यूं तो सपनों में भी वही आते हैं
जिन्हें हम देख पाते है
पर जागते हुए हम
कितना जागरूक रह पाते हैं
आसमान से जमीन पर आती हवाएं
जब सूरज की किरणें
फ़ैल जातीं है चारों ओर
पर इंसान उनके दृश्यों को कितना
अपनी आंखों में समेट पाते हैं
फिर भी अपने शक्तिशाली
और संपन्न होने का भ्रम
कितने लोग छोड़ पाते हैं
हवा तो छूकर निकल जाती है
सूरज की किरणे
चिपकी रहतीं है साथ पर
उनके स्पर्श की आत्मिक अनुभूति
कहाँ कर पाते हैं
जीवन में पल-पल पाने का मोह
हमें दूर कर देता है सुखद
और एकाकी पलों को
जीते कहाँ है
हम तो जिन्दगी को ढोते जाते हैं.
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अपने-अपने होते हैं अंदाज
सबके होते हैं कुछ न कुछ राज
पूरी जिन्दगी गुजर जाते हैं
कुछ बताने और कुछ छिपाने में
जान नहीं पाते अपनी जिन्दगी के राज
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समसामयिक लेख तथा अध्यात्म चर्चा के लिए नई पत्रिका -दीपक भारतदीप,ग्वालियर
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1 comment:
अच्छा लिखा है। भाई। बधाई। जेपी नारायण
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