कभी-कभी उदास होकर
चला जातो हूँ भीड़ में
सुकून ढूँढने अपने लिए
ढूँढता हूँ कोई हमदर्द
पर वहाँ तो खडा रहता है
हर शख्स अपना दर्द साथ लिए
सुनता हूँ जब सबका दर्द
अपना तो भूल जाता हूँ
लौटता हूँ अपने घर वापस
दूसरों का दर्द साथ लिए
कभी सोचता हूँ कि
अगर इस जहाँ में दर्द न होता
तो हर शख्स कितना बेदर्द होता
फिर क्यों कोई किसी का हमदर्द होता
कौन होता वक्ता कौन श्रोता होता
तब अकेला इंसान तडपता
किसी का दर्द पीने के लिए
समसामयिक लेख तथा अध्यात्म चर्चा के लिए नई पत्रिका -दीपक भारतदीप,ग्वालियर
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
-
खज़ाना लूटकर लुटेरे करने लगे व्यापार, बांटने लगे उधार, इस तरह साहुकारों और सौदागरों भी ऊंची जमात में शामिल हो गये, क्योंकि उन सामंतों को...
-
आज पूरे देश में श्रीगणेश चतुर्थी का पर्व उत्साह से मनाया जा रहा है। साकार रूप में श्रीगणेश भगवान का चेहरा हाथी और सवारी वाह...
No comments:
Post a Comment