Mar 23, 2016

स्वार्थ से सम्मान-हिन्दी कविता (Swarth se Samman-Hindi Kavita)

सच कह गये
पुराने लोग
समय बड़ा है बलवान।

पर्व पर कोई ढूंढे
कूड़ेदान में रोटी
किसी के लिये
थाली में सजा है पकवान।

कहें दीपकबापू देह की
भूख बेबस करे
रोटी इंसान में डाले प्राण
निस्वार्थ से न हो पूछ
स्वार्थ से मिलता है मान।
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कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'

ग्वालियर, मध्य प्रदेश

कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak "BharatDeep",Gwalior
http://rajlekh-patrika.blogspot.com

Mar 13, 2016

नकली पीर-हिन्दी शायरी (NaqliPeer-HindiShayri)

धनुष जैसे जीभ टंकारते
नहीं छूटता कभी
ज्ञान का तीर।

दहाड़ते जोर से
शेर की खाल ओढ़े घूमते
लोमड़ जैसे शब्दवीर।

कहें दीपकबापू परिश्रम से
दिल चुराते
पुजने की चाहत में
लालची सोच पर
उम्मीद की फसल उगाते
फिर रहे नकली पीर।
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कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'

ग्वालियर, मध्य प्रदेश

कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
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Mar 3, 2016

मलाई के लिये पग-हिन्दी कविता(Malai ke Liye pag-Hindi Kavita)


भाषा से चुन लेते शब्द
फिर ज्ञानी वाक्युद्ध में
लग जाते हैं।

वैसे तो सोये रहते हम
जब इतना शोर हो
तब जग जाते हैं।

कहें दीपकबापू खुश रहो
भलाई का ठेका लेने वालों
तुम चंदे खाते से 
भरते रहो
भले ही मदद की बजाय
मलाई खाने के लिये
तुम्हारे पग आते हैं।
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कवि एवं लेखक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'

ग्वालियर, मध्य प्रदेश

कवि, लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
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