दो प्रचार प्रबंधक एक बार में सोमरस का उपभोग करने के
लिये गये। बैरा उनके कहे अनुसार सामान लाता और वह उसे उदरस्थ करने के
बाद इशारा करके पास दोबारा बुलाते तब फिर आता। दोनों आपस में अपने व्यवसाय
से संबंधित बातचीत करते रहे। एक प्रचार प्रबंधक ने दूसरे से कहा‘-‘‘यार,
मेरे चैनल का मालिक विज्ञापनों का भूखा है। कहता है कि तुम समाचार अधिक
चलाते हो विज्ञापन कम दिखाते हो।’’
दूसरा बोला-‘‘यार, मेरे चैनल पर तो समाचारों का सूखा है। इतने विज्ञापन आते हैं कि समझ में नहीं आता कि समाचार चलायें कि नहीं। जिन मुद्दों पर पांच मिनट की बहस होती है हम पच्चपन मिनट के विज्ञापन चलाते हैं। हालांकि इस समय मुसीबत यह है कि हर रोज कोई मुद्दा मिलता नहीं है।’’
पहला बोला-‘‘अरे, इसकी चिंता क्यों करते हो? हम और तुम मिलकर कोई कार्यक्रम बनाते हैं। राई को पर्वत और रस्सी को सांप बना लेंगे। अरे दर्शक जायेगा कहां? मेरे चैनल या तुम्हारे चैनल पर जाने अलावा उसके पास कोई चारा नहीं है।
इतने में बैरा उनके आदेश के अनुसार सामान ले आया। उसकी आंखों में आंसु थे। यह देखकर पहले प्रचार प्रबंधक ने उससे पूछा कि ‘‘क्या बात है? रो क्यों रहे हो? जल्दी बताओ कहीं हमारे लिये जोरदार खबर तो नहीं है जिससे हमारे विज्ञापन हिट हो जाये।’’
बैरा बोला-‘‘नहीं साहब, यह शोक वाली खबर है। वह मर गयी।’’
दोनों प्रबंधक उछलकर खड़े हुए पहला बोला-‘‘अच्छा! यार तुम यह पैसा रख लो। सामान वापस ले जाओ। हम अपने काम पर जा रहे है। आज समाचार और बहसों के लिये ऐसी सामग्री मिल गयी जिसमे हमारे ढेर सारे विज्ञापन चल जायेंगे।’’
दूसरा बोला-‘‘यार, पर शोक और उसकी बहस में विज्ञापन! देखना लोग बुरा न मान जायें।’’
पहला बोला-‘‘नहीं यार, लोग आंसु बहायेंगे। विज्ञापन देखकर उनको राहत मिलेगी। हम फिर उनको रुलायेंगे। देखा नहीं उसके बस से लेकर उसके अस्पताल रहने तक हमने समाचार और बहस में कितने विज्ञापन चलाये।’’
दूसरा बोला-‘‘पहले यह तो इससे पूछो मरी कौन है?’’
पहले ने बैरे से पूछा-‘‘यह तो बताओ मरी कौन है?’’
बैरा रोता रहा पर कुछ बोला नहीं। दूसरे ने कहा-‘‘यार, यह तो मौन है।’’
पहला बोला-‘‘चलो यार, अपने विज्ञापन का काम देखो। यह हमारा कौन है?’’
दोनों ही बाहर निकल पड़े। पहले ने एक विद्वान को मोबाइल से फोन किया और बोला-‘‘जनाब, आप जल्दी आईये। अपने साथ अपनी मित्र मंडली भी लाना। सभी अच्छा बोलने वाले हों ताकि दर्शक अधिक से अधिक हमने चैनल पर बने रहें। हमारा विज्ञापन का समय निकल सके।’’
दूसरे ने भी मोबाईल निकाला और अपने सहायक से बोला-‘‘सुनो, जल्दी से विज्ञापन की तैयारी कर लो। एक खबर है जिस पर लंबी बहस हो सकती है। इसमें अपनी आय का लक्ष्य पूरा करने में मदद मिलेगी।’’
दोनों अपने लक्ष्यों की तरफ चल दिये। उन्होंने यह जानने का प्रयास भी नहीं किया कि ‘मरी कौन है’। इससे उनका मतलब भी नहीं था।
दूसरा बोला-‘‘यार, मेरे चैनल पर तो समाचारों का सूखा है। इतने विज्ञापन आते हैं कि समझ में नहीं आता कि समाचार चलायें कि नहीं। जिन मुद्दों पर पांच मिनट की बहस होती है हम पच्चपन मिनट के विज्ञापन चलाते हैं। हालांकि इस समय मुसीबत यह है कि हर रोज कोई मुद्दा मिलता नहीं है।’’
पहला बोला-‘‘अरे, इसकी चिंता क्यों करते हो? हम और तुम मिलकर कोई कार्यक्रम बनाते हैं। राई को पर्वत और रस्सी को सांप बना लेंगे। अरे दर्शक जायेगा कहां? मेरे चैनल या तुम्हारे चैनल पर जाने अलावा उसके पास कोई चारा नहीं है।
इतने में बैरा उनके आदेश के अनुसार सामान ले आया। उसकी आंखों में आंसु थे। यह देखकर पहले प्रचार प्रबंधक ने उससे पूछा कि ‘‘क्या बात है? रो क्यों रहे हो? जल्दी बताओ कहीं हमारे लिये जोरदार खबर तो नहीं है जिससे हमारे विज्ञापन हिट हो जाये।’’
बैरा बोला-‘‘नहीं साहब, यह शोक वाली खबर है। वह मर गयी।’’
दोनों प्रबंधक उछलकर खड़े हुए पहला बोला-‘‘अच्छा! यार तुम यह पैसा रख लो। सामान वापस ले जाओ। हम अपने काम पर जा रहे है। आज समाचार और बहसों के लिये ऐसी सामग्री मिल गयी जिसमे हमारे ढेर सारे विज्ञापन चल जायेंगे।’’
दूसरा बोला-‘‘यार, पर शोक और उसकी बहस में विज्ञापन! देखना लोग बुरा न मान जायें।’’
पहला बोला-‘‘नहीं यार, लोग आंसु बहायेंगे। विज्ञापन देखकर उनको राहत मिलेगी। हम फिर उनको रुलायेंगे। देखा नहीं उसके बस से लेकर उसके अस्पताल रहने तक हमने समाचार और बहस में कितने विज्ञापन चलाये।’’
दूसरा बोला-‘‘पहले यह तो इससे पूछो मरी कौन है?’’
पहले ने बैरे से पूछा-‘‘यह तो बताओ मरी कौन है?’’
बैरा रोता रहा पर कुछ बोला नहीं। दूसरे ने कहा-‘‘यार, यह तो मौन है।’’
पहला बोला-‘‘चलो यार, अपने विज्ञापन का काम देखो। यह हमारा कौन है?’’
दोनों ही बाहर निकल पड़े। पहले ने एक विद्वान को मोबाइल से फोन किया और बोला-‘‘जनाब, आप जल्दी आईये। अपने साथ अपनी मित्र मंडली भी लाना। सभी अच्छा बोलने वाले हों ताकि दर्शक अधिक से अधिक हमने चैनल पर बने रहें। हमारा विज्ञापन का समय निकल सके।’’
दूसरे ने भी मोबाईल निकाला और अपने सहायक से बोला-‘‘सुनो, जल्दी से विज्ञापन की तैयारी कर लो। एक खबर है जिस पर लंबी बहस हो सकती है। इसमें अपनी आय का लक्ष्य पूरा करने में मदद मिलेगी।’’
दोनों अपने लक्ष्यों की तरफ चल दिये। उन्होंने यह जानने का प्रयास भी नहीं किया कि ‘मरी कौन है’। इससे उनका मतलब भी नहीं था।
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
poet and writer-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.हिन्दी पत्रिका
५.दीपकबापू कहिन
६. ईपत्रिका
७.अमृत सन्देश पत्रिका
८.शब्द पत्रिका
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.हिन्दी पत्रिका
५.दीपकबापू कहिन
६. ईपत्रिका
७.अमृत सन्देश पत्रिका
८.शब्द पत्रिका
No comments:
Post a Comment