सामानों से शहर सजे हैं
खरीदो तो दिल भी
मिल जायेगा।
इंसान की नीयत भी
अब महंगी नहीं है
पैसा वफा कमायेगा।
कहें दीपकबापू बाज़ार में
घर के भी सपने मिल जाते
ग्राहक बनकर निकलो
हर जगह खड़ा सौदागर
हर सौदे की वफादारी
एक साल जरूर बतायेगा।
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एक दूसरे पर
सब लफ्जों से बरसे हैं।
जुबान पर गालियों के
एक से बढ़कर एक फरसे हैं।
नासमझों की भीड़ खड़ी
कब जंग होगी
कब बहेगा लहू
दूश्य देखने के लिये
सभी बहुत तरसे हैं।
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