पहलवानी पर बनी फिल्म में नायिका का अभिनय करने वाली ने कहा है कि ‘मुझे कश्मीर के युवा अपना आदर्श न समझें।’
उसने इस फिल्म को नारी विषयों पर प्रेरक मानने वाले लोगों के गाल पर करारा तमाचा जड़ा है। हमने टीवी, अखबार तथा सामाजिक जनसंपर्क पर इस फिल्म के गुणगान करने वालों पर तरस आ रहा है। बिचारे क्या कह रहे थे कि इस प्रेरणा से नारियों को प्रेरणा लेनी चाहिये और अभिनय करने वाली नायिका ने ही कहा दिया कि ‘इस फिल्म को भूल जाओ।’
उसने बहुत समय बाद यह बात कही है। अब तक भारतीय दर्शक अपना पैसा खर्च कर चुके हैं। निर्माता निर्देशक पैसा वसूल कर चुके हैं। यही लोग दांव पैंच लगाकर उसे पुरस्कार भी दिलाते रहेंगे। इस फिल्म का चाकलेटी नायक अंतर्राष्ट्रीय पहुंच वाला है इसलिये संभावना है कि यह ऑस्कर भी चली जाये। हमें शुरु से ही पर्दे पर अभिनय करने वालों की वक्तव्यकला के साथ बौद्धिक क्षमता पर भरोसा नहीं है। वह दूसरे का लिखा पढ़ते हैं जिसकी कीमत भी वसूल करते हैं। उनमें आदर्श या प्रेरणा ढूंढने वाले भारतीय अध्यात्मिक दर्शन में वर्णित सिद्धांतों को नहीं जानते। हम तो देह सहित उपस्थित मनुष्य को ही कल्पित मानते हैं तो फिर पर्दे के पात्रों में सत्य ढूंढने की तो सोच भी नहीं सकते।
उस नायिका ने वहां की मुख्यमंत्री से मुलाकात के बाद-जिसके बाद सामाजिक संपर्क प्रचार माध्यमों में उस पर छींटाकसी हुई थी-उठे बवाल पर उसने माफी मांगी है। दरअसल उसने वहां की मुख्यमंत्री से मुलाकात पर माफी मांगी है-जिसे प्रचार माध्यमों के विद्वान अपने अपने ढंग से ले रहे हैं। तय बात है कि हम भी अपनी ढंग से ही लेंगे।
हमें उसका माफीनामा उसकी फेसबुक पोस्ट की तरह शुद्ध रूप से राजनीति से प्रेरित लगता है। अगर कश्मीर के युवा युवतियां उसे आदर्श मान रहे थे तो वहां उपस्थिति धार्मिक विघटनकारियों के लिये चिंता की बात हो सकती -जिन्हें अपना अस्तित्व बचाने के लिये भारत में मौजूद तत्वों से भी मदद मिलती है। वह एक सफल फिल्म की अभिनेत्री है अतः उसके पास इतना धन तो आ गया होगा कि वह मुंबई में बस जाये पर जैसा कि उसने माना कि वह आयु में छोटी है इसलिये माता पिता के बिना यह संभव नहीं है। यकीनन उसके माता पिता पर भी कहीं से दबाव आया होगा-अब भले ही उस नायिका के बयान में कहा जाये कि उस किसी का दबाव नहीं है। उसने अपने बयान में पिछले छह महीनों की हालत का जिक्र किया है-अधिक विवरण नहीं दिया-जिससे यह साफ लगता है कि पत्थरबाजी की घटना के बाद वहां जो तनाव व्याप्त हुआ है वह उसकी तरफ इशारा था।
इस बात की संभावना भी लगती है कि उसके संरक्षक अब फिल्म उद्योग को अप्रत्यक्ष रूप से यह समझा रहे हों कि अब दूसरी फिल्में भी दो वरना हमारी अपनी एक मौलिक विचाराधारा भी है जिस पर हम चल सकते हैं। उसे कोई दूसरी फिल्म मिली है इसकी जानकारी नहीं है इसलिये अनुमान के आधार पर यह हम कह रहे हैं। पहलवानी में भारत के लिये नाम रौशन करने वाली जिस वास्तविक नायिका की कहानी पर यह फिल्म बनायी गयी थी उसने भी मामला समझे बिना पर्दे की नायिका को समर्थन दिया पर हमारी समझ में नहीं आया कि इसकी जरूरत क्या थी जो प्रचार प्रबंधकों ने उससे सवाल किये। धरातल के यह वास्तविक नायक पर्दे के अभिनेताओं का खेल नहीं जानते-यह बात तय है।
हमें तो फेसबुक पर पहले पोस्ट डालने फिर उसे हटाने के प्रकरण में नारियों की समस्याओं से अधिक राजनीति के साथ ही व्यवसायिक कौशल की चाल भी दिख रही है और भाई लोग इसे परंपरागत ढंग से वहीं ले जा रहे हैं। अभी बताया जा रहा है कि उसने फेसबुक से अपनी इस संबंध में सारी पोस्ट हटा ली है। तब सवाल आता है कि दबाव पहले था या अब है। समझना मुश्किल हो रहा है कि अगर पहले यह दबाव नहीं होता तो फेसबुक पर माफीनामें वाली पोस्ट डालती क्यों? या अब यह समझाया जा रहा है कि अब दबाव पड़ा तो हटाई है। वरना अगर पहले दबाव इतना प्रभावी होता तो अब हटाती क्यों? कहीं यहां प्रचार माध्यमों में अपना नाम लाने की कोशिश नहीं है। सच यह है कि हम इस फिल्म की नायिका का नाम तक नहीं जानते थे। न फिल्म देखी न देखने का इरादा है। ज्यादा माथापच्ची करने पर हमारे दिमाग में एक ही नारा आता है जिसके जनक हम ही हैं-फिल्म और क्रिकेट में सब चलता है यार!