Aug 22, 2008

देखने वाले सच भूल जाते-हिंदी क्षणिका

टीवी धारावाहिकों के
पारिवारिक क्लेशों पर लोग बतियाते हैंें
असल जीवन में ऐसे खलपात्र नहीं मिलते
जिनको देखकर वह घबड़ाते
झूठी कल्पनाओं और कहानियों के
नायक नायिकाओं
खलनायक खलनायिकाओं
को असल समझ कर
अपना दिल बहलाते
झूठ के पांव नहीं होते
इसलिये जमीन पर नहीं चलता
पर इलैक्ट्रोनिक पंख उसे
रंग बिरंगे रूप में लोगों के आगे इस तरह बिछाते
देखने वाले सच भूल जाते

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यह आलेख मूल रूप से इस ब्लाग ‘राजलेख की हिंदी पत्रिका’पर लिखा गया है । इसके अन्य कहीं प्रकाशन के लिये अनुमति नहीं हैं। इस लेखक के अन्य ब्लाग।
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2 comments:

Udan Tashtari said...

बहुत बढिया.लिखते रहें!!

Nitish Raj said...

वाह...वाह....