जमाने के देखने के अहसास में संवरता जाता
जमाने में हर कोई खुशफहमी में चलता जाता
सब चल रहे हैं आँखें खोलकर, पर दिखता नहीं
खुद दिखने का अहसास, दूसरे को देख नहीं पाता
अपने आशियाने में हमेशा जुटाता तमाम सहूलियतें
समय के झोंके से पल भर में सब धूल हो जाता
पर जिन्होंने लिखी अपनी पसीने से इबारत
उनको समय चिरकाल तक मिटा नहीं पाता
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समसामयिक लेख तथा अध्यात्म चर्चा के लिए नई पत्रिका -दीपक भारतदीप,ग्वालियर
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लड़ते रहो दोस्तो ख़ूब लड़ो किसी तरह अपनी रचनाएं हिट कराना है बेझिझक छोडो शब्दों के तीर गजलों के शेर अपने मन की किताब से निकल कर बाहर दौडाओ...
2 comments:
दीपक जी,बहुत ही गहरी बात लिखी है।बहुत अच्छी लगी आप की रचना।बधाई स्वीकारें।
पर जिन्होंने लिखी अपनी पसीने से इबारत
उनको समय चिरकाल तक मिटा नहीं पाता
पसीने से लिखी गई ईबारत ....समय का झोंका अब तक न मिटा पाया न मिटा पायेगा कभी ...
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