उनसे पूछा गया कि
‘‘आप इस तरह कब तक महंगाई बढ़ायेंगे,
आम आदमी को यूं तड़पायेंगे,
समझ में नहीं आता
आप लोगों का दर्द कैसे समझ पायेंगे।’’
वह बोले
‘देश विकास की तरफ बढ़ रहा है
चाहे आतंकवाद से लड़ रहा है,
तुमने सुना नहीं हमने चवन्नी बंद कर दी है,
उसी तरह हम चाहते हैं कि
दस, पचास और सौ के नोट को रोने वाले
गरीब लोग
हजार और पांच सौ के नोट पाने लगे,
महंगाई बढ़ेगी तो कमाई भी बढ़ेगी
किसी तरह गरीबी दूर भगे
अमीर भी अपनी दौलत आसानी से
गरीबों में बांटने के साथ ही
इधर उधर ले जायेंगे,
अभी तक अमीर ही देख रहे हैं हजार के नोट
हमारी कोशिश से गरीब भी देख पायेंगे।
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‘‘आप इस तरह कब तक महंगाई बढ़ायेंगे,
आम आदमी को यूं तड़पायेंगे,
समझ में नहीं आता
आप लोगों का दर्द कैसे समझ पायेंगे।’’
वह बोले
‘देश विकास की तरफ बढ़ रहा है
चाहे आतंकवाद से लड़ रहा है,
तुमने सुना नहीं हमने चवन्नी बंद कर दी है,
उसी तरह हम चाहते हैं कि
दस, पचास और सौ के नोट को रोने वाले
गरीब लोग
हजार और पांच सौ के नोट पाने लगे,
महंगाई बढ़ेगी तो कमाई भी बढ़ेगी
किसी तरह गरीबी दूर भगे
अमीर भी अपनी दौलत आसानी से
गरीबों में बांटने के साथ ही
इधर उधर ले जायेंगे,
अभी तक अमीर ही देख रहे हैं हजार के नोट
हमारी कोशिश से गरीब भी देख पायेंगे।
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कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है।
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