जो तुम्हारे मन की घुटन को
कभी दूर न कर श्के
जो तुम्हें दर्द देने वालों को
कदम पीछे हटने के लिए
मजबूर न कर सके
ऐसी कविता मत लिखो
शब्दों के दलालों की मंडी
सजी है सब जगह
कान और आँख खडे राशन में
एक लाइन की मजबूर की तरह
जो मिलेगा वही पढेंगे और सुनेंगे
भेद न सके गिरोह की चालों को
ऐसी कविता मत लिखो
तुम्हारे अन्दर की पीडा
बन जाये दूसरे के लिए अमृत तो ठीक
जहर बनकर किसी को डसे
तुम्हारे शब्द किसी को कर सकें
उसके मानसिक अंतर्द्वंद से मुक्त तो ठीक
पर वह भ्रम में जाकर फंसे
ऐसी कविता मत लिखो
तुम जिन हांड-मांस के पुतलों को
बोलते, देखते और सुनते देख रहे हो
अपने स्वार्थों की चाबी के भरे
रहने तक ही चलते हैं
खतरनाक चेहरे और आवाजों को
देखकर सहमते हैं
जो नहीं भर सकें उनमें
इंसानों जैसी संवेदनाएं
ऐसी कविता मत लिखो
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समसामयिक लेख तथा अध्यात्म चर्चा के लिए नई पत्रिका -दीपक भारतदीप,ग्वालियर
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लड़ते रहो दोस्तो ख़ूब लड़ो किसी तरह अपनी रचनाएं हिट कराना है बेझिझक छोडो शब्दों के तीर गजलों के शेर अपने मन की किताब से निकल कर बाहर दौडाओ...
1 comment:
जो नहीं भर सकें उनमें
इंसानों जैसी संवेदनाएं
ऐसी कविता मत लिखो
-- सत्यवचन ...
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