कब तक उनकी
प्रशंसा के गीत
गाते
इंतजार करते
रहते हम
सुखद अहसास
वह कभी साथ नहीं
लाते।
वादों के
व्यापारी अतिथि
अनेक बार घर आये,
हर बार नये सपने
दिखाये,
ईमानदार इतने
जरूर है
कभी पुराने शब्द
नहीं बताते।
कहीं दीपक बापू
खीजना बेकार
हम भी कभी उनके
इंतजार में
अपनी आंखें नही
पसारे बैठे
अपने चूल्हे पर
पकती रोटी
सादगी से ही
खाते।
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कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'
ग्वालियर, मध्य प्रदेश
कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com
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