आंखें तरेरे मुट्ठी भींचे जंग के लिये दिखें तैयार, थोड़े देर में बनेंगे अमन के यार।
‘दीपकबापू’ वीरता के लंबे चौड़े बयान करें, नकली गुस्सा बेचकर करते झूठ से प्यार।।
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शब्दों का जाल श्रोताओं को फांस रहे हैं, दर्द का इलाज करने वाले खांस रहे हैं।
‘दीपकबापू’ भावनाओं का व्यापार करते, जिंदादिल मतलबपरस्ती में ले सांस रहे हैं।
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नये ताजा चेहरे समय से पुराने हो गये, प्यार के रिश्ते बिछड़कर अनजाने हो गये।
‘दीपकबापू’ जिंदगी में यादों का भंडार भरा है, भुलाने के भी बहुत बहाने हो गये।।
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इधर लात मारे उधर प्यार की माया बुने माला, पीछे लगे बहुत हाथ किसी ने नहीं डाला।
‘दीपकबापू’ झाड़ू घुमायें रोज दीवार पर, मकड़ियां इधर उधर बना लेती फिर नया जाला।
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सफेद वस्त्र भी स्वच्छ चरित्र की पहचान कहां, भरे भंडार पर दानी की शान कहां।
‘दीपकबापू’ ज्ञानचक्षु बंद कर देखें सब, पांव न धरें लालची का होता सम्मान जहां।।
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