ञान से रहित लोगों को दान देने से आदमी पाप का भागी बनता है।
यह कहना तो अनुचित होगा कि हमारे देश के सभी लोग मूर्ख हैं पर यह भी सत्य है कि बिडाल, बक और अध्यात्म के ज्ञान से शून्य लोग चालाकी से अपने लिये रोजीरोटी के लिये आमजन को भ्रमित कर रहे हैं। समाज सेवा एक ऐसा पेशा बन गयी है जिससे अनेक लोग न केवल रोजीरोटी कमा रहे हैं वरन् प्रचार माध्यमों में विज्ञापन और पैसा देकर अपने महानतम होने का पाखंड रच रहे हैं। हम यह नहीं कहते कि आमजन किसी को भी चंदा या दान न दे पर इतनी अपेक्षा तो आम भारतीय से की ही जानी चाहिए कि वह उचित पात्र को अपने मेहनत की कमाई का अंश प्रदान कर अपने मन को तृप्त करे न कि अनुचित आदमी को देने के बाद जब उसकी वास्तविकता पता होने से अपने अंदर खीज को आने दे। देश में एक तरफ अनेक तरह की समस्यायें हैं पर उनका निपटारा जनच्रेतना से हो सकता है। उसके लिये यह जरूरी है कि हम अपने शरीर की नहीं वरन् मन की आंखें भी खोलकर रखें। स्थितियों पर आध्यात्मिक दृष्टि से विचार कर उचित और अनुचित बात का निर्णय करें।
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
poet and writer-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com
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