नाव चली लहरों से लड़ने
किनारा मिला नहीं
मांझी ने ही किया छेद
इसलिये डूबने का
हुआ गिला नहीं
----
गज़ब उनकी खामोशी
दिल को लुभाती है।
तारीफ के काबिल
उनका नज़र डालना
जो फूल भी चुभाती है।
-
नाम तो बड़े सुने
छोटे दर्शन से सिर धुने।
थक गये यह सोच
कब तक ख्वाब बुने।
..............
बंद कमरों की गप्पबाजी
कभी बाहर नहीं आती।
राई को ढके पर्वत
यही राजनीति बताती।
--------
घर से बाहर आते
पर दिमाग के द्वार बंद हैं।
ताजगी की अनुभूति में
उनकी संवेदनायें मंद हैं।
दिल पढ़ा नहीं
आंखें देखकर
श्रृंगार पद रच डाला
अर्थरहित स्पंदहीन
शब्द हुआ मतवाला।
------
समाज सेवा के ठेके
वादों पर मिल जाते हैं।
नकली जुबानी जंग से
लोग यूं ही हिल जाते हैं।
-
बंदर जैसी उछलकूद
करते रहो
लोग समझें बंदा व्यस्त है।
कुछ नहीं कर पाओगे तुम
इसलिये हौंसला बढ़ाओ
उन लोगों का
जो पस्त है।
------
अपनी बात इशारों में
शेर कहकर लिखते हैं।
मन भी होता हल्का
शालीन भी दिखते हैं।
------
विकास के रास्ते
तांगे से कार पर
सवार हो गये।
जज़्बातों से ज्यादा
सामानों के यार हो गये।
--------
एकांत मे भी अकेले
कहां होते हम
अपना अंतर्मन जो साथ होता।
मौन से मिलता वह
वरना कोने में बैठा रोता।
चांद और सूरज से
तुलना न कीजिये।
अंधेरा को चिराग ही पहचाने
रौशनी का मजा यूं ही लीजिये।
---
घर सामान से भरे हैं,
दिल जज़्बात से डरे हैं।
शोर करते भीड़ में लोग
अकेलेपन से डरे हैं।