‘आपने घर और वर देख लिया। आपकी लड़की भी इनको पसंद है पर आज यह बताईये दहेज में कुल कितना देंगे?’
लड़की के पिता ने कहा-‘पांच लाख।’
मध्यस्थ ने लड़के के पिता की तरफ देखा। उसने ना में सिर हिलाया।
लड़की के पिता ने कहा-‘छह लाख।‘
लड़के पिता ने फिर ना में सिर हिलाया।
लड़की के पिता ने कहा-‘सात लाख’
वैसा ही जवाब आया। बात दस लाख तक पहुंच गयी पर मामला नहीं सुलझा। अचानक मध्यस्थ को कुछ सूझा उसने लड़की के पिता को बाहर बुलाया।
अकेले में उसने कहा-‘क्या बात है? आपने लड़के के पिता से अकेले में बात नहीं की थी। मैंने आपको बताया था कि नौ लाख तक मामला निपट जायेगा। एक लाख अलग से लड़के के पिता को देने की बात कहना।’
लड़की के पिता ने कहा-‘यह भला कोई बात हुई। लड़के के पिता से अलग क्या बात करना?’
मध्यस्थ ने कहा-‘आदत! लड़के के पिता ने कई जगह नौकरी की है। सभी जगह से उसे अपनी इसी आदत के कारण हटना पड़ा। अरे, वह किसी भी काम के अलग से पैसे लेने का आदी है। जहां उसका काम चुपचाप चलता है कुछ नहीं होता। जब कहीं पकड़ा जाता है तो निकाल दिया जाता है। उस्ताद आदमी है। एक जगह से छोड़ता है दूसरी जगह उससे भी बड़ी नौकरी पा जाता है।’
लड़की के बाप ने कहा-‘ठीक है। उसे बाहर बुला लो।’
मध्यस्थ ने उसे बाहर बुलाया और उससे कहा-‘आप चिंता क्यों करते हैं? आपको यह अलग से एक लाख दे देंगे और किसी को बतायेंगे भी नहीं।’
लड़के के पिता ने कहा-‘हां, यह बात हुई न! मैंने तो पहले ही नौ लाख की मांग की थी। अगर यह पहले से ही तय हो जाता तो फिर इनको एक लाख की चपत नहीं लगती!
लड़की के बाप ने आश्चर्य से पूछा-‘कैसे?’
लड़के के पिता ने कहा-‘अरे, भई आपने मेरी पत्नी के सामने दस लाख दहेज की बात कर ली तो वह कम पर थोड़े ही मानेगी। अगर आप पहले ही अलग से मामला तय कर लेते तो मैं नौ लाख पर अपनी मोहर लगा देता। मैंने आज तक अपने काम में कभी बेईमानी नहीं की। जिससे पैसा लिया है उसका काम किया है।’
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लड़का घोड़े से उतर नहीं रहा था। घोड़ी से उतरने के लिये उसे पंद्रह सौ रुपये देने की बत कही गयी। उसने ना कहा। उससे सोलह सौ रुपये फिर सत्रह सो रुपये। तीन हजार तक प्रस्ताव नहीं दिया गया पर बात नहीं बनी।
आखिर दूल्हे का दोस्त दुल्हन के पिता को अलग ले गया और बोला-‘आप भी कमाल करते हो। आपको मालुम नहीं कि लड़का ऊपरी कमाई का आदी है। आप जो घोड़ी से उतरने के पैसे देंगे वह तो अपनी मां को देगा। आप सौ पचास चाय पानी का पहले उसके जेब में डाल दीजिये। मैं उसको बता दूंगा तो वह उतर आयेगा।
दुल्हन के पिता ने पूछा-‘यह भी भला कोई बात हुई?’
दूल्हे के दोस्त ने कहा-‘आप भी कमाल करते हो। जब रिश्ता तय हो रहा था तो आपने पूछा था कि नहीं कि लड़के को उपरी कमाई है कि नहीं। कहीं हमारी लड़की की जिंदगी तन्ख्वाह में तो नहीं बंधी रह जायेगी।’
दुल्हन के पिता को बात समझ में आ गयी। उन्होंने सौ रुपये दूल्हे की जेब में डाल दिये और जब उसके दोस्त ने बताया तो वह नीचे उतर आया।
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संभावित दूल्हा दुल्हन के परिवार वालों के बीच मध्यस्थ की उपस्थिति में बातचीत चल रही थी। दूल्हे की मां ने बताया कि ‘लड़का एक कंपनी में बड़े पद पर है उसका वेतन तीस हजार रुपये मासिक है। आगे वेतन और बढ़ने की संभावना है।’
लड़की की मां ने कहा-‘तीस हजार से आजकल भला कहां परिवार चलता है? हमने अपनी लड़की को बहुत नाजों से पाला है। नहीं! हमें यह रिश्ता मंजूर नहीं है।’
लड़के के माता पिता का चेहरा फक हो गया। मध्यस्थ लड़के के माता पिता को बाहर ले गया और बोला-आपने अपने लड़के की पूरी तन्ख्वाह क्यों बतायी।’
लड़के के पिता ने कहा-‘ भई, पूरी तन्ख्वाह सही बतायी है। चाहें तो पता कर लें।
मध्यस्थ ने कहा-‘‘मेरा यह मतलब नहीं है। आपको कहना चाहिये कि पंद्रह हजार तनख्वाह है और बाकी पंद्रह हजार ऊपर से कमा लेता है।’
लड़के की मां कहा-‘पर हम तो सच बता रहे हैं। उसकी तन्ख्वाह तीस हजार ही है।’
मध्यस्थ ने कहा-‘आप समझी नहीं। ईमानदारी की तन्ख्वाह आदमी सोच समझकर कर धर चलाता है जबकि ऊपरी कमाई से दिल खोलकर खर्च करता है। आपने अपने लड़के की पूरी आय तन्ख्वाह के रूप में बतायी तो लड़की वाले सोच रहे हैं कि ऊपर की कमाई नहीं है तो हमारी लड़की को क्या ऐश करायेगा? केवन तन्ख्वाह वाला लड़का है तो वह सोच समझकर कंजूसी से खर्चा करेगा न!’
लड़के के माता पिता अंदर आये। सोफे पर बैठते हुए लड़के की मां ने कहा-‘बहिन जी माफ करना। मैंने अपने लड़के की तन्ख्वाह अधिक बताई थी। दरअसल उसकी तन्ख्वाह तो प्रद्रह हजार है और बाकी पंद्रह हजार ऊपर से कमा लेता है। मैंने सोचा जब आप रिश्ता नहीं मान रहे तो सच बताती चलूं।’
लड़की की मां एकदम उठकर खड़ी हो गयी-‘नहीं बहिन जी! आप कैसी बात करती है? आपने ऊपरी कमाई की बात पहले बतायी होती तो भला हम कैसे इस रिश्ते के लिये मना कर देते? आप बैठिये यह रिश्ता हमें मंजूर है।’
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