Sep 3, 2007

अपनी सोच से अपने को बचाओ

विश्वास, सहृदयता और प्रेम हम
ढूंढते दोस्तो, रिश्तेदारों और
अपने घर-परिवार में
अपने मन में कब और कहाँ है
कभी झांक कर देखा है
इस देह से बनी दीवार में

अपने अहं में खुद को जलाए देते हैं
इस भ्रम में कि कोई और
हमें देखकर जल रहा है
लोगों के मन में हमारे प्रति
विद्वेष पल रहा है
कभी अपने मन को साफ नहीं कर पाते
चाहे कितनी बार जाते
सर्वशक्तिमान के दरबार में

कुछ देर रूक जाओ
अपनी सोच को अपने से बचाओ
और फिर अपनी देह में सांस ले रहे
उस अवचेतन की ओर देखो
उससे बात करो
तब तुम्हारा भ्रम टूटेगा कि
कितना झूठ तुम सोच रहे थी
और सच क्या है इस संसार में
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3 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

आत्म-मंथन करती एक बढिया रचना है।

उससे बात करो
तब तुम्हारा भ्रम टूटेगा कि
कितना झूठ तुम सोच रहे थी
और सच क्या है इस संसार में

Reetesh Gupta said...

सुंदर भाव हैं ...अच्छा लगा

Udan Tashtari said...

अपने अहं में खुद को जलाए देते हैं
इस भ्रम में कि कोई और
हमें देखकर जल रहा है
लोगों के मन में हमारे प्रति
विद्वेष पल रहा है



--बिल्कुल सही कहा!!! क्या बात और सोच है..सही जा रह हैं.