Dec 10, 2007

इंसान और परिंदे

ऊपर उठ कर आसमान छू लेने की
चाहत किसमें नहीं होती
पर परिंदों जैसी
किस्मंत सभी की नहीं होती
उड़ते हैं आसमान में
पर उसे छू कर देखने की
ख्वाहिश उनमें नहीं होती
उड़ नहीं सकता आसमान में
फिर भी इंसान की
नजरें उसी पर होती
उड़ते हुए परिंदे
आसमान से जमीन पर भी आ जाते
पर इंसान के कदम जमीन पर होते
पर ख्याल कभी उस पर नहीं टिक पाते
लिखीं गयी ढेर सारी किताबें
आकाश के स्वर्ग में जगह दिलाने के लिए
जिसमें होतीं है ढेर सारी नसीहतें
पढ़कर जिनको आदमी अक्ल बंद होती
अपने पैर में जंजीरें डालकर
आदमी फिर भी कहता है
'काश हमारी किस्मत भी परिंदों जैसी होती'

Dec 8, 2007

इसे भाग्य कहें या कर्मों का लेखा

पत्थर और कागजों के टुकडों को
जोड़ने में जो अपना मन लगाते
उनको श्रृंगार रस में नहलाए
अलंकार से सजाए
शब्दों के गीत नहीं सुहाते
सुनने के आदी है भयानक शोर
अपने सुर से दूसरे को करते बोर
उन्हें कानों को संगीत के सुर नहीं भाते
इसे भाग्य कहें या कर्मों का लेखा
जन्नत के सुख के लिए आदमी
पूरी जिन्दगी भर लड़ता है
पर इस धरती पर मौजूद
वैसे ही सुनहरे दृश्य उसके नसीब में नहीं आते
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तन की भूख सूखी रोटी खाकर मिट जाये
पर मन की अनंत भूख कहाँ तक थम पाये
जमीन पर पाँव के साथ दिमाग भी रख कर
आदमी अगर सोचे तो कभी नहीं पछताए
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Dec 2, 2007

इसलिए आज हमने कुछ नहीं लिखा

आज कुछ नहीं लिखा। मैं आज सोच रहा था की कोई गजल, गीत, कविता, कहानी, व्यंग्य या कोई लेख लिखूं पर मेरा सारा ध्यान 'उड़न तश्तरी' शब्द चला जा रहा था। गजल लिख रहा था उसमें हर लाइन में उड़न तश्तरी शब्द आ जाता था। जैसे-
''शराब के नशे में देखा आकाश में थी उड़न तश्तरी
उसमें से निकली बहारें बिखेरती एक सुदंर सी परी।''

इसमें गड़बड़ कहीं नहीं है बस खुटका इस बात का था कि यह किसी बड़ी शख्सियत का नाम हुआ तो उसके प्रशंसक बिगड़ जायेंगे। अपनी भावनाएं आहत होने का आरोप लगायेंगे। कुछ और क्यों नहीं लिखा। परी को उड़न तश्तरी से ही क्यों उतारा एरोप्लेन से क्यों नहीं?

फिर गीत लिखने बैठा तो उसकी पहली पंक्ति में ही यह शब्द आ गया जैसे-
'' उनकी आँखें देखीं तो थी मदभरी
चमक रहीं थी जैसे उड़न तश्तरी''
बस इससे आगे बात नहीं बढ़ी। पहले यह तो पता करना चाहिऐ कि यह किसी का नाम तो नहीं है। ऐसा लगने लगा कि मैंने कई बार यह नाम देखा है और लगता है कि इस नाम के व्यक्ति के बहुत सारे समर्थक हैं। अब गीत और गजल हैं तो लिखते समय भावनाओं का उतार चढाव तो आते हैं और कुछ ऐसा-वैसा लिख गए तो फिर लोगों को समझाना कठिन हो जायेगा कि भई, हमारे इन शब्दों का उड़न तश्तरी नाम के किसी शख्सियत से कोई लेना-देना नहीं है, पर आजकल कोई किसी की सुनता कहाँ है, सब तो कहने में लगे हुए हैं। एक शब्द पढ़कर पूरे पाठ का अर्थ निकल लेते हैं।

व्यंग्य लिखने बैठे तो फिर 'उड़न तश्तरी' पर ही लिखने का विचार आया। कहीं कोई चमकता पत्थर पहाड़ से गिरा तो लोगों ने कहा यह उड़न तश्तरी है-ऐसे विचार बना और छोड़ दिया। हम जितना इस शब्द को भुलाना चाहते उतना ही याद आता।

कहानी लिखने बैठे तो एक गरीब बच्चे की याद आयी जिसे किसी ने बताया था कि ऊपर से उड़न तश्तरी में बैठकर फ़रिश्ते आते हैं और गरीबों को उपहार देते हैं और वह आकाश में बैठा रात को उड़न तश्तरी देखता रहता है-अब यह कहानी लिखते तो कहानी में अनेक बार इस शब्द को लिखना पड़ता। इसलिए यह विचार स्थगित कर दिया। फिर लेख लिखने को बैठा तो याद आया कि अमेरिका में बहुत पहले लोगों ने उड़न तश्तरी से लोग निकलते देखे थे। अगर उड़न खटोले में देखे होते तो मैं लिख देता। अब सवाल यह है कि क्या उड़न तश्तरी को किसी वस्तु से जोडें और किसी व्यक्ति का नाम हुआ तो समस्या आ जायेगी। जब कुछ लिखते हैं तो उसमें कोई प्रतिकूल टिप्पणी भी आ सकती है और और व्यंग्यात्मक कटाक्ष भी। ऐसे में किसी का नाम हुआ तो वह आपति करेगा और कोई बड़ी शख्सियत का मालिक हुआ तो उसके समर्थक ही बवाल खडा कर देंगे।

मतलब यह कि कोई भी नाम लिखें तो देखना पड़ेगा कि वह अधिक प्रचलित नहीं होना चाहिऐ। ब्लोग पर लिखते हुए कम से कम दो ब्लोग के नाम या उनके संचालन कर्ता का परिचय ऐसे हैं जिन्हें अपने ब्लोग पर लिखना कठिन होता है क्योंकि वह इस तरह के हैं कि उनकी संज्ञा और क्रिया दोनों ही व्यंग्य की और इंगित करतीं है और उनको लिखने का मतलब है उसके नामधारियों से झगडा मोल लेना। जब सारा दिन 'उड़न तश्तरी' शब्द दिमाग से नहीं निकला तो हमें आज लिखने का प्रोग्राम स्थगित कर दिया, ऐसा लिखने से क्या फायदा कि विवाद खडा हो जाये। वैसे देखा जाये तो आजकल लेखक वैसे भी काम है और हम भी कभी कभार ही कोई बड़ी रचना लिखने बैठते है तब एक-एक शब्द पर इतना सोचेंगे तो लिखेंगे क्या?
नोट-यह एक हास्य व्यंग्य आलेख है और किसी व्यक्ति या घटना से इसका कोई लेना-देना नहीं है, अगर किसी से मेल हो जाये तो संयोग होगा।