ऊपर उठ कर आसमान छू लेने की
चाहत किसमें नहीं होती
पर परिंदों जैसी
किस्मंत सभी की नहीं होती
उड़ते हैं आसमान में
पर उसे छू कर देखने की
ख्वाहिश उनमें नहीं होती
उड़ नहीं सकता आसमान में
फिर भी इंसान की
नजरें उसी पर होती
उड़ते हुए परिंदे
आसमान से जमीन पर भी आ जाते
पर इंसान के कदम जमीन पर होते
पर ख्याल कभी उस पर नहीं टिक पाते
लिखीं गयी ढेर सारी किताबें
आकाश के स्वर्ग में जगह दिलाने के लिए
जिसमें होतीं है ढेर सारी नसीहतें
पढ़कर जिनको आदमी अक्ल बंद होती
अपने पैर में जंजीरें डालकर
आदमी फिर भी कहता है
'काश हमारी किस्मत भी परिंदों जैसी होती'
समसामयिक लेख तथा अध्यात्म चर्चा के लिए नई पत्रिका -दीपक भारतदीप,ग्वालियर
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
-
तुम तय करो पहले अपनी जिन्दगी में चाहते क्या हो फिर सोचो किस्से और कैसे चाहते क्या हो उजालों में ही जीना चाहते हो तो पहले चिराग जलाना सीख...
-
देखता था शराब की नदी में डूबते-उतरते उस कलम के सिपाही को कई बार लड़खड़ाते हुए उसकी निगाहों में थी बाहर निकलने के मदद की चाहत दिखता था किसी...
1 comment:
सुंदर भाव और सुंदर अभिव्यक्ति.
एक अच्छी कविता पेश करने के लिए साधुवाद.
Post a Comment