Jun 28, 2009

बर्बर और रहबर-व्यंग्य कविता

कहीं दूर पहाड़ी के पार
होने का दावा करते
कहीं कागज पर चित्र खींचकर दिखाते
वह ख्याली बर्बर इंसान का खौफ
आम आदमी के मन में बिठाते।
अपना नाम इसी तरह
रहबरों में लिखाते।

इतिहास में बही खूनी नदियां
बीत गयी अनेक सदियां
पर वह अभी भी
कलम से कागज पर लिखवाते
इसी तरह जमाने को
अपनी रहबरी का कमाल दिखाते।

कहीं तलवार फहराते
कहीं कलम लहराते
मकसद से परे निशाना लगाते
जंग में अमन का रास्ता ढूंढना सिखाते।

उनके अल्फाजों से
जो बहका
वह अपने रास्ते से भटका
जिंदा रहा तो भीड़ में भेड़ की तरह
मरा तो शहीद दिखाते।

धरती पर पैदा इंसान
बनता न हैवान
तो फरिश्ता बनने का
मौका वह कैसे पाते
इसलिए बर्बरों की तस्वीर सजाकर
वह अपनी रहबरी दिखाते।

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