आज पहली बार बहुत समय बाद लोगों के मुहँ से क्रिकेट के बारे में चर्चा करते सुना, और स्पष्ट है कि यह कल बीस ओवरीय विश्वकप प्रतियोगिता के सेमी फाइनल में आस्ट्रेलिया को हारने के बाद शुरू हुई। पहले ऎसी चर्चा १९८३ में शुरू हुई थी बाजार में लोगों को जमकर भुनाया गया और विश्व में आर्थिक रुप से गरीब कहे जाने वाला भारत क्रिकेट का आर्थिक आधार बन गया। फिर एक दौर एसा आया कि भारतीय टीम अंतर्राष्ट्रीय दौरों पर तो अच्छा प्रदर्शन करती पर प्रतियोगिताओं में पिट कर आ जाती। क्रिकेट के कर्ण धारों को लगता कि अन्तराष्ट्रीय दौरों के सफलता से भारत में क्रिकेट की लोकप्रियता बरकरार रहेगी और उन्होने प्रतियोगिताओं को भी सामान्य रुप से लिया और पिछले विश्व कप के बाद भारत में क्रिकेट की लोकप्रियता कम हो गयी भले ही क्रिकेट से जुडे लोग इसे नही मानते हैं पर इसके आर्थिक पक्ष से जुडे विशेषज्ञ इस पहलू को जानते हैं कि लोगों में अगर लगाव अधिक नहीं है तो उसका फ़ायदा नही उठाया जा सकता है।
बीस ओवरीय मैच अगर देखा जाये तो भारत में क्रिकेट को लोकप्रियता दिला सकते हैं और बाजार में एक बार फिर लोगों में इसके प्रति लगाव पैदा कर उसे भुना सकते है पर उसकी एक ही शर्त है कि भारत इस कप को जीत ले। महत्वपूर्ण मैच हारने के मामले में भारतीय खिलाडी बदनाम है और इसी कारण दर्शकों में खेल और खिलाडियों के प्रति जज्बा कम भी है। हालांकि लोग कहते हैं कि खेल है उसको खेल की भावना से देखा जाना चाहिऐ पर और यह सही भी है पर जब इससे जुडे आर्थिक पक्षों के बारे में सोचेंगे तो यह साफ लगेगा कि जीत और सिर्फ जीत ही उसमें काम करती है, खिलाडियों को आर्थिक फायदा दिलाने में । सभी जगह एक नंबर को सलाम किया जाता है और दो और तीन नंबर वाले कहा जाता है कि'कोई बात नहीं अगली बार प्रयास करना'।
कल की जीत के बाद अगर लोगों में पुन: क्रिकेट के बारे में चर्चा शुरू हुई है तो इससे जुडे बाजार के लोग जरूर खुश हुए होंगे। आज मैं बाजार गया तो दुकानों, ठेलों और पार्कों के आसपास एकत्रित लोगों के मुहँ से इस बात में चर्चा सुनी -शायद कई वर्षों बाद। इसमें हर वर्ग का आदमी था-अब वर्गों के स्वरूप तो सब जानते ही हैं उनमें विस्तार से जाने की बजाय हम कह सकते हैं कि क्रिकेट के बारे मे पहली बार जन सामान्य के बीच चर्चा हुई। आर्थिक समीक्षकों की दृष्टि से कहें तो आज बहुत दिन बाद क्रिकेट का बाजार खुला।
बहुत दिन से क्रिकेट के लेकर लोगों में निराशा का भाव था और फाइनल में उत्साह का संचार तो हुआ है पर यह आगे बना रहे तो इसकी एक ही शर्त है कि भारत इस विश्व कप को जीत ले। वैसे मुझे यह यकीन है कि भारत इस विश्व कप जीत लेगा क्योंकि इसमें सब युवा खिलाड़ी हैं और उनमें पूरी तरह एकजुटता का भाव दिखाई देता है जबकि पिछले एक दिवसीय विश्व कप में गयी टीम के बारे में किसी को विश्वास नहीं था और खिलाडियों के मनमुटाव की चर्चाएं भी सार्वजनिक रुप से हो चुकीं थी। फिर उसके अनेक खिलाडी अनफिट थे। जैसा कि मैं कहता हूँ कि क्रिकेट खिलाड़ी की फिटनेस का आंकलन उसकी बैटिंग और बोलिंग से नही बल्कि उसकी रन लेने के लिए विकेटों की बीच दौड़ तथा क्षेत्र रक्षण करने की फुर्ती से देखा जाना चाहिऐ और मुझे इस टीम में इस दृष्टि से कोई कमी नहीं दिखाई देती। मेरी इस टीम को शुभकामना है कि वह जीते और देशवासियों का मनोबल बढाए जिनके जज्बातों पर उनका और इस खेल का भविष्य टिका हुआ है।
समसामयिक लेख तथा अध्यात्म चर्चा के लिए नई पत्रिका -दीपक भारतदीप,ग्वालियर
Sep 23, 2007
Sep 8, 2007
दृष्टा बनकर जो रहेगा
अगर मन में व्यग्रता का भाव हो तो
सुहाना मौसम भी क्या भायेगा
अंतर्दृष्टि में हो दोष तो
प्राकृतिक सौन्दर्य का बोध
कौन कर पायेगा
मन की अग्नि में पकते
विद्वेष, लालच, लोभ, अहंकार और
चिन्ता जैसे अभक्ष्य भोजन
गल जाता है देह का रक्त जिनसे
तब सूर्य की तीक्ष्ण अग्नि को
कौन सह पायेगा
अपने ही ओढ़े गये दर्द और पीडा का
इलाज कौन कर पायेगा
कहाँ तक जुटाएगा संपत्ति का अंबार
कहाँ तक करेगा अपनी प्रसिद्धि का विस्तार
आदमी कभी न कभी तो थक जाएगा
जो दृष्टा बनाकर जीवन गुजारेगा
खेल में खेलते भी मन से दूर रहेगा
वही अमन से जीवन में रह पायेगा
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सुहाना मौसम भी क्या भायेगा
अंतर्दृष्टि में हो दोष तो
प्राकृतिक सौन्दर्य का बोध
कौन कर पायेगा
मन की अग्नि में पकते
विद्वेष, लालच, लोभ, अहंकार और
चिन्ता जैसे अभक्ष्य भोजन
गल जाता है देह का रक्त जिनसे
तब सूर्य की तीक्ष्ण अग्नि को
कौन सह पायेगा
अपने ही ओढ़े गये दर्द और पीडा का
इलाज कौन कर पायेगा
कहाँ तक जुटाएगा संपत्ति का अंबार
कहाँ तक करेगा अपनी प्रसिद्धि का विस्तार
आदमी कभी न कभी तो थक जाएगा
जो दृष्टा बनाकर जीवन गुजारेगा
खेल में खेलते भी मन से दूर रहेगा
वही अमन से जीवन में रह पायेगा
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Sep 3, 2007
अपनी सोच से अपने को बचाओ
विश्वास, सहृदयता और प्रेम हम
ढूंढते दोस्तो, रिश्तेदारों और
अपने घर-परिवार में
अपने मन में कब और कहाँ है
कभी झांक कर देखा है
इस देह से बनी दीवार में
अपने अहं में खुद को जलाए देते हैं
इस भ्रम में कि कोई और
हमें देखकर जल रहा है
लोगों के मन में हमारे प्रति
विद्वेष पल रहा है
कभी अपने मन को साफ नहीं कर पाते
चाहे कितनी बार जाते
सर्वशक्तिमान के दरबार में
कुछ देर रूक जाओ
अपनी सोच को अपने से बचाओ
और फिर अपनी देह में सांस ले रहे
उस अवचेतन की ओर देखो
उससे बात करो
तब तुम्हारा भ्रम टूटेगा कि
कितना झूठ तुम सोच रहे थी
और सच क्या है इस संसार में
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ढूंढते दोस्तो, रिश्तेदारों और
अपने घर-परिवार में
अपने मन में कब और कहाँ है
कभी झांक कर देखा है
इस देह से बनी दीवार में
अपने अहं में खुद को जलाए देते हैं
इस भ्रम में कि कोई और
हमें देखकर जल रहा है
लोगों के मन में हमारे प्रति
विद्वेष पल रहा है
कभी अपने मन को साफ नहीं कर पाते
चाहे कितनी बार जाते
सर्वशक्तिमान के दरबार में
कुछ देर रूक जाओ
अपनी सोच को अपने से बचाओ
और फिर अपनी देह में सांस ले रहे
उस अवचेतन की ओर देखो
उससे बात करो
तब तुम्हारा भ्रम टूटेगा कि
कितना झूठ तुम सोच रहे थी
और सच क्या है इस संसार में
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