Apr 26, 2014

अमीर के सिक्कों से चलता संसार-लघु हिन्दी व्यंग्य कवितायें(amiron ke sikkon se chalta sansar-shor hindi satire poem's)



अमीरों के सिक्कों पर सारा संसार चल रहा है,
राजा का खजाना भरता उनकी भेंट से
तो गरीब का पेट उनकी चाकरी से पल रहा है।
कहें दीपक बापू अमीरों के कई इंसानी बुत प्रायोजित है
कोई उनके लिये बनता है पैसा लेकर खलनायक,
कोई उपहार लेकर बन जाता नायक,
जिसे कुछ नहीं मिलता
वह खाली बैठा हाथ मल रहा है
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स्वांत सुखाय शब्द रचना व्यर्थ हो जाती है,
सिक्के मिलें तो अर्थ खो जाती है।
कहें दीपक बापू अपना अपना नजरिया है
प्रायोजन से बाज़ार में सज गयी किताबें ढेर सारी,
अल्मारी में बंद है इस इंतजार में कि कब आयेगी
पाठक की नज़र में उसकी बारी,
इनमें कुछ ही पुरस्कारों का
बोझ भी ढो जाती हैं।
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 कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'

ग्वालियर, मध्य प्रदेश

कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com

Apr 19, 2014

मतदान दल का हिस्सा होने पर मिलते हैं रोचक अनुभव-लोकसभा चुनाव २०१४ पर हिन्दी लेख (matadan dal ka hissa hone par milte hain rochak anubhav-a hindi article on loksabha election 2014)



     चुनावों में सूक्ष्म प्रेक्षक की भूमिका  निभाते हुए अत्यंत रोचक अनुभव होता है।  दरअसल इस रूप में हाथ से अधिक काम करना  नहीं होता वरन् मतदान केंद्रों पर सतत अपनी आंख जमाये चुनाव प्रक्रिया देखना ही होती है ताकि चुनाव निष्पक्ष और स्वतंत्र ढंग से हो सकें।  हमारी नियुक्ति अनेक बार मतदान दलों में पीठासीन अधिकारी तथा मतदान अधिकारी क्रमांक एक में रूप में पहले भी हो चुकी है पर अब सूक्ष्म प्रेक्षक के रूप में जाना ही होता है।  यह अलग बात है कि पीठासीन या मतदान अधिकारी के रूप में दैहिक तथा मानसिक सक्रियता इतनी हो जाती है कि बाकी चीजों पर ध्यान नहीं जाता जबकि सूक्ष्म प्रेक्षक जहां केवल ध्यान का काम है वहां इस बात की गुंजायश हो ही जाती है कि मतदान से इतर बातें भी दृष्टि पथ में आती हैं।   
     भारत में इस समय लोकसभा चुनाव 2014 का दौर मध्य स्थिति में पहुंच रहा है। इस चुनावी राजनीति में नेतागणों की सक्रियता पर मतदाता नज़र रखे हुए हैं।  प्रचार माध्यमों में चुनाव को लेकर अनेक प्रकार के समाचार आते रहते हैं पर शायद ही कोई उन लोगों के बारे में सोचता हो जो वास्तव में इस लोकतंत्र में राजनेताओं और मतदाताओं के बीच संपर्क सेतु में अपनी महत्ती भूमिका अदा करते हैं। वह होंते हैं मतदान दल जो हर केंद्र पर तैनात होकर इस लोकतांत्रिक प्रंक्रिया का संचालन करते हैं।
     महत्वपूर्ण बात यह है कि मतदान दल से जुड़े लोग इन चुनावों को जितना नजदीक से देखते हैं दूसरे के लिये वह केवल कल्पना ही  हो सकती है। एक सूक्ष्म प्रेक्षक के रूप में मतदाताओं से जुड़ाव होता ही है ताकि वह निडरता से मतदान कर सकें।  कहा जाता है कि मतदान दल को निष्पक्ष होना चाहिये।  हमने देखा है कि वहां निष्पक्षता या पक्षपात का सवाल ही नहीं रह जाता।  मतदान दल के लोग भले ही सामान्य समय में राजनीतिक विचारधाराओं पर चर्चा करते हों पर वहां सारी सोच हवा हो जाती है क्योंकि उनकी जिम्मेदारी इस तरह की होती है जिसमें मतदान सुचारु रूप से चलाने के अलावा उनको किसी बात का ध्यान करना ही संभव नहीं है।  चुनाव प्रत्याशियों तथा मतदाताओं की संख्या याद रहती है पर न तो किसी का चुनाव चिन्ह याद आता है न ही मतदाताओं के चेहरे पर अधिक दृष्टि रह पाती है।
     सूक्ष्म प्रेक्षक का दायित्व केवल मतदान पर दृष्टि रखना ही होता है इसलिये उसके पास थोड़ी देर अपना ध्यान कहीं अन्यत्र जाना संभव होता है।  शहर और गांव में मतदान की प्रक्रिया में कोई अंतर नहीं होता पर मतदान दलों की स्थितियां अलग हो जाती हैं। शहर में किसी मतदाता से निजी वार्तालाप करने पर विवाद की आशंका रहती है जबकि गांव में ऐसा नहीं होता। पिछले चुनावों में हमने अपने अनुभव पर कुछ नहीं लिखा पर इस बार मतदान थोड़ी धीमी प्रक्रिया से चला इसलिये कई ऐसे पल आये जिस समय हमारी मानवीय संवेदनाओं से  बाहर आकर आनंद दिया तो लिखने का मन किया। 
     प्रातः ही मतदान केंद्र के बाहर  एक बच्चा अपने मूंह में अंगूठा डालकर हमारी तरफ देख रहा था।  उसके चेहरे पर छायी मासूमियत ने अभिभूत किया तो हमने उससे कहा-‘‘क्या वोट डालना है?’’
     अंगूठा मूंह में ही डाले उसने अपना ना में सिर हिला दिया।  हमने कहा‘‘यह देखने आये हो कि मतदान प्रारंभ हुआ है या नहीं।’’
उसने ना में सिर हिलाया।
     थोड़ी देर वह अपने दादाजी के साथ आया तो हमने उसे देखकर कहाअच्छा, तो दादाजी को साथ लाना था इसलिये ही पहले से जांच करने आये थे।’’
     उसके वृद्ध दादाजी बोले-‘‘हां, यहां से आने के बाद बार बार कह रहा है कि चलो वोट डालो।  बैठने ही नहंी दे रहा था।’’
     पांच छह साल की बच्ची दादी के साथ आयी। उसकी मासूमियत ने हमें आकर्षित् किया।  उसके एक आगे भी एक अन्य मतदाता थी।  हम दरवाजे पर रखी कुर्सी पर ही बैठे थे और बच्ची एकटक घूर रही थी तो हमने उससे कहा-‘‘गुड़िया तुम अपनी दादी के साथ आयी हो या दादी तुम्हारे साथ आयी है। दोनों में से कौन वोट डालेगा?’’
     उसने मासूमियत से दादी की तरफ उंगली उठा दी। उसकी दादी बोली-‘‘सुबह से ही कह रही है कि दादी मुझे वोट डालने ले चलो। कोई काम ही नहीं करने दे रही थी।’’
     सात आठ साल का एक बच्चा लाल रंग की शर्ट और नेकर पहनकर दनादनाता हुआ अपने दादा के आगे चलता हुआ मतदान केंद्र में आ गया।  उसकी मासूमियत देखकर हमने उससे कहा-‘‘क्या दादाजी के बॉडीगार्ड बनकर साथ आये हो?
     लड़के ने दोनों हाथों से अपनी आंखें ढंक ली। उसको संकोच करते देख हमने कहा-‘‘तुम्हारी ड्रेस देखकर यही लग रहा है कि दादाजी की रक्षा के लिये उनके साथ चल रहे हो।’’
     उसके दादाजी बोले-‘‘हां, यह खेत वगैरह में भी मेरे साथ ही चलता है।  शहर जाऊं तो भी साथ चलने की जिद करता है।’’
     एक बीस साल का युवक आया। गांव का होने के बावजूद वह जींस तथा टीशर्ट पहने था।  वह पढ़ा लिखा ही लग रहा था पर जब मतदान अधिकारी के पास वह हस्ताक्षर करने पहुंचा तो बोला-‘‘ मैं अंगूठा लगाऊंगा।’’
     उसका स्वर तल्ख था। हमने उसकी जींस की जेब में रखी पेन देखी थी। हमने हसंते हुए कहा-‘‘अरे भई, आप जैसे स्मार्ट ंयुवक के लिये यह अंगूठा लगाने वाली बात जमती नहीं है। आप तो पेन लेकर हस्ताक्षर करो तो कम से कम हमें इस बात का अफसोस न हो कि स्मॉर्ट लोग भी अंगूठा लगाते हैं।’’
     उसके रूखे चेहरे पर हंसी आ ही गयी और उसने मतदान अधिकारी से पेन लेकर रजिस्टर परदस्तखत कर दिये।
     मतदान समाप्त होने के बाद जब हम अपनी वापसी के लिये वाहन की प्रतीक्षा कर रहे थे तब गांव के वही चेहरे खड़े थे जिनके साथ हमारा मतदान के दौरान संपर्क हुआ था।  उसी लड़के ने अपने गांव का हैंडपंप सुधरवाने के लिये आवेदन लिखवाने का आग्रह किया।  हमारे एक मतदान अधिकारी ने उसे बोलकर लिखवाया। हमने उसकी हस्तलिपि देखकर कहा-‘‘भई  तुम्हारा हस्तलेखन तो इतना सुंदर है फिर क्यों अंगूठा लगाने पर अड़े थे?’’
     वह मुस्कराकर चुप हो गया। उसके दादाजी बोले-‘‘यह ऐसा ही करता है। अपनी पढ़ाई का इससे अहंकार आ गया है।’’
     हमने कहा-‘‘नहीं, यह इसका आत्मविश्वास है कि वह अपना सुंदर हस्तलेखन किसी को दिखाना नहीं चाहता।’’
     जब वहां से चलने को हुए तो वह लड़का बोला-‘‘सर, आपका स्वभाव बहुत अच्छा है।’’
     उसे मालुम नहीं था कि हम सूक्ष्म प्रेक्षक के रूप में वहां आये थे जिनकी नियुक्ति उन मतदान केंद्रों पर होती है जो संवेदनशील माने जाते हैं।  ऐसे केंद्रों पर पहले हुए चुनावों के दौरान हिंसा या गड़बड़ की शिकायत हो चुकी होती है। मूलतः गावों के लोग सीधे सादे और सच्चे  होते हैं पर उनमें कुछ ऐसे भी होते हैं जो सीदे होने के बावजूद अपने को नायक साबित करने के लिये कुछ ऐसी हरकतें इन चुनावों करते हैं जिनसे उनकी दबंग छवि का प्रचार हो।  उनकी गतिविधियों से गांव ही बदनाम हो जाता है।  हमारा स्वाभाविक व्यवहार वहां चालाकी की तरह अपना काम कर मतदान को बोझिल होने से बचाने के साथ ही शांतिपूर्ण चलाने के लिये सहायक हो रहा था।
     आमतौर से वहां किया गया हमारा वार्तालाप हमारी दिनचर्चा का हिस्सा है पर हमने इस तरह का व्यवहार मतदान की प्रक्रिया में सहजता बनाये रखने के लिये किया था। महत्वपूर्ण बात यह कि घर से निकलने और पहुंचने के बीच ज्वलंत राजनीतिक विषय पर किसी से चर्चा नहीं हो पायी। वजह साफ है कि उस समय केवल चुनाव कराने हैं यह सोच हावी थी।  सामग्री लेने और जमा करने के समय अनेक मित्रों से भेंट हुई पर सभी केवल अपने मतदान केंद्र की  चुनावी प्रक्रिया की चर्चा कर रहे थे।  इस तनाव में स्मरणशक्ति इतनी क्षीण हो गयी थी कि घर पर याद आया कि हमारे देश में राजनीतिक दलों के नेता और उनके चुनाव चिन्ह भी होते हैं।

 कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'

ग्वालियर, मध्य प्रदेश

कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com

Apr 11, 2014

नकली जांबाज-हिन्दी व्यंग्य कविता(nakali janbaz-hindi vyangya kavita)



जिनके कंधों पर अपने सपने सच करने का भरोसा जताया
वह मौका पड़ते ही लड़खड़ाने लगे,
उनकी डोर अपने मतलब से बंधी थी
हम उनकी नाकामी पर देर से जगे।
कहें दीपक बापू इंसान कभी फरिश्ते नहीं होते,
दरियादिली दिखाते हैं पर उनके दिल शेर जैसे नहीं होते,
कोई गरीबों का नायक बन रहा है,
कोई बेबसों के लिये हमदर्दी वाला गायक बन रहा है,
दिलों में बसी है अपने ख्वाहिशें पूरी करने की बात,
सज्जन बनकर करते पीछे से घात,
बचपन में जितने खिलौने उन्होंने नहीं तोड़े,
उससे ज्यादा वादों के झूठे तीर छोड़े,
खुशफहमी में रहे कि हमारे साथ कोई जांबाज है
आया मौका जब जंग का वह सबसे पहले भगे।
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 कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'

ग्वालियर, मध्य प्रदेश

कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
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Apr 4, 2014

वक्त और दृश्य बदलते हैं-हिन्दी लघु व्यंग्य कविता



परेशान हाल लोगों के लिये वादे महलों से बरस रहे हैं,
हुकूमत के प्यासे उनके हाथ से पानी की
एक बूंद पाने के लिये तरस रहे हैं।
कहें दीपक बापू समय वाकई बलवान है
कतरा कतरा कर आम इंसान भरते हैं मटका,
तोड़ देते हैं बड़े लोग देकर उसे एक झटका,
दृश्य बदलता है जब तक जगह बदलती है
जेब से पैसा निकालने वाले अब खर्च के लिये
लोगों के चेहरे देखने के लिये तरस रहे हैं।
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 कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'

ग्वालियर, मध्य प्रदेश

कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
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